नई दिल्ली: राजस्थान हाई कोर्ट में नए जजों की नियुक्ति में अभी भी देरी हो सकती है. राजस्थान हाई कोर्ट वर्तमान में स्वीकृत जजों के 50 पदों पर 26 जजों के साथ कार्य कर रहा है. 10 नवंबर को जस्टिस प्रकाश गुप्ता की सेवानिवृत्ति के साथ ये संख्या 50 प्रतिशत यानी 25 रह जाएगी.
केंद्र को कुछ नामों पर है आपत्ति
इसके बावजूद राजस्थान हाई कोर्ट में जल्दी नए जजों की नियुक्ति होती नहीं दिख रही है. राजस्थान हाई कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस अकील कुरैशी की ओर से भेजे गए कुछ नामों पर केंद्र सहमत नहीं है. सूत्रों के अनुसार, केंद्र को 16 में से 11 नाम पर कोई आपत्ति नहीं हैं. लेकिन अधिवक्ता कोटे से भेजे गए 70 प्रतिशत नामों पर है.
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को जताई आपत्ति
पूर्व सीजेआई एन वी रमन्ना की अध्यक्षता में 25 जुलाई को उनके कार्यकाल में कॉलेजियम की अंतिम बैठक हुई थी. सूत्रों के अनुसार, इस बैठक के एक दिन बाद 26 जुलाई को ही केंद्र की ओर से सुप्रीम कोर्ट को तीन आपत्तियों के साथ पत्र व्यवहार किया गया था. इसमें पूर्व चीफ जस्टिस अकील कुरैशी द्वारा सेवानिवृत्ति के एक महीने के भीतर कॉलेजियम करने को लेकर भी आपत्ति जताई गई.
वकील कोटे के 70% नाम पर केंद्र असहमत
सूत्रों के अनुसार, हाई कोर्ट की ओर से भेजे गए वकील कोटे के 70 प्रतिशत नाम पर केंद्र सहमत नहीं है. ऐसे में कई अधिवक्ताओं की जांच लंबित होने की जानकारी देते हुए कॉलेजियम से फाइल सेपरेट करने को लेकर भी मार्गदर्शन मांगा गया.
मेरिट का ख्याल नहीं रखने की चर्चा
पहले से ही बनी धारणाओं ने इन चर्चाओं को बल दिया कि राजस्थान कॉलेजियम की ओर से भेजे गए वकील कोटे के नाम में मेरिट का ख्याल नहीं रखा गया. खास तौर से एक ही पार्टी से जुड़े अधिकतर अधिवक्ताओं के नाम, मुख्य न्यायाधीश के निजी सचिव के रिश्तेदार और साथी कॉमरेड के अधिवक्ता पुत्र को लेकर कई अटकलें लगाई जाती रहीं.
न्यायिक कोटे से भेजे गए नामों पर ज्यादा आपत्ति नहीं
केंद्र को न्यायिक कोटे से भेजे गए नाम पर ज्यादा आपत्ति नहीं है, क्योंकि सभी नाम वरिष्ठता के अनुसार भेजे गए हैं और उनके खिलाफ इनपुट हाई कोर्ट रिकॉर्ड में मौजूद होता है. ऐसे में केंद्र पुलिस, आईबी या अन्य बाहरी इनपुट के साथ फाइल कॉलेजियम को भिजवाता है. केंद्र की मंशा रही कि कॉलेजियम ज्यूडिशियल कोटे के नाम और एडवोकेट कोटे के नाम अलग-अलग करने को मंजूरी दे दे.
सूत्र बताते हैं कि केंद्र की ओर से भेजे गए पत्र पर 27 जुलाई को पहली बार कॉलेजियम विचार करने पर सहमत हुआ, लेकिन कुछ कारणों से इसे 4 अगस्त के लिए स्थगित किया गया. 4 अगस्त को हुई बैठक में कॉलेजियम के एक सदस्य इसे भविष्य के लिए छोड़ने पर ठहर गए. इसके बाद इस पत्र पर कोई चर्चा नहीं हुई.
7 सितंबर को वर्तमान सीजेआई की अध्यक्षता में हुए कॉलेजियम ने इस पत्र पर विचार किया. इसके बाद केंद्र को इस मामले में कुछ हद तक सफलता मिली कि कॉलेजियम ने केंद्र को वे नाम भेजने के लिए कहे हैं, जिनकी आईबी व इनपुट पूर्ण हो चुके हैं. ऐसे में अगले कुछ सप्ताह में केंद्र ज्यूडिशियल कोटे के साथ ही एडवोकेट कोटे के 2-3 नाम की फाइल कॉलेजियम को भेज सकता है.
हाई कोर्ट कॉलेजियम ने भेजे थे 16 नाम
राजस्थान हाई कोर्ट में जजों के रिक्त पदों को भरने के लिए पूर्व चीफ जस्टिस अकील कुरैशी की अध्यक्षता में 10 और 11 फरवरी 2022 को हाई कोर्ट कॉलेजियम ने 16 नए नाम की सिफारिश की थी.
एडवोकेट कोटे से भेजे गए ये नाम
हाई कोर्ट कॉलेजियम की ओर से भेजे गए 8 नाम में एडवोकेट कोटे से अनिल उपमन, राजेश महर्षि, सुनिल समदड़िया, अंगद मिर्धा, नुपूर भाटी, संदीप शाह, संजय नाहर और दीपक मेनारिया हैं.
