नई दिल्ली: थाईलैंड में अभी अभी मतदान हुआ है. रविवार को ही देश की संसद के लिए यहां के नागरिकों ने वोट दिए हैं. थाईलैड शुरू से ही स्थायी और मजबूत लोकतंत्र के लिए जूझता रहा है. 1932 तक यहां पूरी तरह राजशाही थी जिसमें 17वीं सदी से चक्री वंश का शासन रहा. 1932 के बाद यहां की शासन व्यवस्था के लिए सेना का दखल शुरू हुआ. बेहतर शासन व्यवस्था के लिए देश हमेशा ही सेना और संसद के बीच उलझता रहा. सेना ने अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए कभी भी राजवंश को पूरी तरह से खारिज नहीं किया. देश के संविधान में भी जो कि 17 बार बदला गया, राजवंश को खारिज नहीं किया जा सका. यह समस्या भी नहीं थी. थाईलैंड की समस्या थी सेना का सत्ता में दखल. रविवार को हुए मतदान को लोकतंत्र के पैरवी करने वाले ज्यादा उम्मीद से देख नहीं रहे हैं. 


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

ताजा घटनाओं के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो वर्तमान चुनाव 2017 में लागू हुए नए संविधान के तहत हुए हैं. इस चुनाव में 500 सदस्यीय निचले सदन (भारत की लोकसभा की तरह) के लिए वोट डाले गए हैं. इसके अलावा थाईलैंड की संसद का एक और हिस्सा है जो कि उच्च सदन (भारत की राज्यसभा की तरह) है. इस उच्च सदन के सदस्यों की संख्या 250 है. ये 250 सदस्य को सेना ही नियुक्त करती है. ऐसे में दोनों सदनों के बीच शक्ति का बंटवारा अहम हो जाता है. इसमें सबसे खास बात यह है कि देश के प्रधानमंत्री का चुनाव पूरी संसद करती है न कि केवल निचला सदन. प्रधानमंत्री देश का सबसे शक्तिशाली पद है. 


संसद कैसे चुनती है प्रधानमंत्री को
संसद दोनों सदनों के संयुक्त वोटों में बहुमत के आधार पर प्रधानमंत्री का चुनाव होता है. ऐसे में 750 सद्सयीय संसद में प्रधानमंत्री को 376 वोटों की जरूरत होती है. इनमें से 250 वोट तो पहले से ही सेना के पास होते हैं. ऐसे में उसे अपना प्रधानमंत्री चुनने के लिए केवल 126 अतिरिक्त वोटों की ही आवश्यक्ता होती है. यह भी कोई समस्या न होती अगर (निचले सदन के लिए) आम चुनावों में सेना समर्थित उम्मीदवार न खड़े हों, लेकिन थाईलैंड में इस बार एक पूरी की पूरी पार्टी ही सेना समर्थित है. 
अब सेना समर्थित प्लांग प्रचा राथ पार्टी (पीपीआरपी) चुनाव में हिस्सा ले रही है जिसके नेता वर्तमान सैन्य शासन के प्रधानमंत्री प्रयुथ चान ओचा 2014 से सत्ता में हैं और वे भी प्रधानमंत्री के दावेदार हैं. 


यह भी पढ़ें: उत्तर कोरिया का अनोखा चुनाव, एक मतपत्र पर होता है केवल एक उम्मीदवार का नाम


क्या सेना को मिलेगा लाभ?
अब चुनाव का गणित हो गया था कि यह चुनाव दो पक्षीय हो गया था एक सैन्य सरकार के समर्थन में पीपीआरपी के उम्मीदवार और बाकी सभी लोकतांत्रिक पार्टियां जो निर्वासित पूर्व प्रधानमंत्री थाकसिन शिनवात्रा के समर्थन में एक हो गई हैं. लेकिन चुनाव में बहुतम के लिए विपक्ष को जहां 376 का आंकड़ा छूना है, वहीं पीपीआरपी को केवल 126 सीटें चाहिए क्योंकि 250 सीटें तो पहले से ही उसके पास है. इस तरह से देखा जाए तो यह चुनाव में सेना के पक्ष में ज्यादा है. इन चुनावों जिसके बारे में आलोचकों का कहना है कि इस चुनाव प्रक्रिया को सैन्य समर्थक ताकतों को सत्ता में रखने के लिए बनाया गया है. 


अब ये तड़का भी लग गया
सोमवार को वोटों की गिनती के दौरान देश के चुनाव आयोग ने नतीजों की घोषणा नहीं की जबकि इससे पहले उसने रुझान घोषित किए थे इससे भ्रम की स्थिति भी पैदा हो गई. चुनाव आयोग ने पहले तो रुझान तक बताना बंद कर दिए और तकनीकी समस्या का हवाला दिया. बाद कहा गया कि दिन के अंत तक केवल 350 सीटों के नतीजे घोषित किए जाएंगे. 


यह भी पढ़ें: अल्जीरिया: जानिए क्यों, यह देश अब तक असली आजादी के लिए तरस रहा है 


क्या रहे 350 सीटों के नतीजे
चुनाव आयोग ने नतीजे वेबसाइट पर अपलोड किए जिसके मुताबकि पेहु थाई ने 138 और सेना समर्थित (पीपीआरपी) ने 96 सीटें जीती हैं. इसके अलावा फ्यूचर पार्टी ने 29 सीटें जीतीं है. बताया जा रहा है कि अब तक 95 प्रतिशत वोटों की गिनती हो गई है. इसी बीच वोटों की गिनती में अनियमितता की शिकायतें भी आ रही हैं. आलोचकों का कहना है कि करीब 20 लाख मतों को खरिज किया गया है. अभी अंतिम नतीजों में समय लग सकता है. नतीजा जो भी हो, अभी थाईलैंड में मजबूत लोकतंत्र की वापसी दूर ही है