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काबुल: अफगानिस्तान (Afghanistan) में अमेरिका की 20 सालों की सैन्य मौजूदगी खत्म हो चुकी है. काबुल एयरपोर्ट (Kabul Airport) पूरी तरह तालिबान (Taliban) के हवाले है. ऐसे में मुल्क छोड़कर जाने वाले अफगानियों की भीड़ सीमाई क्षेत्रों की तरफ बढ़ रही है, ताकि किसी तरह बॉर्डर पार कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचा जा सके. हालांकि, ये इतना आसान नहीं है, क्योंकि अफगानिस्तान के पड़ोसियों ने शरणार्थियों को अपनाने में खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है. बॉर्डर का रुख करने वालों में वो अफगानी भी शामिल हैं, जिन्होंने अमेरिका की सहायता की, लेकिन मुश्किल वक्त में वो उन्हें मरने के लिए छोड़ गया.
अमेरिकी पासपोर्ट धारक (U.S. Passport Holder) और अमेरिकी सेना (US Army) के लिए काम करने वाले हुसैन (Hussain) को उम्मीद थी कि यूएस सैनिक अफगानिस्तान से उन्हें सुरक्षित बाहर ले जाएंगे. इस उम्मीद में वो अपनी छह बेटियों के साथ कई दिनों तक काबुल हवाईअड्डे पर डेरा डाले रहे. एयरपोर्ट तक पहुंचने के लिए उन्हें कई खतरों से गुजरना पड़ा. क्योंकि तालिबान ने जगह-जगह चेकपोस्ट बनाई हैं. उन्होंने यूएस एंबेसी से मदद की गुहार लगाई और जवाब के इंतजार में कई दिन गुजार दिया. फिर एक दिन जब अमेरिकी सैन्य अधिकारी का कॉल आया, तो उनकी उम्मीद एक झटके में टूट गई.
हुसैन से कहा गया कि यदि उन्हें साथ चलना है तो अकेले ही चलना होगा. चूंकि उनकी बेटियां अमेरिकी नागरिक नहीं हैं, इसलिए उन्हें नहीं ले जाया जा सकता. हुसैन की पत्नी की कोरोना से मौत हो चुकी है, ऐसे में बेटियों को अकेला छोड़ना उनके लिए मुमकिन नहीं था. लिहाजा उन्होंने अमेरिकी ऑफर को ठुकरा दिया. सोमवार को जब आखिरी अमेरिकी विमान ने काबुल से उड़ान भरी तब हुसैन अपनी बेटियों के साथ एयरपोर्ट के बाहर खड़े अपनी आखिरी उम्मीद को साथ छोड़ते देख रहे थे.
अन्य अफगानियों की तरह अब हुसैन भी बॉर्डर की तरफ बढ़ रहे हैं, ताकि बेटियों के साथ मुल्क छोड़कर जा सकें. ट्रांसलेटर की मदद से हुसैन ने न्यूज एजेंसी ‘रॉयटर्स’ से बातचीत में अपना पूरा नाम उजागर न करने की गुजारिश के साथ कहा, ‘खबरें मिल रही हैं कि अफगान-पाकिस्तान सीमा पर बड़ी संख्या में अफगानी मौजूद हैं, वो पाकिस्तान में शरण पाना चाहते हैं. मुझे समझ नहीं आ रहा है कि क्या करना है. मुझे पाकिस्तान की तरफ जाना चाहिए या ताजिकिस्तान? मुझे अपनी बेटियों की भी चिंता है’.
काबुल हवाईअड्डे पर अब कोई भी रेस्क्यू फ्लाइट नहीं आ रही है. ऐसे में तालिबान के कहर से बचने के लिए लोगों के पास केवल एक ही रास्ता है – बॉर्डर पार कर दूसरे देश में दाखिल होना. इसी आस में वे सीमाई क्षेत्रों की तरफ पैदल ही बढ़ रहे हैं. कई लोग पहले ही पूर्व और दक्षिण में पाकिस्तान के लिए निकल चुके हैं, जबकि अन्य मध्य एशियाई देशों से लगी अफगानिस्तान की सीमाओं तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, वहां तक सुरक्षित पहुंचना आसान नहीं है. खासतौर पर पूर्व सैन्य या पुलिस अधिकारियों के लिए, क्योंकि तालिबान की चेकपोस्ट हर तरफ है. वहीं, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी का कहना है कि इस साल के अंत तक पांच लाख अफगान अपना मुल्क छोड़कर जा सकते हैं.
14 अगस्त से अब तक लगभग 6,000 अमेरिकियों सहित 122,000 से अधिक लोगों को काबुल से बाहर निकाला गया है. अभी भी लगभग 200 अमेरिकी अफगानिस्तान में ही हैं. इसके अलावा, अमेरिकी सरकार के लिए काम करने वाले और विशेष आप्रवासन वीजा (एसआईवी) के लिए आवेदन करने वाले हजारों अफगानी इस वक्त तालिबान के रहमोकरम पर हैं. अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने रविवार को एक घोषणापत्र प्रकाशित किया, जिसमें 100 देशों ने अफगानियों की उनके मुल्क से बाहर सुरक्षित गंतव्यों तक पहुंचने में मदद करने की प्रतिबद्धता दर्शाई है. हालांकि, अफगानिस्तान के किसी भी पड़ोसी देश ने इसके लिए हामी नहीं भरी है.
ताजिकिस्तान ने 100,000 अफगान शरणार्थियों को अपनाने का वचन दिया है, जबकि उज्बेकिस्तान ने कहा है कि अफगानिस्तान में फंसे अमेरिकी और अन्य बाहर निकलने के लिए उसकी जमीन का इस्तेमाल कर सकते हैं. वहीं, 1.4 मिलियन से अधिक अफगान शरणार्थियों का घर माने जाने वाले पाकिस्तान ने विदेशी मिशनों, अंतरराष्ट्रीय संस्थानों और गैर-सरकारी समूहों के लगभग 2,000 अफगानों को एक महीने के ट्रांजिट वीजा पर रहने की अनुमति दी है.