जब मां चंडी ने काट लिया था अपना सिर, दुष्टों की संहारक और भक्तों के लिए दयावान हैं देवी

आज शनिवार, 14 मई है. आज देवी छिन्नमस्तिका जयंती, नृसिंह जयंती, वृषभ संक्रांति है, पर पुण्य कल रहेगा. दस महाविद्याओं में से छठी महाविद्या श्री छिन्नमस्तिका जी की जयंती है. छिन्नमस्ता का अर्थ है छिन्न मस्तक वाली देवी. महर्षि याज्ञवल्क्य और परशुराम इस विद्या के उपासक थे.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : May 13, 2022, 11:42 PM IST
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जब मां चंडी ने काट लिया था अपना सिर, दुष्टों की संहारक और भक्तों के लिए दयावान हैं देवी

नई दिल्लीः Aaj Ka Panchang: आज शनिवार, 14 मई है. आज देवी छिन्नमस्तिका जयंती, नृसिंह जयंती, वृषभ संक्रांति है, पर पुण्य कल रहेगा. दस महाविद्याओं में से छठी महाविद्या देवी छिन्नमस्तिका की जयंती है. छिन्नमस्ता का अर्थ है छिन्न मस्तक वाली देवी. महर्षि याज्ञवल्क्य और परशुराम इस विद्या के उपासक थे. 

श्री मत्स्येन्द्र नाथ व गोरखनाथ भी इसी के उपासक रहे हैं. दैत्य हिरण्यकश्यप व वैरोचन भी इस शक्ति के एक निष्ठ साधक थे. अत: इन शक्ति को ‘वज्रवैरोचनीय भी कहते हैं. "वैरोचनीया कर्मफलेषु जुष्टाम्" तथागत बुद्ध भी इसी शक्ति के उपासक थे.

अपना कटा हुआ सिर रहता है मां के हाथ में
मार्कंडेय पुराण में बताई गई एक कथा के अनुसार, जब मां चंडी ने राक्षसों को घोर संग्राम में पराजित कर दिया तब उनकी दो योगिनियां जया और विजया युद्ध समाप्त होने के बाद भी रक्त की प्यासी थी. मां ने उनकी भूख को शांत करने के लिए अपना सिर काट लिया और अपने खून से उन दोनों की प्यास बुझाई. तभी तो मां अपने काटे हुए सिर को अपने हाथों में पकड़े दिखाई देती हैं.

उनकी गर्दन की धमनियों से निकल रही रक्त की धाराएं उनके दोनों तरफ खड़ी दो नग्न योगिनियां पी रही होती हैं. देवी छिन्नमस्तिका का तेज और प्रताप पुराणों में भी वर्णित है. मां का उग्र रूप जितना दुष्टों के लिए संहारक है उतना ही भक्तों के लिए दयालु भी है. 

आज का पंचांग
दिन - शनिवार
हिंदी माह - वैशाख 
शुक्ल पक्ष - त्रयोदशी 
नक्षत्र - चित्रा 
महत्वपूर्ण योग - सिद्ध योग 
चंद्रमा का तुला राशि पर संचरण

आज का शुभ मुहूर्त - सर्वार्थ सिद्ध योग 17.27 बजे से 
आज का राहुकाल - 09.20 बजे से 10.46 बजे तक

गुप्त मनोकामना पूर्ण के लिए
साठ ग्राम काले व सफेद तिल को मिला लें, उसमें एक सिक्का रखकर घर के पुराने काले कपड़े में पोटली बनाकर सायंकाल में पीपल की जड़ में रख दीजिए. और उस पोटली पर ही एक मिट्टी का दीपक सरसों तेल में जला दीजिए.

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