आखिर क्यों चर्चा में है 21 साल पुराना 152 करोड़ का घोटाला, जिससे बढ़ सकती है कांग्रेस नेता की मुश्किलें

वर्ष 2001 के दिसंबर के समाप्त होते-होते मुंबई में नए साल का जश्न मनाया जाने लगा था, लेकिन अखबारों में लगातार सुर्खियां बन रहा एक घोटाला देश के 4 राज्यों के हजारों लोगों के लिए नए साल को मायूसी में बदल रहा था.

Written by - Nizam Kantaliya | Last Updated : Sep 12, 2022, 11:14 PM IST
  • नागपुर में दर्ज हुई थी एफआईआर
  • लोगों को नहीं मिल पा रहे थे पैसे
आखिर क्यों चर्चा में है 21 साल पुराना 152 करोड़ का घोटाला, जिससे बढ़ सकती है कांग्रेस नेता की मुश्किलें

नई दिल्लीः वर्ष 2001 के दिसंबर के समाप्त होते-होते मुंबई में नए साल का जश्न मनाया जाने लगा था, लेकिन अखबारों में लगातार सुर्खियां बन रहा एक घोटाला देश के 4 राज्यों के हजारों लोगों के लिए नए साल को मायूसी में बदल रहा था.

लोगों को नहीं मिल पा रहे थे पैसे
नागपुर जिला मध्यवर्ती सहकारी बैंक घोटाला लगातार सुर्खियों में आने लगा था. लोग बैंक के कार्यालय के चक्कर काटने लगे थे, लेकिन उन्हें मेहनत से कमाई अपनी ही राशि नहीं मिल रही थी. वर्ष 2002 का मार्च महीना कई आरोपों और प्रत्यारोप के साथ इस घोटाले की व्यापकता को बयां कर रहा था.

नागपुर में दर्ज हुई थी एफआईआर 
नागपुर के इस घोटाले की आंच अब मुंबई से होते महाराष्ट्र से बाहर गुजरात, दिल्ली और पश्चिमी बंगाल तक पहुंच चुकी थी. मामले में आए दिन अखबारों की सुर्खियां बन रही थी. आखिरकार विशेष लेखा परीक्षक विश्वनाथ असवरे ने बैंक का ऑडिट करके 29 अप्रैल 2002 को 125.60 करोड़ के घोटाले की एफआईआर नागपुर के गणेशपेठ पुलिस थाने में दर्ज करा दी. बाद में कई मुकदमे दर्ज होने पर इस घोटाले की राशि बढकर 152 करोड़ तक पहुंच गई.

बैंक को पहुंचाया बड़ा नुकसान
देश के इतिहास में सहकारी बैंक के इस नए घोटाले का पर्दाफाश हो चुका था. थोड़े दिनों बाद ही बैंक के पूर्व अध्यक्ष सुनील केदार, महाव्यवस्थापक अशोक चौधरी और अन्य लोगों पर धारा 406, 409, 468, 12 बी और 34 के तहत मामला दर्ज किया गया. इस मामले में सुनील केदार मुख्य आरोपी हैं. बैंक के अध्यक्ष रहे केदार पर आरोप है कि उन्होंने अपने कुछ सहयोगियों की मदद से NDCC बैंक के कोष की 152 करोड़ रुपये की रकम का घोटाला कर बैंक को इतनी बड़ी रकम का नुकसान पहुंचाया.

घोटाले में कांग्रेस नेता सुनील केदार का नाम आने के बाद मामले ने तूल पकड़ लिया. केदार महाराष्ट्र के दिवंगत पूर्व मंत्री और नागपुर जिले में सहकारी आंदोलन के प्रणेता रहे छत्रपाल केदार के पुत्र हैं. इस घोटाले में नाम आने के बाद वे सुनील केदार पर राजनीतिक हमले भी बढ़ गए.

सुनील केदार का है राजनीतिक रसूख

1992 में नागपुर जिला परिषद सदस्य के रूप से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले सुनील केदार 1995 में 9वीं महाराष्ट्र विधानसभा में साउनेर से निर्दलीय विधायक चुने गए. 1995 में वे राज्य के बिजली मंत्रालय और परिवहन मंत्रालय के राज्य मंत्री बने. 1996 में उन्हें बंदरगाह मंत्रालयों के राज्य मंत्री बनाया गया. 2004 में 11वीं विधानसभा में भी साउनेर से निर्दलीय विधायक चुने गए. बाद में उन्होंने कांग्रेस ज्वॉइन कर ली और 2009 में साउनेर विधानसभा से कांग्रेस से चुनाव लड़ा. 2014 और 2019 में भी कांग्रेस से साउनेर विधायक बनने में कामयाब रहे. उद्वव ठाकरे के नेतृत्व में महाअघाड़ी सरकार में कांग्रेस कोटे से केदार को कैबिनेट मंत्री भी बनाया गया.