न्यायिक अधिकारियों के कोटे से वरिष्ठता के अनुसार डीजे राजेंद्र सोनी, डीजे अशोक जैन, डीजे एस पी काकड़ा, डीजे योगेंद्र पुरोहित, डीजे भुवन गोयल, डीजे प्रवीर भटनागर, डीजे मदनलाल भाटी और आशुतोष मिश्रा के नाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भेजे गए. न्यायिक अधिकारी कोटे से भी कुल 8 नाम ही भेजे गए थे.
पूर्व चीफ जस्टिस अकील कुरैशी राजस्थान हाई कोर्ट से 6 मार्च 2022 को सेवानिवृत्त हुए थे. सेवानिवृत्ति से करीब 24 दिन पूर्व यानी 10-11 फरवरी 2022 को उनकी तरफ से ये सिफारिशें भेजी गईं. केंद्र सरकार को इसी बैठक को लेकर पहली आपत्ति है. केंद्र के अनुसार रिटायरमेंट से एक माह की अवधि के भीतर चीफ जस्टिस कॉलेजियम नहीं कर सकते थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को पावर है कि वो इस शिकायत को नजरअंदाज कर सकता है. तेलंगाना हाईकोर्ट के भेजे गये नाम भी तत्कालीन चीफ जस्टिस की सेवानिवृति से 26 दिन पूर्व भेजे गये थे.
पहले से था संशय
राजस्थान हाई कोर्ट कॉलेजियम की ओर से भेजे गए इन नामों को लेकर पहले से ही संशय बना हुआ था, लेकिन केंद्र के पास फाइल पहुंचने के बाद एडवोकेट कोटे के कई नामों पर रजामंदी नहीं बन पाने की खबरें आती रहीं. सूत्र बताते हैं कि यही कारण है कि 6 महीने बाद भी ये फाइल केंद्र सरकार के पास जांच के लिए लंबित रहीं थी.
अधिवक्ता कोटे से मेरिट के अनुसार आपराधिक मामलों में जयपुर हाई कोर्ट में सर्वाधिक प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ताओं में अनिल उपमन गिने जाते हैं. इससे पूर्व चीफ जस्टिस इंद्रजीत महांति द्वारा भेजे गये नाम में उनको शामिल नहीं करने पर भी कॉलेजियम के दो सदस्यों ने एतराज जताया था.
हाईकोर्ट द्वारा भेजे गये 8 अधिवक्ताओं में से एक मात्र महिला अधिवक्ता नुपूर भाटी हैं. नुपूर भार्टी राजस्थान हाई कोर्ट के वर्तमान सिटिंग जज जस्टिस पी एस भाटी की पत्नी हैं. लेकिन महिला अधिवक्ताओं में खुद की बेहतर प्रेक्टिस के चलते उनको बड़ा उम्मीदवार माना गया. सूत्रों के अनुसार हाई कोर्ट की ओर से भेजे गए कुल 16 में से एकमात्र महिला अधिवक्ता के नाम पर केंद्र को कोई आपत्ति नहीं है.
सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ताओं के नाम भी
एडवोकेट कोटे से भेजे गए नामों में से दो एडवोकेट राजेश महर्षि और संदीप शाह वर्तमान में कांग्रेसनीत गहलोत सरकार के अतिरिक्त महाधिवक्ता हैं. एडवोकेट अंगद मिर्धा राजस्थान के एक दिग्गज राजनीतिक मिर्धा परिवार से नजदीकी ताल्लुक रखते हैं. अंगद मिर्धा कांग्रेस के दिग्गज और पूर्व केंद्रीय मंत्री रामनिवास मिर्धा के पौत्र हैं.
तीन सीनियर जजों को लेकर भी हैं कई चर्चाएं
राजस्थान हाईकोर्ट में नए जजों की नियुक्ति होने का इंतजार सिर्फ आम पक्षकार और अधिवक्ता ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि हाई कोर्ट के तीन वरिष्ठ जजों को भी इंतजार हैं. राजस्थान हाई कोर्ट के वरिष्ठ जज जस्टिस संदीप मेहता, जस्टिस विजय विश्नोई और जस्टिस पी एस भाटी को लेकर कई चर्चाएं हैं. जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस विजय विश्नोई को जहां राजस्थान कोटे से जल्द ही दूसरे हाई कोर्ट में चीफ जस्टिस नियुक्त किया जा सकता है या उन्हें पदोन्नति देते हुए वरिष्ठता के चलते अन्य हाई कोर्ट में ट्रांसफर भी किया जा सकता है. जस्टिस पी एस भाटी के भी दिल्ली हाईकोर्ट में तबादले की चर्चाएं यदा कदा बाहर आती रही हैं.
बहरहाल राजस्थान हाई कोर्ट में पिछले 7 माह में 6 जज रिटायर हो चुके हैं. वहीं, आगामी 10 नवंबर को एक और पद रिक्त हो जाएगा. इसी बीच नए नाम भेजे जाने को लेकर कानून मंत्रालय द्वारा हाई कोर्ट को पत्र लिखे जाने की खबरें हैं. इसमें नए रिक्त 6 पदों के लिए शीघ्र कॉलेजियम कर नाम भेजने की सिफारिश की गई है. सीजेआई द्वारा भी ऐसे ही एक पत्र सभी हाईकोर्ट को लिखे जाने की भी चर्चा है.
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