पूर्वी उत्तर प्रदेश में 'हाथ' छुड़ाने के लिए बेताब हो रहे हैं कांग्रेसी

एक तरफ हरियाणा-महाराष्ट्र में जीत की दौड़ में बने रहने के लिए कांग्रेस मशक्कत कर रही है तो दूसरी तरफ अन्य प्रदेशों में उसके सबसे करीबी और खास माने जाने वाले अपने हाथ छुड़ाकर जाते दिख रहे हैं. चुनावी माहौल में इस तरह की आपाधापी से कांग्रेस की शीर्ष नेतृत्व के माथे पर शिकन है तो साथ ही वह यह भी नहीं समझ पा रही है कि इस समस्या से कैसे निपटे. पिछले दिनों रायबरेली से विधायक अदिति सिंह के बागी तेवर पर कांग्रेस में रार अब भी जारी है.

Last Updated : Oct 19, 2019, 03:30 PM IST
पूर्वी उत्तर प्रदेश में 'हाथ' छुड़ाने के लिए बेताब हो रहे हैं कांग्रेसी

लखनऊः इस समय कांग्रेस की स्थिति दोराहे पर खड़े उस राही की तरह है जो पसोपेश में है कि किधर जाए. एक रास्ते पर तो दो राज्यों में विधानसभा चुनाव की लड़ाई अंतिम छोर पर है तो दूसरे रास्ते से पार्टी के अपने कहे जाने वाले दिग्गज एक-एक करके बढ़े जा रहे हैं. जो नहीं गए हैं वे भी आंखे तो दिखा ही रहे हैं. कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व माथे पर शिकन लिए वहीं रुका है और समझ ही नहीं पा रहा है कि इस समस्या का निपटारा कैसे हो. चुनाव पर ध्यान दें या फिर जाने वालों से रुक जाने की अपील करें. खास बात यह है कि जाने वालों की लिस्ट में ऐसे नाम शामिल हैं, जिनसे कभी पार्टी नेतृत्व की दांत काटी रोटी रही है, या फिर प्रदेश में जिनके कंधों पर जीत का सारा दारोमदार रहा है. इन सभी पर डालते हैं एक नजर

राजकुमारी रत्ना सिंह, प्रतापगढ़


पूर्व विदेश मंत्री स्व. राजा दिनेश सिंह की बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह के गांधी परिवार से लंबे समय तक अच्छे संबंध रहे हैं. कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा की सबसे करीबी मानी जाने वाली राजकुमारी ने बीते 15 अक्टूबर को हाथ छुड़ाकर उसी हाथ में कमल थाम लिया. गड़वारा में जनसभा के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें भाजपा की सदस्यता दिलाई. उनके इस कदम से कांग्रेस को गहरा झटका लगा है. राजा दिनेश सिंह प्रतापगढ़ से चार बार और राजकुमारी रत्ना सिंह यहां से तीन बार (1996, 1999, 2009) में सांसद रह चुकी हैं. बताया जाता है कि कांग्रेस के टिकट पर 2019 का लोकसभा चुनाव भी उन्होंने बेमन से लड़ा था और इस दौरान ही कांग्रेस से अलग होने के संकेत दिए थे. हालांकि प्रियंका वाड्रा ने उनके लिए प्रचार किया था, लेकिन राजकुमारी को हार ही मिली थी.
 
अदिति सिंह, रायबरेली


रायबरेली से विधायक अदिति सिंह बीते 15 दिनों से चर्चा में बनी हुई हैं. उनके उठाए हर कदम लगातार पार्टी से बगावत का संकेत दे रहे हैं, लेकिन अदिति अभी तक इसे नकारती ही आ रही हैं. गुरुवार को वह जब सीएम योगी आदित्यनाथ से मुलाकात करने पहुंची तो यह मामला तूल पकड़ गया. इस पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने उनकी आलोचना की व उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया है. इससे पहले अदिति सिंह 150वीं गांधी जयंती के मौके पर विधानसभा के विशेष सत्र में पहुंची थीं जबकि कांग्रेस ने इसका विरोध किया था. इसके पहले भी वह पार्टी लाइन से विरुद्ध जाकर अनुच्छेद 370 मामले में भाजपा सरकार का समर्थन कर चुकी हैं. अदिति की ओर से लगातार अपनाया जा रहा यह रवैया कांग्रेस से बगावत का ही संकेत दे रहा है.

संजय सिंह व अमिता सिंह, अमेठी 


कांग्रेस का गढ़, राहुल गांधी की पैतृक सीट अमेठी में तो सबकुछ 3 महीने पहले ही बिगड़ चुका है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में गिने जाने वाले अमेठी के संजय सिंह ने 30 जुलाई को पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. उनकी पत्नी अमिता ने भी इसी के साथ कांग्रेस छोड़ दी थी। संजय असम से कांग्रेस के राज्यसभा सांसद थे और इस पद से भी उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था. संजय ने तब कहा था कि कांग्रेस में संवाद की बेहद कमी है और यह पार्टी अभी भी अतीत में है. उसे भविष्य का कुछ भी नहीं पता.
अमिता सिंह ने भी बीजेपी में शामिल होने की बात कही थी.

महाराष्ट्र-हरियाणा में चुनावी रण में लड़ रही कांग्रेस को इधर उत्तर प्रदेश में 11 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव से भी जूझना है. यहां भी 21 अक्टूबर को ही मतदान होने वाले हैं. ऐसे में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के लिए परेशानी का दौर है कि वह इन चुनावों में जीत के हथकंडे अपनाए या फिर छूटते जा रहे हाथों को दोबारा सहेजने की कोशिश करे. 

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