केतन भी बने मुख्य आरोपी
पुलिस में दर्ज एफआईआर में आरोप लगाया गया कि वर्ष 2001-02 में बैंक ने होम ट्रेड लिमिटेड मुंबई, इंद्रमणि मर्चेंट्स प्रा लि कोलकाता, सिंडिकेट मैनेजमेंट सर्विसेस अहमदाबाद व गिल्टेज मैनेजमेंट सर्विसेस मुंबई के जरिए 125 करोड़ रुपये के सरकारी शेयर खरीदे थे. सरकारी प्रतिभूतियों की इस खरीद में भारी अनियमितताएं की गईं. 22 नवंबर 2002 को सीबीआई ने इस मामले में आरोप पत्र दायर किया था.

दलाल की भूमिका में था केतन सेठ
इस मामले में ब्रोकर केतन सेठ, महेंद्र अग्रवाल, श्रीप्रकाश पोद्दार, पूर्व महाप्रबंधक अशोक चौधरी, मुख्य अकाउंटेंट सुरेश पेशकर, सुबोध भंडारा, कनन मेवावाला, नंदकिशोर त्रिवेदी और अमित वर्मा को भी आरोपी बनाया गया. मामले में आरोपी बनाए गए दलाल केतन कांतिलाल सेठ ने इस प्रकरण से जुड़े विविध मुकदमों को मुंबई ट्रांसफर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. उसके खिलाफ नागपुर, अमरावती व अन्य शहरों के अलावा दिल्ली, पश्चिम बंगाल और गुजरात में भी मुकदमे दर्ज किए गए थे. केतन सेठ को बाद में सभी मामलों में आरोपी बनाया गया. इन सभी लेन-देन में वह दलाल की भूमिका में था.

4 राज्यों में दर्ज हुई 19 एफआईआर
मामले में जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, इस घोटाले के तार देश के चारों राज्यों तक फैल गए. इसी के चलते देश के अलग-अलग हिस्सों में कुल 19 एफआईआर दर्ज की गई. दर्ज किए गए 19 मामलों में से एक पश्चिम बंगाल-कोलकाता में, 2 एफआईआर दिल्ली में, 9 एफआईआर गुजरात के अलग-अलग जिलों में और 7 एफआईआर महाराष्ट्र में दर्ज की गई. इन 19 मामलों में कुल 689 गवाहों में से 236 गवाह मुंबई से हैं. 21 साल बाद भी अधिकतर मुकदमे सुनवाई के प्रथम चरण में ही हैं.

हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी देरी
इस घोटाले के मामलों की सुनवाई फास्टट्रैक कोर्ट में कराने को लेकर 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर हुईं. सितंबर 2020 में एक जनहित याचिका पर पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने 18 साल बाद भी ट्रायल पूर्ण नहीं होने पर सख्त नाराजगी जताई.

आरोपियों के खिलाफ पिछले 18 वर्षों में ट्रायल बिल्कुल आगे नहीं बढ़ा है. बार-बार आदेश जारी करने के बावजूद किसी न किसी कारण से निचली अदालत ट्रायल पूरा नहीं कर सकी.

बॉम्बे हाई कोर्ट ने जताई चिंता
बॉम्बे हाईकोर्ट ने चिंता जताते हुए कहा कि पिछले 18 वर्षों में ट्रायल में जो देर हुई है, वह चिंताजनक है. पूरा न्यायपालिका प्रबंधन इस देरी के लिए समाज के प्रति जवाबदेह है. हाई कोर्ट ने कहा कि इस घोटाले में गरीब किसानों और निवेशकों का पैसा गया है. हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद पिछले चार सालों में इस घोटाले से जुड़े मुकदमों के ट्रायल पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा.

ठाकरे के सामने भी उठा था मामला
अगस्त 2021 में भी इस मामले की गूंज महाराष्ट्र की राजनीति में सुनाई दी. जब कांग्रेस के नेता आशीष देशमुख ने ही महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर सुनील केदार को राज्य मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग की. गौरतलब है कि केदार को कांग्रेस कोटे से ही ठाकरे के नेतृत्व में महाअघाड़ी सरकार में मंत्री बनाया गया था.

पत्र में केदार पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने उस मामले में अपने वकील दोस्त को सरकारी वकील के तौर पर नियुक्त किया है, जिसमें वह आरोपी है. इस पत्र के बाद महाराष्ट्र कांग्रेस में जंग छिड़ गई थी.

पत्र में कहा गया था कि कांग्रेस नेता केदार और 10 अन्य 2002 में नागपुर जिला केंद्रीय सहकारी बैंक में करीब 152 करोड़ रुपये की कथित अनियमितता के मामले में आरोपी हैं. केदार विभिन्न कारणों का हवाला देकर पिछले 19 वर्षों से अदालत में मामले में देरी कर रहे हैं.

