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नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि सरकार के सभी फैसलों को संदेह से देखा जायेगा तो उसका कामकाज ही ठप हो जाएगा। न्यायालय ने अहमदाबाद में एक निजी कंपनी के सहयोग से अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवा शहर का विकास करने के गुजरात सरकार के निर्णय को सही ठहराते हुए यह टिप्पणी की। राज्य सरकार के इस निर्णय पर नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ने आपत्ति की थी।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हालांकि संसदीय प्रणाली में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक मुख्य व्यक्ति है लेकिन शासन तो सरकार करती है और वही जनता के प्रति जवाबदेह है। न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति ए के सीकरी की खंडपीठ ने कहा कि निविदा आमंत्रित नहीं करने या सार्वजनिक नीलामी नहीं होने के आधार पर सरकार की कार्रवाई को मनमाना या अनुचित नहीं ठहराया जा सकता है।
न्यायाधीशों ने कहा कि यदि शासन के प्रत्येक निर्णय को बारीकी और संदेह की निगाह से परखा जायेगा तो प्रशासन ही ठहर जाएगा और फैसला लेने वालों में पहल करने का उत्साह ही खत्म हो जाएगा। न्यायाधीशों ने कहा कि फैसला करने वालों की कार्रवाई पर टिप्पणी करना या उनकी आलोचना करना आसान है। कई बार शासन या उसके प्रशासनिक प्रधाकारियों द्वारा लिए गए निर्णय गलत हो सकते हैं और कई बार अपेक्षित परिणाम मिल सकते हैं। संसदीय लोकतंत्र में आलोचना का हमेशा स्वागत है लेकिन सदाशयता और अच्छी मंशा से किए गए फैसलों का अनादर नहीं किया जा सकता भले ही अंतत: ऐसा निर्णय गलत ही क्यों न हो जाए।
इस मामले में सरकार ने गुजरात इंटरनेशनल फाइनेशियल टेक सिटी लि. नाम से संयुक्त उपक्रम के लिये 22 मार्च 2011 को इंफ्रास्ट्रक्चर लीजिंग एंड फाइनेन्शियल सर्विसेज लिमिटेड के साथ समझौता किया था और सरकार ने इस उपक्रम के लिए 412 एकड़ भूमि आबंटित की थी। (एजेंसी)