नई दिल्ली: चुनावी दंगल विपक्ष की जमीन पर लड़ने की रणनीति के तहत ‘बेहद मजबूत उम्मीदवार’ के साथ कांग्रेस की कर्नाटक इकाई के अध्यक्ष डी. के. शिवकुमार को चुनौती दे रही भाजपा को कनकपुरा में सफलता मिलेगी या नहीं यह देखने वाली बात होगी. बेंगलुरु के बाहरी हिस्से में स्थित रामनगर जिले की कनकपुरा सीट को शिवकुमार का गढ़ माना जाता है और 10 मई को होने वाले चुनाव में भाजपा की कामयाबी या हार पर सबकी प्रमुखता से नजर रहेगी. आश्चर्यजनक कदम उठाते हुए भारतीय जनता पार्टी ने वोक्कालिगा समुदाय से ताल्लुक रखने वाले वरिष्ठ नेता व मंत्री आर. अशोक को अपना उम्मीदवार बनाया है.
2008 से कनकपुरा से चुनाव लड़ रहे हैं डीके शिवकुमार
वोक्कालिगा समुदाय और शिवकुमार के गढ़ में भाजपा कांग्रेस को चुनौती दे रही है. मजेदार बात यह है कि जद(एस) ने भी वोक्कालिगा समुदाय के नेता बी. नागराजू को इस सीट से अपनी उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस नेता शिवकुमार सात बार विधायक निर्वाचित हुए हैं, जिनमें से 2008 से अभी तक तीन बाद वह कनकपुरा से चुने गए हैं. वह चौथी पार इस सीट से निर्वाचन की इच्छा से चुनाव मैदान में हैं. शिवकुमार इससे पहले 1989 से लगातार चार बार साठनुर से निर्वाचित हुए और परिसीमन के बाद विधानसभा सीट समाप्त होने के कारण वह 2008 से कनकपुरा से चुनाव लड़ रहे हैं.
शिवकुमार ने 2018 के चुनाव में 1,27,552 वोट प्राप्त किए और जनता दल (सेक्युलर) के उम्मीदवार नारायण गौड़ा (47,643) को 79,909 वोटों के अंतर से हराया. शिवकुमार ने 2013 के चुनाव में जद(एस) के पीजीआर सिंधिया को 31,424 वोटों से और 2008 में भी जद(एस) के डी. एम. विश्वनाथ को 7,179 वोटों से हराया. कहा जाता है कि कनकपुरा सीट से भाजपा का प्रदर्शन 2018 विधानसभा चुनाव में सबसे अच्छा रहा था और उसकी उम्मीदवार नंदीनी गौड़ा को 6,273 वोट मिले थे. उस दौरान पार्टी के हिस्से में करीब 3.37 प्रतिशत वोट पड़े थे. वहीं 2013 में पार्टी को महज 1,807 वोट मिले थे.
डीके शिवकुमार से पहले किसका गढ़ था कनकपुरा?
कनकपुरा के राजनीतिक परिदृष्य में शिवकुमार के प्रवेश से पहले यह सीट जनता पार्टी/जनता दल का गढ़ हुआ करता था और 1983 से 2004 तक सिंधिया लगातार छह बार चुनाव जीते थे. जनता परिवार के वरिष्ठ नेता रामकृष्ण हेगड़े ने 1983 में मुख्यमंत्री बनने के बाद इस सीट से उपचुनाव लड़ा था. राजनीतिक हलके में ‘डीके’ के नाम से लोकप्रिय शिवकुमार कर्नाटक में कांग्रेस के सत्ता में आने पर मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार हैं. शिवकुमार की चुनावी लोकप्रियता में स्थिर गति से हो रही वृद्धि के मद्देनजर उनके समर्थकों का मानना है और आशा है कि कांग्रेस नेता एक लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत दर्ज करेंगे और इस बार मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन, भाजपा वर्तमान राजनीतिक परिदृष्य में बदलाव का प्रयास कर रही है और विधानसभा क्षेत्र से शिवकुमार की धाक खत्म करना चाहती है.
आलोचक इस सीट को व्यंग्यात्मक रूप से ‘रिपब्लिक ऑफ कनकपुरा’ कहते हैं और कांग्रेस नेता पर आरोप लगता रहता है कि उन्होंने क्षेत्र में इस कदर पकड़ बना ली है कि विपक्ष के लिए कोई जगह नहीं बची है. शिवनहल्ली में चुनाव प्रचार के दौरान ‘पीटीआई/भाषा’ से बातचीत में भाजपा नेता अशोक ने कहा कि उनकी उम्मीदवारी के बाद क्षेत्र में दो दशक में पहली बार सही मायने में चुनाव हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि क्षेत्र में शिवकुमार के खिलाफ और भाजपा के पक्ष में लहर है. अशोक ने कहा, 'मेरी पहली प्राथमिकता लोगों को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का भरोसा दिलाना है. मैं वह जरिया हूं, जिसके कारण लोग पिछले 20 साल का गुस्सा वोटों के माध्यम से निकालेंगे.'
