नई दिल्ली: आज आंवला नवमी है. कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष के नवमी तिथि को आंवला नवमी मनाते हैं. आंवला नवमी को अक्षय नवमी के नाम से भी जानते हैं. हिंदू धर्म में आंवला नवमी का विशेष महत्व है. मान्यता है कि आंवला नवमी के दिन दान करने से पुण्य का फल इस जन्म के साथ अगले जन्म में भी मिलता है.
शास्त्रों के अनुसार, आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है. आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की पूजा करते हुए परिवार की खुशहाली और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है. इसके साथ ही इस दिन वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन किया जाता है. प्रसाद के रूप में भी आंवला खाया जाता है.
मान्यता है कि इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ होता है. द्वापर युग में भगवान विष्णु के आठवें अवतार प्रभु श्री कृष्ण ने जन्म लिया था. इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन गोकुल की गलियों को छोड़कर मथुरा की ओर प्रस्थान किया था. इसी वजह से वृंदावन परिक्रमा की जाती है.
इस दिन उन्होंने अपनी बाल लीलाओं को त्याग कर अपने कर्तव्य के पथ पर कदम रखा था. यह पूजा खासतौर पर उत्तर भारत में की जाती हैं. इस दिन वृंदावन की परिक्रमा शुरू कर दी जाती हैं. महिलायें आँवला नवमी की पूजा पुरे विधि विधान के साथ करती हैं. यह पूजा संतान प्राप्ति एवम पारिवारिक सुख सुविधाओं के उद्देश्य से की जाती हैं.
भगवान विष्णु का रूप है आंवले का पेड़
पद्म पुराण में बताया गया है कि भगवान शिव ने कार्तिकेय को कहा है आंवला वृक्ष साक्षात विष्णु का ही स्वरूप है. यह विष्णु प्रिय है और इसका ध्यान करने भर से ही गोदान के बराबर फल मिलता है. आंवले के पेड़ के नीचे श्रीहरि विष्णु के दामोदर स्वरूप की पूजा की जाती है. अक्षय नवमी की पूजा संतान प्राप्ति एवं सुख, समृद्धि एवं कई जन्मों तक पुण्य क्षय न होने की कामना से किया जाता है. इस दिन लोग परिवार सहित आंवला के पेड़ के नीचे भोजन तैयार कर ग्रहण करते हैं. इसके बाद ब्राह्मणों को द्रव्य, अन्न एवं अन्य वस्तुओं का दान करते हैं.
आंवला नवमी का महत्व
आंवला नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि आंवले के पेड़ में सदैव भगवान विष्णु वास करते हैं. आंवला नवमी पर लोग पवित्र नदी में स्नान, ध्यान, दान आदि करके भगवान से हर मनोकामना को पूरी करने के लिए प्रार्थना करते हैं.
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