नई दिल्लीः Navratri 2022: नवरात्र पूजन के पहले दिन कलश पूजा के साथ मां शैलपुत्री का पूजन किया जाता है. मां शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प लिए हुए हैं. उनका वाहन वृषभ है. नवदुर्गाओं में मां शैलपुत्री का महत्व और शक्तियां अनन्त हैं.
शैलपुत्री पूजन से मूलाधार चक्र होता है जागृत
ये सहज भाव से भी पूजन करने पर शीघ्र प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को मनोवांछित फल प्रदान करती हैं. शैलपुत्री का पूजन करने से ‘मूलाधार चक्र’ जागृत होता है और यहीं से योग साधना आरंभ होती है, जिससे अनेक प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं. इसलिए नवरात्र के प्रथम दिन की उपासना में साधक अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं.
नवरात्र के पहले दिन स्नान-ध्यान करके माता दुर्गा, भगवान गणेश, नवग्रह कुबेरादि की मूर्ति के साथ कलश स्थापना की जाती है. कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक लिखा जाता है.
मां शैलपुत्री को चढ़ाएं घी से बनीं चीजें
कलश पूजा के बाद नवार्ण मंत्र ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे! से सभी पूजन सामग्री अर्पण करते हुए मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. मनोविकारों से बचने के लिए मां शैलपुत्री को सफेद कनेर का फूल भी चढ़ाया जाता है. मां की 'या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमरू' मंत्र से आराधना की जाती है. मां शैलपुत्री को घी से बनी चीजें चढ़ाएं. इस उपाय से रोगी को कष्टों से मुक्ति मिलती हैं.
मां शैलपुत्री की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा दक्ष ने अपने निवास पर एक यज्ञ का आयोजन किया था. इसमें उन्होंने सभी देवी-देवताओं को बुलाया था, लेकिन अपने अपमान का बदला लेने के लिए उन्होंने शिव जी नहीं बुलाया. माता सती ने भगवान शिव से अपने पिता की ओर से आयोजित यज्ञ में जाने की इच्छा जताई.
सती के आग्रह करने पर भगवान शिव ने भी उन्हें जाने की अनुमति दे दी, लेकिन जब सती यज्ञ में पहुंची तो वहां पर पिता दक्ष ने सबके सामने भगवान शिव के लिए अपमानजनक शब्द कहे. अपने पिता की बातें सुनकर मां सती बेहद निराश हुईं और उन्होंने यज्ञ की वेदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए. इसके बाद मां सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय के घर में जन्मीं और वह शैलपुत्री कहलाईं.
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