घोटाले की चर्चा अब क्यों?
इस घोटाले में अप्रैल 2002 में पहली एफआईआर दर्ज होने के 21 साल बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अहम आदेश दिया है. इस मामले के आरोपी और ब्रोकर केतन कांतिलाल सेठ की ओर से दायर ट्रांसफर पिटीशन पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सभी 4 राज्यों में दर्ज 19 मामलों की सुनवाई मुंबई की अदालत में ट्रांसफर करने के आदेश दिए हैं. चूंकि 3 मामले पहले से ही मुंबई में ही दर्ज हैं, ऐसे में दूसरे राज्यों में दर्ज 16 मामले मुंबई ट्रांसफर करने की मांग की हैं.

जानिए सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा
आरोपी केतन कांतिलाल शाह की ओर से सर्वोच्च अदालत में दायर की गई ट्रांसफर पिटीशन में कहा गया कि इस मामले में मुकदमा दर्ज होने को 21 वर्ष हो गए हैं. केवल 19 में से 3 मुकदमों में ही सुनवाई शुरू हो पाई है. उसमें भी केवल सबूत दर्ज करने और गवाह बयान की प्रक्रिया हो रही है.

ऐसे में अपीलकर्ता के लिए देश के अलग-अलग राज्यों में दर्ज इन मामलों में उपस्थिति दर्ज कराना संभव नहीं है. इन मामलों में अधिकतर गवाह और आरोपी मुंबई में हैं. सभी मामले में आरोप भी लगभग एक समान हैं इसलिए प्रत्येक मामला अलग-अलग जगह चलाने से अच्छा है कि एक ही जगह पर चलाए जाए. इससे सभी पक्षों से लेकर सरकारी पक्ष को भी लाभ होगा.

अब सुप्रीम कोर्ट ने दिया है ये आदेश
सुप्रीम कोर्ट में 9 सितंबर को इस मामले को सुनवाई के लिए रखा गया. सभी पक्षों की बहस सुनने के बाद जस्टिस जे के माहेश्वरी की बेंच केतन कांतिलाल शाह की ओर से दी गई दलीलों पर सहमति जताई. जस्टिस माहेश्वरी ने कहा कि मेरी राय है कि न्याय और निष्पक्ष सुनवाई के उद्देश्य को पूरा करने के लिए इन ट्रांसफर याचिकाओं को अनुमति दी जानी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात, पश्चिम बंगाल और दिल्ली में दर्ज सभी 16 मुकदमों को ट्रायल के लिए प्रिंसिपल जज बॉम्बे सिटी सिविल एंड सेशंस कोर्ट फोर्ट मुंबई की अदालत में ट्रांसफर करने के आदेश दिए हैं.

मुंबई के प्रिंसिपल जज को ये रियायत दी है कि वे किसी भी मामले को अपने अधिकार क्षेत्र की किसी भी अदालत में सुनवाई के लिए भेज सकते हैं. जरूरत होने पर वे कुछ मामलों को किसी अन्य अदालत में भी सौंपने के लिए स्वतंत्र होंगे.

जिन अदालतों में मुकदमे चल रहे हैं, उन सभी अदालतों को आदेश दिए हैं कि सभी मामले तुरंत मुंबई सेशन कोर्ट फोर्ट को भेज दिए जाएं. कोर्ट 1 अक्टूबर 2022 तक इन मुकदमों से जुड़ी सभी फाइलें को मुंबई कोर्ट में पहुंचाने के आदेश दिए हैं.

इस घोटाले से जुड़े सभी आरोपियों को भी सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए हैं कि वे 14 नवंबर 2022 को प्रिंसिपल जज बॉम्बे सिटी सिविल एंड सेशंस कोर्ट फोर्ट मुंबई के समक्ष हाजिर रहे.

बॉम्बे सिटी सिविल एंड सेशंस कोर्ट फोर्ट मुंबई के प्रिंसिपल जज को भी आदेश दिए हैं कि सभी मामले उनकी अदालत में आने और आरोपियों की पेशी के दो माह के भीतर आरोप तय किए जाएं.

सुप्रीम कोर्ट ने इन मुकदमों को यथासंभव शीघ्रता से समाप्त किए जाने के आदेश देते हुए कहा कि सभी मामलों में गवाहों की परीक्षा अलग-अलग न्यायालय द्वारा दर्ज की जाएगी, जिससे किसी भी आरोपी को कोई पूर्वाग्रह नहीं होना चाहिए.

पिछले 21 साल से कछुआ चाल से चल रही सुनवाई पर भी विराम लगाते हुए सर्वोच्च अदालत ने अब ट्रायल पूर्ण करने के लिए 2 साल का वक्त तय कर दिया है.

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