उत्तर कोरिया का अनोखा चुनाव, एक मतपत्र पर होता है केवल एक उम्मीदवार का नाम
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उत्तर कोरिया का अनोखा चुनाव, एक मतपत्र पर होता है केवल एक उम्मीदवार का नाम

उत्तर कोरिया में किम वंश का तानाशाही शासन है लेकिन यहां कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया भी कम अनोखी नहीं है. 

किम जोन उन इस बार के सुप्रीम पीपुल्स असेंबली चुनावों के उम्मीदवारों में शामलि नहीं थे.  (फोटो: PTI)

नई दिल्ली: हाल ही में उत्तर कोरिया में संसदीय चुनाव संपन्न हुए. इस चुनाव में लगभग 99.99 प्रतिशत मतदान हुआ. तानाशाह किम जोंग उन की सरकार का कहना है कि जो लोग विदेश में या समुद्र में काम कर रहे थे उनके अलावा सभी ने वोट दिए. 2014 के बाद हुए इस चुनाव को दुनिया के कई देशों में बेकार की कवायद करार दिया है. वहीं उत्तर कोरिया की 14वीं सुप्रीम पीपुल्स असेंबली के लिए हुए इस चुनाव में कुछ ऐसी बातें भी हुई हैं जो यहां के चुनाव में अनोखी होने के साथ-साथ पहली बार हुई हैं. इसके अलावा कई ऐसे सवाल हैं जो इस देश के बारे में कुछ खास जानकारी भी देते हैं. 

क्यों कहा जाता है बेकार की कवायद
उत्तर कोरिया की सुप्रीम पीपुल्स असेंबली यानी संसदीय चुनाव को प्योंगयांग अपने शासन के वैध ठहराने के लिए कराता है, लेकिन दुनिया के ज्यादातर देश इस अर्थहीन कार्यवाही कहते हैं. इसकी वजह यह है कि हर वोटिंग पर्ची पर केवल एक ही राज्य के अनुमोदित उम्मीदवार का नाम होता है. नागरिकों को इस पर्ची में कुछ भरना नहीं होता और उन्हें उसमें कोई निशान नहीं लगाना पड़ता. उन्हें केवल इस पर्ची को लेकर बेलैट बाक्स में डालना होता है जो कि खुले में रखा होता है. 

क्या अहमियत है इसकी
उत्तर कोरिया में किम वंश का शासन है. नागरिकों को इस परिवार और अपने वर्तमान नेता के प्रति पूरा समर्पण दिखाने की जरूरत होती है. लोग अपनी वफादारी दिखाने के लिए सुबह जल्द से जल्द वोट देने की कोशिश करते हैं. 17 साल की बाद के सभी नागरिकों के लिए मतदान अनिवार्य होता है.  

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क्या कोई विकल्प नहीं है विरोध का 
जी हां है, नागरिक पर्ची में उम्मीदवार का नाम क्रॉस कर सकते हैं. इसका अंजाम लेकिन लोगों के लिए अच्छा नहीं होता. दक्षिण कोरिया के विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा करने से नागरिक सीक्रेट पुलिस की निगाहों में आ जाते हैं और उन्हें पागल तक घोषित किया जा सकता था. यहां तक कि अगर पास के वोटिंग बूथ में निजी तौर पर मतदान करने से नागरिक को संदेह की निगाहों से देखा जाने लगता है. 

तो फिर चुनाव आखिर होता ही क्यों है
एक बार मतदान केंद्र छोड़ने के बाद नागरिकों से उम्मीद की जाती है कि वे प्रोत्साहन कर रहे समूह से जुड़ें और अपने देश के काबिल नेतृत्व के लिए वोट कर पाने की खुशियां जाहिर करें. देश में यह एक उत्सव के तौर पर देखा जाता है. इसके अलवा इस चुनाव को उत्तर कोरिया की सरकार एक तरह से जनगणना का मौका भी मानती है जिससे हर संसदीय क्षेत्र में गद्दारों और देशद्रोहियों को पहचाना जा सकता है, जो कि चीन भाग गए हों.

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क्या नया है इस बार
इस बार के 687 उम्मीदवारों में किम जोन उन का नाम नहीं है. इससे पहले 2014 के चुनावों में किम जोन उन का नाम उम्मीदवारों में शामिल था. जबकि सूची में जोंग उन की बहन किम यो जोंग का नाम शामिल था. उल्लेखनीय है कि 2014 में हुए चुनावों में किम यो जोंग का नाम उम्मीदवारों की सूची में नहीं था. माना जा रहा है कि किम जोंग उन के नाम की गैरमौजूदगी उनके कमजोर होने के बजाय उनके ताकतवर होने का ही संकेत है. कई लोकतांत्रिक देश ऐसे हैं जहां के राष्ट्रपति संसद के सदस्य नहीं है. 

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