'मुझे कचरे से सोना पैदा करना है, यह चुनौती है'
उन्होंने कहा कि वह पार्टी के निर्देशों पर कनकपुरा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और उनका काम उस सीट से चुनाव जीतना और पार्टी को मजबूत बनाना है जहां भाजपा की जरा भी माजूदगी नहीं है. उन्होंने कहा, 'मुझे कचरे से सोना पैदा करना है, यह चुनौती है.' उन्होंने कहा, 'इससे पहले जब भाजपा उम्मीदवार नामांकन के लिए जाते थे तो महज 10 लोग साथ होते थे. इसबार मेरे साथ 5,000 लोग आए.' अशोक अपनी परंपरागत सीट बेंगलुरु के पद्मनाभनगर से भी चुनाव लड़ रहे हैं. दरअसल अशोक के छोटे बेटे अजय अशोक (30) लगातार कनकपुर में बने हुए हैं और चुनाव का प्रबंधन कर रहे हैं. मीडिया में आम तौर पर ‘कनकपुरा बांदे’ (कनकपुरा के चट्टान) कहे जाने वाले शिवकुमार को अपनी जीत का भरोसा है और नामांकन भरने के बाद अभी तक क्षेत्र में नहीं गए हैं.
इस दौरान उन्होंने कहा, 'मैं यहां उम्मीदवार नहीं हूं, क्षेत्र का प्रत्येक घर और परिवार खुद को उम्मीदवार मानते हुए चुनाव लड़ेगा, क्योंकि पिछले 35 साल में मैंने उनकी सेवा की है...' अशोक की उम्मीदवारी के बारे में उन्होंने कहा, 'में उन्हें (अशोक) शुभकामनाएं देता हूं, राजनीति में लड़ाई होनी चाहिए, मेरे लिए यह नयी बात नहीं है, मैंने 1985 में एच. डी. देवेगौड़ा के खिलाफ चुनाव लड़ा था, बाद में एच. डी. कुमारस्वामी के खिलाफ लड़ा, मेरा जीवन संघर्ष है, मैं लड़ता रहूंगा.'
हालांकि उन्होंने कनकपुरा के साथ अशोक के ‘संबंध’ और सीट से उन्हें डम्मीदवार बनाने की जरूरत पर सवाल उठाया. शिवकुमार को 1985 में साठनूर से देवे गौड़ा के खिलाफ हार मिली थी.
अशोक को मैदान में उतारकर बीजेपी ने किया हैरान
कनकपुरा के मतदाताओं का एक हिस्सा ‘माटी के बेटे’ शिवकुमार की जीत को लेकर आश्वस्त है, और वे चाहते हैं कि उनका नेता मुख्यमंत्री बने. हालांकि कुछ लोगों का यह भी कहना है कि भाजपा ने अशोक को मैदान में उतारकर जो चौंकाने वाला फैसला लिया है, वह चिंता पैदा कर रहा है. इन मतदाताओं ने इस ओर भी इशारा किया कि पहली बार शिवकुमार की पत्नी उषा शिवकुमार अपने पति के लिए गहन चुनाव प्रचार कर रही हैं.
शिवकुमार स्वयं कांग्रेस उम्मीदवारों के पक्ष में राज्य में घूम रहे हैं, उनके भाई व बेंगलुरु ग्रामीण सीट से सांसद डी. के. सुरेश कनकपुरा का प्रभार संभाल रहे हैं. भाजपा द्वारा अशोक जैसा ‘मजबूत उम्मीदवार’ उतारे जाने से से उत्साहित मतदाताओं का दावा है कि पार्टी को दो से पांच हजार वोटों के अंतर से जीत मिलेगी. भाजपा कार्यकर्ता अश्वथ नारायण और मंजूनाथ राव ने कहा, 'यहां कई मुद्दे हैं जैसे बान्नीमुकोद्लु, हुंसनाहाल्ली, सरासाद्दीनादोद्दी, जहां इरूला जैसे घूमंतु लोग रहते हैं, वहां विकास नहीं हुआ है.'
(इनपुट- भाषा)
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