गोविंद द्वादशी आज, जानिए व्रत की कथा और पूजा विधि

गोविंद द्वादशी की पूजा में भगवान विष्णु के मंत्रों का जप करता है उसे विशेष फल की प्राप्ति होती है. आप भी इस दिन की पूजा में स्पष्ट उच्चारण पूर्वक और पूरी श्रद्धा के साथ मंत्रों का जाप करें. 

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Mar 26, 2021, 10:10 AM IST
  • गोविंद द्वादशी के दिन स्नान आदि करने के बाद षोडशोपचार विधि से भगवान विष्णु की पूजा करें
  • गोविंद द्वादशी की पूजा में मौली, रोली, चावल, पंचामृत, तुलसी तिल और पान शामिल करें
गोविंद द्वादशी आज, जानिए व्रत की कथा और पूजा विधि

नई दिल्लीः भारत भूमि का हर दिन त्योहार और उल्लास का प्रतीक है. यह त्योहार जहां एक तरफ हमें सत्कर्मों की प्रेरणा देते हैं तो दूसरी ओर उनका आध्यात्मिक पक्ष हमें जीवन की सकारात्मकता के दर्शन कराता है. व्रत और त्योहारों की इसी परंपरा में शुक्रवार क गोविंद द्वादशी (Govind Dwadshi) का व्रत अनुष्ठान और उत्सव मनाया जा रहा है. यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और मुख्य रूप से उनके कृष्ण स्वरूप की पूजा की जाती है.

गोविंद का एक अर्थ सारा संसार भी होता है. युद्धभूमि में पितामह को अपनी शक्ति का अहसास कराते हुए श्रीकृष्ण ने सूक्ष्म रूप में विराट स्वरूप के दर्शन कराए थे. तब सत्य का ज्ञान होने से पितामह ने उसी के अनुसार आगे का युद्ध किया और मोक्ष के अधिकारी बने. 

भागवत कथा में गोपिका का प्रसंग
भागवत कथा में इसका प्रसंग आता है कि एक गोपाल यादव कन्या ने इस व्रत का पालन किया था. वह गरीब थी लेकिन श्रीहरि के प्रति श्रद्धा रखती थी. प्रत्येक एकादशी का व्रत रखती और द्वादशी का पारण करती. एक दिन उसने एकादशी का व्रत रखा. अगले दिन अपनी दही की मटकी लेकर बेचने निकली. सोचा था कि छोटी सी तो मटकी है, कुछ देर में ही दही बिक जाएगी तो फिर पारण करेगी.

लेकिन उस दिन चमत्कार होना था. फाल्गुन की द्वादशी तिथि थी. गोलोक में श्रीकृष्ण प्रियम्बदा राधा के साथ नृत्य कर रहे थे. इसी दौरान एक गूलर के पेड़ को राधा रानी जोर से हिलाया तो उसका दिव्य पुष्प झरते कृष्ण पर गिरा और कुछ जमीन पर. हवा के प्रभाव से वही गूलर का फूल गोपिका की मटकी में जा गिरा. 

सुबह से दोपहर हो गई, दोपहर से शाम और शाम से रात घिरने को आई दही बिकती जाती थी और मटकी खाली ही नहीं होती थी. इस तरह गोपिका का द्वादशी का व्रत भी हो गया. उसने इसे प्रभु कृपा माना और हर एकादशी के साथ फाल्गुन द्वादशी का व्रत भी करने लगी. इसके प्रभाव से वह श्रीकृष्ण के ही बैकुंठ धाम चली गई. 

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इन मंत्रों से द्वादशी पूजा
गोविंद द्वादशी की पूजा (Govind Dwadshi Puja Mantra) में भगवान विष्णु के मंत्रों का जप करता है उसे विशेष फल की प्राप्ति होती है. आप भी इस दिन की पूजा में स्पष्ट उच्चारण पूर्वक और पूरी श्रद्धा के साथ इन मंत्रों का जाप करें. 

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:

ॐ नमो नारायणाय नम:

श्रीकृष्णाय नम:

सर्वात्मने नम:

ऐसे करें व्रत और पूजा

  • गोविंद द्वादशी के दिन स्नान आदि करने के बाद षोडशोपचार विधि से भगवान विष्णु की पूजा करें.
  • गोविंद द्वादशी की पूजा में मौली, रोली, चावल, पंचामृत, तुलसी तिल और पान शामिल करें. 
  • इस बात पर विशेष ध्यान दें कि, गोविंद द्वादशी के दिन की जाने वाली पूजा में भगवान  को तिल और पंचामृत का भोग अवश्य चढ़ाएं. 

 

  • इसके अलावा इस दिन  लक्ष्मी नारायण की कथा पढ़ें और दूसरों को सुनाएं. 
  • इस दिन की पूजा करने के बाद शाम के समय अपनी यथाशक्ति अनुसार ब्राह्मण और ज़रूरतमंदों को भोजन कराएं. इसके साथ ही अपनी यथाशक्ति के अनुसार ब्राह्मणों को दक्षिणा दें. इसके बाद ही भोजन ग्रहण करें. 
  • गोविंद द्वादशी के रात में हरी नाम का कीर्तन करना विशेष फलदाई होता है. 

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