पिता की हत्या के मामले में हत्यारे बेटे के प्रति सहानुभूति नहीं हो सकतीः सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक बेटे की ओर से अपने पिता की पीट-पीटकर हत्या करने के मामले में दायर अपील पर सुनवाई करते हुए हत्यारे बेटे को राहत देने से इनकार किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तथ्य के बावजूद की पिता की हत्या से पूर्व पिता और बेटा एक साथ बैठकर साथ में शराब पी रहे थे. पिता की हत्या के मामले में हत्यारे बेटे के प्रति सहानुभूति नहीं रखी जा सकती.

Written by - Nizam Kantaliya | Last Updated : Sep 14, 2022, 04:56 PM IST
  • पिता की पीट-पीटकर की गई थी हत्या
  • अपील पर सुनवाई कर रहा था कोर्ट
पिता की हत्या के मामले में हत्यारे बेटे के प्रति सहानुभूति नहीं हो सकतीः सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने एक बेटे की ओर से अपने पिता की पीट-पीटकर हत्या करने के मामले में दायर अपील पर सुनवाई करते हुए हत्यारे बेटे को राहत देने से इनकार किया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तथ्य के बावजूद की पिता की हत्या से पूर्व पिता और बेटा एक साथ बैठकर साथ में शराब पी रहे थे. पिता की हत्या के मामले में हत्यारे बेटे के प्रति सहानुभूति नहीं रखी जा सकती.

जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस पी एस नरसिम्हा की पीठ ने छत्तीसगढ़ के छैरतुराम उर्फ छेनू की ओर से दायर आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए उसे रिहा करने से इनकार कर दिया. पिता की हत्या के दोषी छेनू अब तक इस मामले में 12 साल की सजा काट चुका है और सजा निलंबित कर रिहा करने की मांग की थी.

छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने हत्या के दोषी बेटे की ओर से दायर अपील को खारिज करते हुए सजा निलंबन से इनकार किया था. हाई कोर्ट के इसी आदेश के खिलाफ छेनू ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर 2 बिंदुओं पर राहत की मांग की थी.

पिता के साथ बैठकर पी थी शराब
अपील में कहा गया कि वह नशे में था. वह और उसके पिता साथ बैठकर शराब पी रहे थे. इसके बाद नशे में झगड़ने लगे. इस पर बेटे ने पिता को लकड़ी से मारा, जिससे उनकी मौत हो गई.

हत्या का नहीं था उद्देश्य
दोषी बेटे ने दूसरा तर्क दिया कि उसका पिता की हत्या करने के पीछे कोई उद्देश्य नहीं था. अचानक नशे में यह घटना हुई. जांच के दौरान भी मृतक पिता के पेट में शराब मिली. ऐसे में उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 300 के तहत आरोप तय किए जाने चाहिए थे, लेकिन उसे आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषी घोषित किया गया, जो विधि अनुसार गलत है.

आईपीसी की धारा 300 के अपवाद 4 का तर्क
बचाव पक्ष की ओर से तर्क दिया गया कि बेटे के रूप में उसके द्वारा पिता की हत्या के मामले को आईपीसी की धारा 300 के अपवाद 4 के तहत शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि आरोपी ने पूर्व योजना या पूर्व चिंतन के साथ हत्या नहीं की थी और ना ही क्रूर से क्रूर तरीके से हत्या की. इस मामले में पिता के शरीर पर आई चोटों की प्रकृति यह निर्धारित करने में एक महत्वपूर्ण कारक है कि क्या मृत्यु अचानक हुई लड़ाई के कारण हुई.

आईपीसी की धारा 300 के अनुसार 4 अपवादों को छोड़कर आपराधिक गैर इरादतन किसी भी व्यक्ति का वध करना हत्या है.

अपवाद 4 के अनुसार यदि मानव वध अचानक झगड़ा होने के चलते उपजे आवेश, आवेश की तीव्रता में हुई अचानक लड़ाई में बिना पूर्व चिंतन, अपराधी द्वारा बिना अनुचित लाभ उठाए, बिना क्रूरतापूर्ण तरीका अपनाए या अप्राकृतिक रूप से किया गया हो. वह मानव हत्या का मामला न होकर गैर इरादतन हत्या में शामिल किया जाएगा.

