नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल ने ममता दीदी पर 10 सालों तक भरोसा किया. उन्हें अपना रहनुमा चुना. वो 4 तबके जिन्होंने ममता दीदी को सत्ता दिलाई, जिन्होंने उनकी हुकूमत को दूसरी बार भी मौका दिया वो 4 तबके ममता दीदी से खफा नजर आ रहे हैं.
ये वो 4 किरदार हैं, जो ममता दीदी से दूर होते चले गए हैं. टीएमसी सरकार इनसे किए वायदों पर आज की तारीख में खरी नहीं उतरी और किसान, मुस्लिम, मतुआ और अम्फान पीड़ित ममता का साथ छोड़ने लगे.
ये वो वोट बैंक है जिनको ममता बनर्जी से धोखा मिला. सिंगुर और नंदीग्राम के किसानों ने ममता का साथ दिया था. मुस्लिमों ने लेफ्ट का साथ छोड़ ममता के सिर पर हाथ रखा था. मतुआ समाज ने भी ममता को आशीर्वाद दिया और अम्फान तूफान में तबाही देखनेवाले लोगों ने भी दीदी के हाथों में अपनी तकदीर सौंपी लेकिन उन्हें मिला क्या.
ममता इस तरह से व्यवहार करती हैं जैसे वो खुद विपक्ष में हों और बीजेपी सरकार में हो. मुस्लिम, अम्फान, मतुआ, किसान. इनके बारे में बात करो, सवाल करो तो ममता केंद्र सरकार पर हमला करने लगती हैं.
चक्रव्यूह का पहला व्यूह - किसान
ममता बनर्जी कृषि सुधार बिलों का विरोध कर रही हैं. खुद को किसानों का हितैषी होने की कोशिश में हैं, लेकिन सच्चाई क्या है. जिन किसानों के भरोसे ममता बनर्जी सत्ता तक पहुंची वही. सिंगुर और नंदीग्राम के किसान आज ठगा महसूस कर रहे हैं.
यही नहीं केंद्र सरकार की कृषि सम्मान निधि योजना को पश्चिम बंगाल में लागू नहीं किया गया, जिससे किसानों को बहुत नुकसान हुआ है
ममता बनर्जी ने किसानों की सम्मान निधि रोकी तो पिछले दो सालों में बंगाल के किसानों को 12 हजार का नुकसान हुआ है और बीजेपी के लिए ये बहुत बड़ा मौका था. ऐसे में अपने पहले चुनावी दौरे में पीएम नरेंद्र मोदी ने बंगाल चुनाव में सबसे बड़ा ऐलान किया और किसानों का वोट कमल की तरफ मोड़ दिया.
ममता दीदी के हाथों से किसानों का वोट खिसक रहा है तो अपनी रैलियों में वो माइक पर सिर्फ गुस्सा निकाल पाती हैं. केंद्र सरकार को किसानों का लुटेरा बताने की पूरी कोशिश करती हैं
ऐसा नहीं कि किसानों के लिए ममता ने कुछ किया नहीं. ममता ने सिंगुर के उन किसानों की मदद की जिन्होंने नैनो प्लांट के लिए जमीन देने से इनकार किया था. 2 रुपए किलो के हिसाब से हर महीने 16 किलो चावल और हर महीने 2000 रुपए, इसके अलावा केंद्र के तर्ज पर बंगाल के किसानों को हर महीने 5000 रुपए की मदद, फिर भी बीजेपी ने जिस तरह से किसानों के मन में ये बात भर दी है कि ममता बनर्जी की वजह से किसानों का नुकसान हुआ. चुनाव में ममता बनर्जी के लिए ये चक्रव्यूह तोड़ना बहुत मुश्किल होगा.
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चक्रव्यूह का दूसरा व्यूह - मुसलमान
मुसलमान भी ममता से नाराज हैं और रही बात हिंदुओं की तो वो पहले से ही ममता की उपेक्षा का शिकार रहे हैं. यही वजह भी है कि ममता बनर्जी राम नाम से ही चिढ जाती हैं.
मुसलमानों को दीदी ने सिर्फ वोट बैंक समझा. अब ये मुसलमान समझने लगे हैं क्योंकि मुसलमानों की सियासत करने वाले ही खुद कहने लगे हैं कि ममता राज में मुसलमानों को इस्तेमाल किया गया.
