बंगाल के चुनावी जंग को फतह करने के लिए भाजपा इस बार एड़ी-चोटी का जोर लगाने में जुटी हुई है. बंगाल में एक के बाद एक भाजपा की रैलियों का रेला लगा हुआ है. इन दिनों बंगाल में कई BJP नेता डेरा डाले बैठे हैं. लेकिन इनमें तीन नाम बेहद खास हैं.


दीदी की टेंशन बढ़ाने वाले BJP के 'त्रिदेव'


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बंगाल में बीजेपी (BJP) का जोश हाई है, उसे पूरा यकीन है कि इस बार वो ममता बनर्जी का किला ध्वस्त करने में कामयाब हो जाएगी. आपको भाजपा के उन 3 धुरंधरों के बारे में जानना चाहिए जो अपनी रणनीति से दीदी की टेंशन बढ़ा रहे हैं.


1). दीदी के खतरे की पहली घंटी 'अमित शाह'


अमित शाह (Amit Shah) को भाजपा का चाणक्य यूं ही नहीं कहा जाता है, इसके पीछे उनकी कुशल रणनीति और उनकी सियासी काबिलियत का अहम योगदान है. अमित शाह बंगाल में भगवा का परचम लहराने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. उनकी सबसे खास बात ये है कि वो ग्राउंड लेवल पर होम वर्क करते हैं. इसीलिए वो ममता बनर्जी के लिए खतरे की पहली घंटी माने जा रहे हैं.



अमित शाह बंगाल में हर बड़े मंदिरों में पहुंच रहे हैं, बंगाल से जुड़े महापुरुष के अहम स्थानों पर लगातार दौरा कर रहे हैं. सॉफ्ट हिन्दुत्व के मुद्दे पर वोटरों को अपनी ओर आकर्षित करने के उन्होंने कई बड़े ऐलान भी किए हैं.


बागियों को आकर्षित करने का हुनर


शाह का एक बड़ा हुनर ये भी है कि वो कमजोर कड़ी पर ऐसा घातक प्रहार कर रहे हैं कि वो टूट ही जाता है. ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के खासमखास शुवेंदु अधिकारी इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं. बंगाल में दीदी से नाराज नेताओं को लगातार भाजपा में शामिल किया जा रहा है.



पश्चिम बंगाल में अब तक कुल 19 विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया है, जिसमें से 15 से 16 विधायक TMC खेमे के हैं. करीब-करीब सभी विधायकों का अमित शाह ने खुद भाजपा में स्वागत किया है.


200 से अधिक सीटें जीतने का दावा


अमित शाह ने ये तक दावा कर दिया है कि विधानसभा चुनाव में बीजेपी 200 से ज्यादा सीटें जीतेगी. उनका ये दावा हवा-हवाई नहीं है. शाह ने पश्चिम बंगाल में पहले दलित के घर भोजन किया, फिर किसान के घर और फिर एक लोक गायक घर.. मतुआ समाज को आकर्षित करने के लिए भी उन्होंने विशेष नीति अपनाई है.


प्रदेश में SC/ST वोटबैंक 34 फीसदी है, मतुआ समाज का करीब 50 सीटों पर असर है. अमित शाह के बाद अगर भाजपा के त्रिदेव में दूसरे शख्स की बात करें तो उनका नाम है कैलाश विजयवर्गीय..


2). दीदी के खतरे की दूसरी घंटी 'कैलाश विजयवर्गीय'


ममता के किले को भेदने के लिए बंगाल में बीजेपी के एक खतरनाक सेनापति कैलाश विजयवर्गीय को तैनात किया गया है. उन्हें पार्टी वर्ष 2015 में ही पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया और पश्चिम बंगाल में बीजेपी को मजबूत करने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी.



कैलाश विजयवर्गीय इस जिम्मेदारी को बखूबी निभा भी रहे हैं. अब तक उन्होंने सैकड़ों टीएमसी कार्यकर्ताओं को भाजपा से जोड़ा है. इसी साल जनवरी के महीने में उन्होंने दीदी को तगड़ा झटका देने वाला बयान भी दिया था.


विजयवर्गीय के संपर्क में दीदी के कई विधायक


उन्होंने कहा था कि 'मेरे पास 41 विधायकों की सूची हैं, जो बीजेपी में आना चाहते हैं. मैं उन्हें बीजेपी में शामिल करूं तो बंगाल में सरकार गिर जाएगी. हम देख रहे हैं कि किसे लेना है और किसे नहीं. अगर छवि खराब है किसी की तो हम नहीं लेंगे.'


विजयवर्गीय की कुशलता को समझना है तो 2014 में हरियाणा विधानसभा के नतीजों को याद कर लीजिए. जब उन्हें भाजपा चुनाव अभियान का प्रभारी बनाया गया था. उस वक्त उन्होंने खुद को साबित किया था और अब उनके लिए बंगाल चुनाव एक अग्निपरीक्षा की तरह है. दीदी को जड़ से उखाड़ने के लिए कैलाश विजयवर्गीय 5 वर्षों से बीजेपी जमीन मजबूत कर रहे हैं.


3). दीदी के खतरे की तीसरी घंटी 'दिलीप घोष'


दिलीप घोष RSS के बैकग्राउंड से आते हैं, वो 2014 में भाजपा के साथ आए और उन्हें पश्चिम बंगाल राज्य का महासचिव नियुक्त कर दिया गया. महज एक साल में उन्हें पहली बार भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी.



इसके बाद 2017 में उन्हें दोबारा पश्चिम बंगाल इकाई के लिए भाजपा अध्यक्ष बनाया गया. ममता के लिए दिलीप घोष किस तरह खतरनाक साबित हो रहे हैं इसे समझना है तो दीदी की उस बात को याद करना होगा, जो वो अक्सर रैलियों में कहती रहती हैं. वो बंगाली Vs बाहरी का मुद्दा उठाती हैं.


दिलीप घोष बंगाल की धरती से आते हैं, ऐसे में दीदी के इस एजेंडे पर दिलीप घोष पानी फेरते दिख रहे हैं. दिलीप घोष के नेतृत्व में बंगाल में भाजपा लगातार मजबूत हो रही है. क्योंकि भाजपा को ये बात अच्छे से मालूम है कि उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है और पाने के लिए सबकुछ है.


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यही वजह है कि बंगाल में बीजेपी फ्रंटफुट पर खेल रही है और आक्रामक अंदाज में दिखाई दे रही है. ये तीन खतरे के घंटी दीदी के लिए सबसे बड़ी मुसीबत माने जा रहे हैं. अमित शाह का दिमाग और उनकी नीति, कैलाश विजयवर्गीय का ग्राउंड वर्क और दिलीप घोष का नेतृत्व निश्चित तौर पर तृणमूल के लिए गले का फांस बनकर उभर रहा है.


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