सरकार की ओर से किया गया विरोध
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से इस अपील का विरोध करते हुए कहा गया कि किसी घर के भीतर हुई हत्या के मामले में आरोपी पर ही जिम्मेदारी होती है कि वो खुद को निर्दोष साबित करे. इस मामले में 12 गवाहों ने दोषी बेटे के खिलाफ गवाही देते हुए अपराध होने की स्थापना की है.

आईपीसी की धारा 302 के तहत दोषसिद्धि को विधि अनुसार बताते हुए सरकार की ओर से कहा गया कि मनोकरण बनाम तमिलनाडु राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि चोट की प्रकृति सामान्य थी, जबकि इस मामले में हत्यारे बेटे द्वारा पिता के शरीर पर किए गए वार से 11 गंभीर चोटें आयी हैं.

इस मामले में आरोपी ने अपने पिता की हत्या में क्रूरता की सभी सीमाओं को पार किया है. इसलिए उसे आईपीसी की धारा 300 के तहत लाभ नहीं दिया जा सकता.

क्रूरता की हदें पार
सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद सर्वोच्च अदालत ने इस मामले को मनोकरण बनाम तमिलनाडु राज्य केस में दिए गए सिद्धांतों से अलग मानते हुए कहा कि वर्तमान मामले में आरोपी बेटे ने अपने पिता के साथ क्रूर तरीके से मारपीट की थी जिसके चलते खोपड़ी, छाती और पेट जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर 11 चोटें आईं. मृतक पिता के साथ किस हद तक क्रूरता की गई है ये इससे साबित होता है कि मृतक पिता की उरोस्थि के साथ-साथ दूसरी, तीसरी और चौथी पसली भी टूट गई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तथ्य को स्वीकार किया गया कि आरोपी का अपने पिता की हत्या का कोई पूर्व इरादा नहीं था, लेकिन मृतक के शरीर पर आईं 11 चोटें ये प्रदर्शित करती हैं कि यह मामला मृतक के शरीर के सभी महत्वपूर्ण हिस्सों पर बेरहमी से मारने, लकड़ी के टुकड़े से सिर पर और सिर के विभिन्न हिस्सों पर बार-बार वार करने का मामला है. इस तरह के 11 वार से मृतक के बचने की कोई संभावना नहीं होगी.

आरोपी शायद शराब के नशे में था, लेकिन मारपीट का स्वरूप ऐसा था कि आरोपी के सभी प्रयास मृतक पिता के जीवन को समाप्त करने का था. यह निश्चित रूप से एक क्रूर और क्रूर तरीके से स्थिति का लाभ उठाने वाला कार्य था. फिर भले ही ये पूर्व नियोजित न हो.

सरकार की पॉलिसी से ले सकता है छूट
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में हत्या के दोषी बेटे की सजा निलंबन करने से इनकार किया, लेकिन उसे इस बात की छूट दी कि वह सजा पूरी होने पर सरकार द्वारा रिहा करने की नीति के अनुसार रिहाई के लिए विचार करने के लिए उत्तरदायी होगा.

बेंच ने कहा कि एकमात्र पहलु जिस पर हम विचार करने के इच्छुक हैं, वह राज्य को एक निर्देश जारी करना है कि वह अपीलकर्ता के मामले में छूट के लिए विचार करे, जिस क्षण वह इस तरह के विचार के लिए नीति के अनुसार अनिवार्य सजा को पूरा करता है.

ये था मामला
26 जुलाई 2010 को आरोपी छेनू अपने पिता के साथ बैठकर शराब पी रहा था. किसी बाद पर विवाद होने पर छेनू ने लकड़ी से पीट पीटकर अपने पिता की हत्या कर दी. तेज आवाजें सुनकर मृतक का दूसरा बेटा मौके पर पहुंचा, तब तक पिता की मृत्यु हो चुकी थी. आरोपी बेटे ने बाद में पुलिस और कोर्ट के समक्ष अपने गुनाह को कबूल किया. जांच के बाद पुलिस ने 8 मार्च 2011 को चार्जशीट पेश की. सेशन कोर्ट ने 15 अक्टूबर 2012 को मामले में फैसला सुनाते हुए आरोपी बेटे को आईपीसी की धारा 302 में हत्या का दोषी मानते हुए आजीवन उम्रकैद की सजा सुनाई.  

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