नई दिल्ली. आज 20 मार्च 2020 की सुबह साढ़े पांच बजे दिल्ली के तिहाड़ जेल में निर्भया के चारों दरिन्दों को क़ानून ने उनके अंजाम तक पहुंचा ही दिया. इस लम्बी लड़ाई को कामयाबी के साथ जीत लेने के लिए सारा श्रेय दिया जाएगा निर्भया के माता-पिता को जिन्होंने न केवल धीरज रख कर अपनी लड़ाई जारी रखी बल्कि उन्होंने ये लड़ाई जीत कर सिद्ध कर दिया कि न्याय की जीत होती है, चाहे अन्याय की मदद के पीछे कितना ही बड़ा कोई 'हांथ' क्यों न हो.
ऐसे हुई गुनहगारों को फांसी
फांसी से पंद्रह मिनट पहले अर्थात सवा पांच बजे चारों गुनहगारों को उनकी सेल से बाहर लाया गया और उनके हांथ पीछे बांधे गए. फिर चारों को फांसी वाले आहते पर लाया गया. जहां एक बार फिर इनसे इनकी अंतिम इच्छा पूछी गई जिसे बताने में फिर एक बार ये लोग नाकाम रहे. उसके बाद इन चारों को एक-एक करके जेलकर्मियों द्वारा फांसी के ऊंचे चबूतरे के करीब ले जाया गया जहां जल्लाद की मदद से इनको सीढ़ियों पर से होते हुए इस चबूतरे पर चढ़ाया गया. चबूतरे पर जेलकर्मियों का कार्य समाप्त हुआ और जल्लाद का काम शुरू हुआ.
पवन ने चढ़ाया पवन को फांसी पर
जल्लाद पवन एक के बाद एक इन चारों गुनहगारों को चबूतरे के ऊपर दूसरे कोने में बने फांसी के स्थान तक ले कर गया. जल्लाद पवन ने फांसी के स्थान पर बने तख्ते पर इनको खड़ा किया और फिर इनके गले पर काला कपड़ा डाला. इसके बाद दोनों पैरों को कस कर रस्सी से बांधा. अब जल्लाद का काम आधा पूरा हो गया. जल्लाद ने संकेत से जेल अधीक्षक को बताया कि अब आगे आपके संकेत की प्रतीक्षा है.
साढ़े पांच बजते ही जेल अधीक्षक ने अपनी घड़ी चेक की और रुमाल हिला कर जल्लाद पवन को संकेत दिया. इसके बाद फांसी का आखिरी काम शुरू किया जल्लाद पवन ने. उसने काला कपड़ा चेहरे पर डाले खड़े गुनहगार के गले में फांसी का फंदा डाला और पास बना हुआ एक लीवर खींच दिया. लीवर खींचते ही गुनहगार के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई अर्थात पटरा हट गया और गुनहगार हवा में लटक गया. हवा में कांपता शरीर कुछ क्षणों में प्राणांत को प्राप्त हो हुआ और इतनी देर पवन जल्लाद वहीं खड़ा रहा. ये पहली फांसी थी इन चारों गुनहगारों में से एक याने पवन की. इसके बाद बाकी तीन गुनहगार भी पवन जल्लाद के हांथों फांसी चढ़ा दिये गये और अपने अन्जाम पर पहुंच गये.
चैन की नींद सोयेंगी आज निर्भया की मां
आज पहली रात आठ साल बाद ऐसी आएगी जब निर्भया की मां चैन की नींद सो सकेंगी. हां, आज की रात उनकी यादों की रात भी होगी. आज फिर वही दर्द के मरहले तैर जाएंगे उनकी आँखों के सामने. खयालों में आज फिर एक बार उन्हें सफर करना होगा उस दर्द की गली में जिससे होकर उनकी बेटी गुजरी थी आज से आठ साल पहले. लेकिन इस तकलीफ के दौर में उनके कलेजे को बार-बार ये खबर राहत देगी आज मेरी बेटी को इन्साफ मिल गया है !
सुप्रीम कोर्ट में नाकाम रही आखिरी चाल
तारीख पे तारीख हो रहा था अदालत के दरवाजे पर. गुनहगारों का वकील नित नए पैंतरे आजमा रहा था और पहली बार इस सारे मामले की सुनवाइयों के दौरान देश में ऐसा महसूस हुआ कि क़ानून के साथ खेला कैसे जाता है ये क़ानून के 'कला'कारों से ज्यादा कोई नहीं जानता. इसी सिलसिले में चली गई आज आधी रात की चाल सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी. इससे पहले दिल्ली हाई कोर्ट ने गुनहगारों की फांसी पर रोक लगाने की मांग वाली एक याचिका खारिज कर दी थी, जिसके बाद गुनहगार पवन गुप्ता का मामला ले कर वकील सुप्रीम कोर्ट चले गए. सुप्रीम कोर्ट ने वकील को फटकार लगाते हुए पटियाला हाउस कोर्ट की ओर से जारी डेथ वॉरंट को कायम रखा.
डर तो लगा मौत से पर पछतावा नहीं हुआ
जिस समय फांसी का फंदा इन गुनहगारों के गले में पड़ा होगा, उस समय उनको पहली बार समझ आया होगा कि इन्होने जो किया था वो बहुत गलत था क्योंकि अफसोसनाक सच ये है कि इन चारों ने मरते दम तक अपने किये पर पछतावा ज़ाहिर नहीं किया. निर्भया के पैतृक नगर बलिया से खबर आई है कि निर्भया के गुनहगारों को फांसी होते ही वहां होली दीवाली एक साथ मना कर जश्न मनाया जाएगा. फांसी होते ही जहां तिहाड़ जेल के बाहर भारत माता की जय के नारे गूंजे वहीं ज़ीन्यूज़ के भीतर न्यूज़रुम में सभी मीडियाकर्मियों ने खड़े हो कर तालियां बजाईं और नृशंसता पर न्याय की विजय का स्वागत किया.