नई दिल्ली: उदित नारायण एक किसान के बेटे थे. ऐसे में उदित नारायण के पिता चाहते थे कि वो डॉक्टर या इंजीनियर बनें तभी वो कुछ पैसे कमा पाएंगे. उस समय उदित नारायण की मां लोगों के घरों में गाने गाया करती थीं. लोकगीत गाने वाली उनकी मां ने उनसे कहा था कि पढ़ लिख लो क्योंकि ये जरूरी है बाकि तुम अगर गायक बनना चाहते हो तो वो भी बन जाना. पांच-छह साल की उम्र से उदित नारायण ने गांव के मेलों और संगीत भजन संध्याओं में गाना शुरू कर दिया था.
नेपाल में करते थे नौकरी
दसवीं पास करने के बाद उदित नारायण नेपाल की राजधानी काठमांडू चले गए. वहां के एक रेडियो स्टेशन पर लोकगीत गाया करते जिससे उन्हें मासिक 100 रुपए का ही मेहनताना मिलता. उदित नारायण कहते हैं कि 100 रुपए में उस जमाने में सिर्फ चाय पीने का ही खर्चा निकल पाता. ऐसे में रात को 5 स्टार होटल्स में जाकर गाना गाया करता था. बता दें कि इसी के साथ वो नाइट कॉलेज भी कर रहे थे कि तभी इंडियन एंबेसी ने इन्हें संगीत के लिए स्कॉलरशिप दे दी. फिर बंबई का सफर शुरू हुआ.
मोहम्मद रफी के साथ पहला गाना गाया
उदित नारायण फ्री टाइम में जाकर बड़े संगीतकारों की रिकॉर्डिंग सुना करते, जिनसे भी उदित मिलते वो उनकी पर्सनालिटी को देख कहते कि ये लड़का जरूर एक दिन कुछ करेगा. 1980 में '1920' नाम की एक फिल्म में राजेश रोशन ने उदित नारायण को उषा मंगेशकर और मोहम्मद रफी के साथ गाने के लिए खड़ा कर दिया. इसके बाद उदित नारायण की चर्चा हर जगह होने लगी.
घर लौटने का बनाया था प्लान
'कयामत से कयामत तक' में उदित नारायण को कई गाने गाने का मौका मिला. पहले हफ्ते उनकी ये फिल्म कुछ खास नहीं चल पाई. ऐसे में उदित नारायण को लगा कि अब तो काम बंद बोरिया-बिस्तर उठाकर गांव लौटना पड़ेगा. 'अपने गांव लौटो मस्त खेतीबाड़ी करो' उदित नारायण ने मन बना लिया था. फिर दूसरे हफ्ते के खत्म होने के बाद फिल्म ने जो रफ्तार पकड़ी लोग एक-एक डायलॉग पर ताली बजा रहे थे, सभी गानों पर झूम रहे थे. फिल्म हिट हो गई और इसी के साथ उदित नारायण का कहना था कि उनपर भगवान की कृपा हो गई और किस्मत खुल गई.
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