टीएमसी विधायक मनीरुल ने कहा था कि ममता बनर्जी की सरकार में मुसलमान ठगा हुआ महसूस कर रहा है और उसे पुख्ता फुरफुरा शरीफ के पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने कर दिया.
जबकि वो एक वक्त में दीदी के सबसे मजबूत सिपहसालार थे. दीदी फुरफुरा शरीफ जाती थीं, तो अब्बास सिद्दीकी से मिलती थीं. इसका असर ये होता था कि फुरफुरा शरीफ में अपार आस्था रखने वाले बंगाल के मुसलमान दीदी के लिए सबकुछ कर गुजरने को तैयार हो जाते थे, लेकिन अब हवा का रूख बदल चुका है.
एक तरफ पीरजादा अब्बास सिद्दीकी ने ममता से अलग होकर इंडियन सेक्युलर फ्रंट तैयार कर लिया. दूसरी तरफ ममता बनर्जी की मुश्किल बढ़ाने कट्टरपंथी मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी भी बंगाल में आकर ममता को ललकार चुके हैं और इस ललकार पर दीदी आग बबूला हो गईं, ओवैसी को बीजेपी का एजेंट तक करार दे दिया.
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मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप
2012 में प. बंगाल में उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा दिया.
30 हजार इमामों को 2500 रुपये महीना भत्ता का एलान किया.
15 हजार मुअज्जिनों को भी 1500 रुपये महीना भत्ता दिया गया.
2013 में कलकत्ता HC ने इमामों का भत्ता रोक दिया.
हाईकोर्ट ने भत्ते को भेदभाव और फिजूलखर्ची बताया था.
मुस्लिम क्यों हैं बड़ा फैक्टर?
बंगाल में मुसलमानों की आबादी 28% है.
3 जिलों में मुस्लिम वोटर 50 % अधिक हैं.
कई जिलों में 25% से अधिक मुसलमान हैं.
5 मुस्लिम बहुल जिले में 60 विधानसभा सीट हैं.
294 में से 125 सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक.
2016 में इन 125 में 90 सीटों पर TMC जीती थी.
यानी ममता को सत्ता दिलाने में बंगाल के मुसलमानों ने अहम रोल प्ले किया था, लेकिन मुसलमानों की नाराजगी से ममता परेशान हैं. जो ओवैसी, अब्बास सिद्दीकी, कांग्रेस और लेफ्ट में बंट जाएंगे तो बीजेपी की राह और आसान हो जाएगी.
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चक्रव्यूह का तीसरा व्यूह - मतुआ समाज
प्रदेश की करीब 40-50 सीटों पर असर रखने वाला मतुआ समाज साल 2010 से ममता दीदी के साथ रहा. बड़ो मां ने ममता दीदी को मतुआ समाज में शामिल किया और उन्हें इसका संरक्षक बनाया.
बांग्लादेश से वापस लौटे मतुआ शरणार्थियों को उम्मीद थी कि ममता बनर्जी उनकी असल समस्या को समझेंगी और उन्हें नागरिकता देंगी, लेकिन ममता बनर्जी उन्हें जमीन का पट्टा बांटती रहीं और बस दावा करती रहीं कि वे भारत के नागरिक हैं लेकिन नागरिकता देने के भारत सरकार के कानून का विरोध करती रहीं.
बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और मौजूदा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 19 दिसंबर, 2020 को बंगाल में चुनावी रैली कर के शंखनाद किया था और वहां से वादा किया था कि मतुआ समाज को नागरिकता देने के लिए CAA पर वैक्सीनेशन के बाद काम किया जाएगा.
इसके जवाब में ममता बनर्जी ने 21 दिसंबर, 2020 को कोलकाता में पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि, 'मतुआ लोग देश के नागरिक हैं और हमने सभी शरणार्थी कॉलोनियों को मान्यता दी है.
बंगाल के सभी लोग मान्य हैं और वो नागरिक हैं. वो (भारत सरकार) नागरिकों की किस्मत तय नहीं कर सकते, वो अपने आपको देखें. हम इसके (CAA) के विरोध में हैं, NPA और NRC के विरोध में हैं.'
