नई दिल्ली: केरल उच्च न्यायालय ने बलात्कार की पीड़िता एक नाबालिक को गर्भपात कराने की अनुमति दे दी है. पीड़िता 28 सप्ताह की गर्भवती है. केरल हाई कोर्ट ने एक चिकित्सकीय बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर पीड़िता को चिकित्सकीय गर्भपात कराने की मंजूरी प्रदान की है.
चिकित्सकीय बोर्ड ने की थी पीड़िता की जांच
चिकित्सकीय बोर्ड ने पीड़िता की जांच की थी और कहा था, ‘‘गर्भावस्था जारी रखने से होने वाली पीड़ा से 14 वर्षीय पीड़िता को मानसिक आघात पहुंच सकता है.’’ अदालत के 12 अगस्त को दिए निर्देश के बाद इस चिकित्सकीय बोर्ड का गठन किया गया था.
अदालत ने बोर्ड के सुझाव पर गौर करते हुए एमटीपी की अनुमति दे दी और याचिकाकर्ता (पीड़िता की मां) को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश भी दिया, जिसमें चिकित्सकीय दल को उनकी (पीड़िता की मां की) जिम्मेदारी पर ‘सर्जरी’ करने का अधिकार दिया गया.
अगर बच्चा बच जाता है तो राज्य करे देखभाल
अदालत ने यह भी कहा कि यदि इस ‘सर्जरी’ के बाद भ्रूण जीवित हो तो अस्पताल यह सुनिश्चित करे कि उच्च चिकित्सकीय उपचार के जरिए उसे बचाया जाए, ताकि वह एक स्वस्थ बच्चे के रूप में विकसित हो सके.
अदालत ने कहा,‘‘यदि याचिकाकर्ता बच्चे की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है, तो बच्चे के सर्वोत्तम हितों और किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम 2015 के वैधानिक प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए राज्य और उसकी एजेंसियां उसकी पूरी जिम्मेदारी लेंगी और बच्चे को चिकित्सकीय मदद एवं सुविधाएं प्रदान करेंगी.
गर्भपात को लेकर क्या है कानून
भारत सरकार ने 2021 में मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी यानी एमटीपी अधिनियम 1971 में संशोधन किया था. कुछ विशेष मामलों में गर्भपात की ऊपरी समय सीमा को बीस हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया गया है. इन श्रेणियों में बलात्कार पीड़ित, अनाचार की शिकार और अन्य कमजोर महिलाओं को रखा गया है. दंड संहिता के तहत गर्भपात कराना अपराध है, लेकिन एमटीपी के तहत ऐसे मामलों में अपवादों को अनुमति है.
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