नई दिल्ली: विपक्ष की राजनीति हर किसी के समझ से बाहर है. सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर जाकर वो कभी सरकार के फैसले और संसद में पारित कानून पर अपनी छाती पीटते हैं. कभी सरकार के फैसले का विरोध करते-करते संसद में बवाल काटते हैं. तो कभी सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरोध में सदन में बवाल और भारत बंद कराकर अपना रोना-रोते हैं.
रिजर्वेशन पर प्रमोशन के विरोध 'भारत बंद'
सुप्रीम कोर्ट के उस ताजा फैसले का विरोध में 23 फरवरी को भारत को बंद का ऐलान किया गया जिसमें प्रमोशन में आरक्षण को लेकर आदेश जारी किया गया था. आज भारत बंद का असर बिहार में देखा गया. भीम आर्मी ने इसके विरोध में 16 फरवरी को दिल्ली में मंडी हाऊस से संसद तक रैली भी निकाली थी. 23 फरवरी को भारत बंद का आह्वान किया गया और भीम आर्मी के समर्थन में लेफ्ट, RJD और कांग्रेस मैदान में नजर आई. वहीं भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद ने महाराष्ट्र में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में रैली निकाली.
Maharashtra: Bhim Army Chief Chandrashekhar Azad led march against the Supreme Court ruling that states were not bound to provide reservation in government jobs & quota in promotion, in Aurangabad today. He also garlanded a statue of Bhimrao Ambedkar. pic.twitter.com/9f7nUML1J3
— ANI (@ANI) February 23, 2020
भीम आर्मी के बंद को लेफ्ट, RJD और कांग्रेस का समर्थन
भीम आर्मी के भारत बंद का मिला जुला असर बिहार में देखने को मिला. बिहार में इस बंद को लेफ्ट, आरजेडी, कांग्रेस और जनाधिकार पार्टी का समर्थन मिला. उनके भी कार्यकर्ता सड़कों पर उतरे. इसे आगामी विधानसभा चुनाव पर सियासी रणनीति समझा जा सकता है.
क्या है विरोध की वजह?
आपको बता दें, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड से जुड़े एक केस की सुनवाई के दौरान यह व्यवस्था दी थी कि प्रमोशन में आरक्षण या कोटा सिस्टम किसी भी मौलिक अधिकार के तहत नहीं आता है. प्रमोशन में आरक्षण और सीएए के खिलाफ भीम आर्मी ने आज भारत बंद का अह्वान किया. इस बंद का बिहार में मिलाजुला असर दिखा.
दोमुंही राजनीति कर क्या विपक्ष की होगी वापसी?
सबसे पहले आपको ये समझा देते हैं कि आखिर विपक्ष की ये राजनीति को कैसे दोमुंहा कहा जा रहा है. दरअसल, जब CAA पर सरकार फैसला करती है तो विपक्षी दलों को मिर्ची लग जाती है और वो सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर अपना दुखड़ा सुनाने पहुंच जाती है. वो भी उस कानून के खिलाफ जिसे संसद के जरिए बहुमत से लागू किया गया है. लेकिन जब प्रमोशन में आरक्षण को लेकर खुद सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाती है तो विपक्ष के पेट में दर्द उठने लगता है. वो भारत बंद की बात करने लगती है. लेकिन शायद वो ये नहीं जानती है कि ऐसे बंद या हड़ताल से देश को करीब 30 से 35 हजार करोड़ का नुकसान होता है.
क्या कहती है फिक्की की रिपोर्ट?
देश में कभी नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में तो कभी किसी मामले को लेकर इधर बीच विरोध प्रदर्शन का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है. विपक्षी दलों ने मंदी-मंदी करके भी अपनी छाती खूब पीटी, लेकिन शायद उन्होंने देश के व्यापारिक संगठनों के संघ फिक्की के रिपोर्ट को कभी पढ़ा नहीं होगा. वरना वो देश की व्यवस्था बिगाड़ने का ठेका नहीं ले लेते. आपको बता दें, फिक्की के अनुसार अगर देश में एक दिन की हड़ताल या बंदी होती है. तो इससे देश को करीब 30 से 35 हजार करोड़ का नुकसान होता है.
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कोई भी मुद्दा हो विपक्ष हर बात में बंद बुला लेती है. इसका असर भी देखा जाता है, जो वाकई देश के खजाने के लिए काफी नुकसानदायक है. लेकिन विपक्ष को अपनी राजनीति से बढ़कर थोड़ी कुछ होता है. प्रमोशन में आरक्षण और CAA के मुद्दे पर भारत बंद कराया जाता है. कई जगह गई ट्रेन रोकी हैं, वो भी उस फैसले के खिलाफ जिसे देश की सर्वोच्च अदालत ने सुनाया है. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या अब राजनीतिक दलों पर अपने फायदे के आगे देश के न्यायपालिका पर भी भरोसा नहीं रहा?
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