नई दिल्लीः साल 1983 में फिल्म आई थी पुकार. आज देश के प्रतिष्ठित उद्योगपति घराने की बहू बन चुकीं टीना अंबानी तब टीना मुनीम हुआ करती थीं. फिल्म में आर डी बर्मन, आशा भोंसले और किशोर कुमार के सुरों से सजा गाना है 'बच के रहना रे बाबा' इस गाने का जिक्र इसलिए जरूरी है कि क्योंकि यही वह जगह है, जहां फिल्म का असल सेंस सामने आता है.
फिल्म का प्लॉट
एक गोल्ड तस्कर (अमिताभ बच्चन) के घर जश्न है, उसकी गर्लफ्रेंड (जीनत अमान) को ये सब पसंद नहीं है.
टीना मुनीम (ऊषा, क्रांतिकारी) अपने क्रांतिकारी दोस्त शेखर (रणधीर कपूर) के साथ आईं हैं और शेखर आर्केस्ट्रॉ ग्रुप के बहाने एक पुर्तगाली अफसर को मारने आया है और ये लड़ाई हो रही है गोवा (Goa) को आजाद कराने के लिए.
ब्रिटिश शासन से अधिक वहशी थी पुर्तगाल सरकार
फिल्म के जरिए गोवा की आजादी को इसलिए याद किया क्योंकि ब्रिटानी शासन की क्रूरता से तो इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं, लेकिन पुर्तगाली की एक उपनिवेशिक कॉलोनी रहा गोवा भारत की आजादी के कई सालों बाद भी पुर्तगालियों का वहशीपने का शिकार होता रहा.
विडंबना है कि यह कहानी कहीं-कहीं ही मिलती है, या सिर्फ इतिहास के छात्रों तक सीमित है. फिल्म में एक क्रांतिकारी के किशोर बेटे का पता जानने के लिए एक बुढ़िया का सिर खंबे में लड़ाकर उसे मार दिया जाता है.
सिक्किम में सेना के हेडक्वार्टर में टंगा पोट्रेट
सिक्किम की राजधानी गैंगटोक में सेना का एक हेडक्वार्टर है. यहां मुख्य ऑफिस की दीवार पर एक पोट्रेट टंगा है. देखने पर 1971 का इतिहास लगता है, जब पाकिस्तानी कमांडर, जनरल नियाजी ने भारतीय सेना के सामने सरेंडर किया था.
लेकिन नहीं, असल में यह तस्वीर 1961 यानी इसके 10 साल पहले की है. तस्वीर में पुर्तगाली कमांडर जनरल मैन्युल एंटेनिओ वासाएलो सिल्वा दिखते हैं, जिन्होंने 1961 में गोवा लिबरेशन (आजादी) के दौरान भारतीय सेना के सामने सरेंडर किया था.
19 दिसंबर को गोवा मनाता है लिबरेशन डे
हर साल 19 दिसम्बर की सर्दियों में गोवा अपना लिबरेशन डे मनाता है. यानी आजादी का दिन. लेकिन सर्दियों में नसीब हुए इस जश्न की नींव गर्मियों की एक तारीख को रखी गई थी. 18 जून 1946. यही वह दिन था जिसे तय करना था कि राम मनोहर लोहिया नाम के आदमी में कितना दम है कि वह जुल्मी सरकारों से अपना लोहा मनवा ले.
लोहिया ने रखी थी नींव
बीमार चल रहे राम मनोहर लोहिया अपना हवा-पानी बदलने के लिए गोवा पहुंचे थे. यहां पहुंचे तो पता चला कि देश की आजादी की लड़ाई तब तक अधूरी है जब तक ब्रिटानियों के साथ-साथ पुर्तगाली शासन की रवानगी भी यहां से तय न कर दी जाए.
लोहिया इसके बाद अपनी बीमारी भूल गए और 200 लोगों को इकट्ठा कर जनसभा को संबोधित किया. उस दिन तेज बारिश हो रही थी, लेकिन न लोहिया ही अपनी जगह से हिले और न वे 200 लोग. पुर्तगाली सरकार ने मूसलाधार बारिश के बीच अपने खिलाफ इंक्लाब की आग को पहली बार करीब से महसूस किया था. नतीजा, लोहिया गिरफ्तार कर लिए गए मड़गांव जेल भेजे गए.
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18 जून गोवा के लिए है खास
भारत की स्वाधीनता का संघर्ष अंतिम चरण में था और इसी बीच अकेले लोहिया ऐसे थे जो लगातार गोवा की आजादी पर भी नजर रख रहे थे. गोवा के लिए 18 जून का दिन इसीलिए खास है क्योंकि 1961 में जो आजादी की हवा उन्हें नसीब हुई, वह तकरीबन 15 साल पहले शुरू हुई इसी आंधी का नतीजा था.
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