नई दिल्ली. गुजरात के मोरबी शहर में रविवार शाम माच्छु नदी पर बने केबल पुल के टूटने से मृतको की संख्या 141 हो गई है. पुल टूटने के बाद नदी में गिरे अब तक 177 लोगों को बचाया गया है. वहीं अन्य लोगों की तलाशी के लिए अभियान जारी है. इसी बीच इस घटना की न्यायिक जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गयी है.
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता विशाल तिवारी ने इस घटना की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग के गठन की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया हैं. अधिवक्ता विशाल तिवारी ने जनहित याचिका दायर करते हुए कहा है कि मोरबी पुल के ढहने के कारण हुई दुर्घटना में 137 से अधिक लोग हताहत हुए है, यह सरकारी अधिकारियों की लापरवाही और पूरी तरह से विफलता को दर्शाता है.
याचिका में कहा गया है, 'पिछले एक दशक से हमारे देश में कई घटनाएं हुई हैं जिनमें कुप्रबंधन, कर्तव्य में चूक, रखरखाव की गतिविधियों में लापरवाही के कारण बड़ी संख्या में आमजन हताहत हुए है जिन्हें टाला जा सकता था'. याचिकाकर्ता ने भविष्य में इस तरह के घटनाओं से बचने के लिए देशभर में पुराने पुलों और स्मारकों का सर्वेक्षण और मूल्यांकन कर उसके लिए विशेष तौर से सभी राज्यों में कमेटियों के गठन की मांग की है.
मंगलवार सुबह न्यायालय समय शुरू होने के साथ ही अधिवक्ता तिवारी ने इस याचिका को सीजेआई यूयू ललित की पीठ के समक्ष मेंशन किया. सीजेआई ललित ने इस जनहित याचिका को आगामी 14 नवंबर को सूचीबद्ध करने के निर्देश दिए है. अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट 14 नवंबर को सुनवाई करेगा.
गौरतलब है कि रविवार 30 अक्टूबर को मोरबी शहर में माच्छु नदी पर बना 141 साल पुराना केबल पुल टूट गया था. अहमदाबाद से लगभग 300 किलोमीटर दूर स्थित सस्पेंशन ब्रिज उस समय गिर गया जब छठ पूजा के लिए करीब 500 से ज्यादा लोग उस पर एकत्र हुए थे.
अधिवक्ता तिवारी ने याचिका में कहा कि पुल की मरम्मत करने वाले लोगो ने यह जानते हुए भी कि यह जीवन के लिए खतरा है, 26 अक्टूबर को मरम्मत और रखरखाव के बाद इसे खोल दिया था. पुल को फिर से खोलने से पहले निजी संचालक द्वारा कोई फिटनेस प्रमाण पत्र नहीं लिया गया था और सरकारी अधिकारियों द्वारा कोई प्रशासनिक पर्यवेक्षण भी नहीं किया गया था.
याचिका में कहा गया कि 'इस तरह लापरवाही करते हुए संचालको ने यह दर्शाया कि उन्हें मानव जीवन के लिए कोई चिंता नहीं है और यह मानवाधिकारों के उल्लंघन का एक भयानक कार्य है जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का उल्लंघन है'. याचिकाकर्ता ने इस तरह के मामलों में त्वरित जांच करने के लिए स्थायी आपदा जांच विभाग के गठन कि मांग की है.
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