खड़गे की नौकरशाहों से अपील, निडर होकर करें काम, असंवैधानिक तरीकों के आगे न झुकें

खड़गे ने कहा-संस्थाओं की स्वतंत्रता सर्वोपरि है, क्योंकि प्रत्येक सिविल सेवक संविधान की शपथ लेता है कि वह अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करेगा.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jun 3, 2024, 10:46 PM IST
  • खड़गे ने लिखा खत.
  • कांग्रेस अध्यक्ष की अपील.
खड़गे की नौकरशाहों से अपील, निडर होकर करें काम, असंवैधानिक तरीकों के आगे न झुकें

नई दिल्ली. लोकसभा चुनाव की मतगणना से एक दिन पहले कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे देश के नौकरशाहों से अपील की है कि कि वे संविधान का पालन करें, किसी असंवैधानिक तरीके के आगे नहीं झुकें. साथ ही खड़गे ने अधिकारियों से कहा-बिना किसी डर के अपने कर्तव्य का निर्वहन करें. खड़गे ने नौकरशाहों और अधिकारियों के नाम जारी अपील में कहा-मैं भारत के निर्वाचन आयोग, केंद्रीय सशस्त्र बलों, विभिन्न राज्यों की पुलिस, सिविल सेवकों, जिलाधिकारियों, स्वयंसेवकों और आप में से हर एक को बधाई देना चाहता हूं जो इस विशाल और ऐतिहासिक कार्य के क्रियान्वयन में शामिल थे.

'संस्थाओं की स्वतंत्रता सर्वोपरि'
खड़गे ने कहा-संस्थाओं की स्वतंत्रता सर्वोपरि है, क्योंकि प्रत्येक सिविल सेवक संविधान की शपथ लेता है कि वह अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करेगा और संविधान और कानून के अनुसार सभी प्रकार के लोगों के साथ बिना किसी भय या पक्षपात, स्नेह या द्वेष के सही व्यवहार करेगा. इस भावना से हम प्रत्येक नौकरशाह और अधिकारी से - पदानुक्रम के ऊपर से नीचे तक, संविधान की भावना के अनुसार अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने की अपेक्षा करते हैं....

नेहरू से लेकर राजेंद्र प्रसाद तक का जिक्र
खड़गे ने तथ्य को रेखांकित किया कि कांग्रेस पार्टी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. बी.आर. आंबेडकर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद, सरोजिनी नायडू और हमारे अनगिनत प्रेरणादायी संस्थापक सदस्यों द्वारा तैयार संविधान के माध्यम से न केवल मजबूत शासन का ढांचा तैयार किया, बल्कि नौकरशाही और नागरिक समाज में हाशिए पर पड़े लोगों को स्वायत्त संस्थानों में प्रतिनिधित्व देकर सकारात्मक कार्रवाई भी सुनिश्चित की.

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा-हम तेजी से देख रहे हैं कि कुछ संस्थाएं अपनी स्वतंत्रता को त्याग रही हैं और बेशर्मी से सत्ताधारी पार्टी के हुक्मों का पालन कर रही हैं. कुछ ने पूरी तरह से उनकी संवाद शैली, उनके कामकाज के तरीके और कुछ मामलों में तो उनकी राजनीतिक बयानबाजी को भी अपना लिया है. यह उनकी गलती नहीं है. तानाशाही शक्ति, धमकी, बलपूर्वक तंत्र और एजेंसियों के दुरुपयोग के साथ, सत्ता के आगे झुकने की यह प्रवृत्ति उनके अल्पकालिक अस्तित्व का एक तरीका बन गई है. हालांकि, इस अपमान में संविधान और लोकतंत्र हताहत हुए हैं.

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