मतुआ समाज ने ममता दीदी को दो बार मौका दिया, ये सोचकर कि उनकी नागरिकता के लिए ममता दीदी काम करेंगी, लेकिन सिर्फ आश्वासन मिलने से मतुआ ने 2019 लोकसभा चुनाव में अपना रुख बीजेपी की ओर मोड़ दिया और बीजेपी ने भी इस बार का दांव खेल दिया है, CAA का वादा कर दिया है.
मतुआ समाज को लगा कि ममता बनर्जी से सिर्फ बातें सुनने को मिल रही हैं, ऐसे में बीजेपी ने मतुआ की नागरिकता के मसले को लपक लिया और पहले साल 2019 में CAA का वादा किया और फिर 2021 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए भी अमित शाह ने 11 फरवरी 2021 को मतुआ समाज के हेडक्वार्टर ठाकुरनगर में रैली करते हुए CAA लाने का वादा किया.
अमित शाह ने ज़ी मीडिया के कोलकाता कान्क्लेव में भी बोलते हुए कहा कि, “CAA सिर्फ पश्चिम बंगाल नहीं पूरे देश में लागू किया जाएगा और गैरमुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता दी जाएगी और जब तक CAA लागू नहीं होता तब तक शरणार्थियों को एक्सटेंडेड वीजा दिया जाएगा, किसी को भारत से बाहर नहीं किया जाएगा”
ममता बनर्जी ने जमीन के पट्टे दिए लेकिन मतुआ समाज ममता से नाखुश है, उन्हें पता है कि उन्हें नागरिकता केंद्र सरकार ही दे सकती है और नागरिकता मिलने पर ही उन्हें रोजगार मिलेगा, उन्हें सरकारी सुविधाएं मिलेंगी. हालांकि ममता बनर्जी इसे चुनावी लॉलीपॉप करार देती हैं.
जाहिर है मतुआ समाज फिलहाल चुनावी फेर में फंसा है, लेकिन ममता बनर्जी को चक्रव्यूह में फंसा कर रखा है. मतुआ के लिए ममता की कोशिशें काम करती नजर नहीं आ रहीं. ऐसे में 2021 के लिए दीदी का सत्ता के लिए सफर कहीं CAA की टक्कर से डिरेल ना हो जाए.
चक्रव्यूह का तीसरा व्यूह - अम्फान तूफान पीड़ित
ममता राज में इस कदर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं, कि अम्फान पीड़ितों को भी नहीं छोड़ा जा रहा. मदद के नाम पर कटमनी का बड़ा खेल टीएमसी के नेता करते हैं.
जब अम्फान तूफान आया तो सुंदरबन के बाली द्वीप में भी भारी तबाही मची. 16 जिलों में लोगों के कच्चे घर उड़ गए, लाखों लोग प्रभावित हुए, कुदरत के जिस कहर से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को एक हजार करोड़ रुपये दिए, लेकिन बीजेपी का आरोप है कि ममता राज में उस मदद में कटमनी लगा दी गई. केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने कट कल्चर की बात अपने भाषणों में कही.
यानी पीड़ितों को मदद देने का दावा तो किया गया, लेकिन जख्म पर मरहम की बजाय उसे कुरेद दिया गया. क्योंकि जिन पीड़ितों के पास दो वक्त की रोटी के पैसे नहीं थे. सबकुछ बर्बाद हो गया था. वहां टीएमसी के नेता पैसे मांग रहे थे, कटमनी का खेल सिर्फ अम्फान तूफान पीड़ितों के साथ ही नहीं हुआ, बल्कि दूसरी सरकारी योजना में भ्रष्टाचार के आरोप लगे. कटमनी पर ममता बनर्जी खुद भी नाराजगी जता चुकी हैं, लेकिन लगता नहीं कि पश्चिम बंगाल में कट कल्चर खत्म हुआ है.
अम्फान तूफान में राहत के लिए मिले केंद्र सरकार की राशि का दुरुपयोग करने पर जब हाईकोर्ट ने CAG जांच कराने का आदेश दिया, तो राज्य सरकार ने कोर्ट में गुहार लगाई कि CAG जांच की जरूरत नहीं है और ये भी पश्चिम बंगाल के चुनाव में एक सियासी हथियार बन गया.
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