नई दिल्ली: Nitish Kumar Party JDU: बिहार में एक बार फिर नीतीश कुमार ने NDA का दामन थाम लिया. नीतीश की पार्टी JDU ने BJP से गठबंधन कर राज्य के सियासी समीकरण बदल दिए हैं. हालांकि, जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर और RJD नेता तेजस्वी यादव ने दावा किया है कि नीतीश कुमार की पार्टी JDU जल्द खत्म ही जाएगी. ऐसे में ये जानना जरूरी है पीके और तेजस्वी के दावे का क्या आधार है और इस दावे में कितना दम है.
क्या बोले प्रशांत किशोर?
जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने कहा कि मैं भविष्यवाणी करता हूं, अगर मैं गलत साबित हुआ तो आप मुझे पकड़ सकते हैं. जो गठबंधन बना है वह विधानसभा चुनाव तक नहीं चलेगा. यह लोकसभा इलेक्शन के कुछ महीनों के अंदर टूट सकता है. ये नीतीश कुमार की राजनीतिक पारी का अंतिम दौरा है. अगले विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी को 20 सीटें भी नहीं मिलेगी. अगर 20 से ज्यादा सीटें आईं, तो मैं अपने काम से संन्यास ले लूंगा.
क्या बोले तेजस्वी यादव?
पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव के बेटे और RJD नेता तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार और उनकी पार्टी JDU पर बड़ा हमला किया है. उन्होंने कहा है कि मैं एक बात स्पष्ट रूप से कह दूं कि अभी खेल शुरु हुआ है, अभी खेल बाकी है. मैं जो कहता हूं, वह करता हूं. आप लिखकर ले लीजिए, JDU पार्टी 2024 में ही खत्म हो जाएगी.
क्या हैं दावे के पीछे की वजह?
घट रहीं सीटें: बीते कुछ चुनाव से JDU की सीटें लगातार घटती जा रही हैं. जब-जब नीतीश ने एक गठबंधन तोड़ दूसरे में एंट्री ली है, उनकी पार्टी की सीटें घटी हैं. साल 2013 में नीतीश की पार्टी JDU ने 17 साल बाद NDA से अलग होने का फैसला किया. 2014 के लोकसभा चुनाव में JDU को 2 सीटें मिली, जबकि 2009 में पार्टी के 20 सांसद जीते थे. इसी तरह 2015 के विधानसभा चुनाव में JDU के 71 विधायक जीते, जबकि 2010 विधायकों की संख्या 115 थी. हालांकि, 2019 के लोकसभा चुनाव में JDU के 16 MP जीते. लेकिन विधानसभा चुनाव में पार्टी की सीटें फिर कम हुई. 2020 के चुनाव में पार्टी ने महज 43 सीटों पर जीत दर्ज की. इससे स्पष्ट है कि 2014 के बाद विधानसभा चुनाव में JDU का बेस लगातार कमजोर हो रहा है.
नीतीश के बाद विकल्प नहीं: JDU में नीतीश कुमार अकेले पॉपुलर फेस हैं. उनके पास कोई दूसरा मास लीडर नहीं है, जो वोटर्स को अपनी ओर आकर्षित कर सके. नीतीश की उम्र लगातार बढ़ती जा रही है. लेकिन अभी तक वो JDU की सेकंड जनरेशन तैयार नहीं कर पाए हैं. इस कारण नीतीश के बाद पार्टी में चेहरे की कमी है.
वोट परसेंटेज: बिहार में JDU का 16 परसेंट वोट ऐसा माना जाता है, जो सीधे नीतीश के चेहरे से कनेक्ट होता है. भले नीतीश RJD के साथ रहें, या BJP के साथ, ये 16% वोटर नीतीश से लोयल हैं. इनमें कुर्मी, कोयरी और महादलित हैं. लेकिन नीतीश के रिटायरमेंट के बाद पार्टी के पास दूसरा ऐसा कोई नेता नहीं है, जो इन्हें साधकर रख पाए.
पार्टी में टूट का संशय: JDU में बीते लंबे समय से टूट का डर बना हुआ है. ऐसा कहा जाता है कि नीतीश कुमार ने ललन सिंह को पार्टी में टूट की वजह से ही अध्यक्ष पद से हटाया था. ललन सिंह RJD सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के करीब आ गए थे. खबरें थी कि RJD JDU के कुछ नेताओं को अपने पाले में ला रही थी. समय-समय पर यह दावा भी होता रहा है कि JDU के कई नेता RJD के संपर्क में हैं. यदि अब JDU में टूट होती है तो पार्टी को फिर से खड़ा कर पाना मुश्किल होगा.
ये हुआ, तो बना रहेगा JDU का दबदबा
ज्यादा MP जीते: यदि इस बार के लोकसभा चुनाव में नीतीश के नेतृत्व वाली JDU के RJD से अधिक सांसद जीतते हैं, तो यह उनके लिए जीवनदान साबित होगा. पार्टी के कार्यकर्ताओं में नए सिरे से जोश का संचार होगा. JDU के बेहतर परिणाम से नीतीश की राजनीतिक पारी भी लंबी हो सकती है.
नई लीडरशिप तैयार हो: यदि नीतीश कुमार समय रहते पार्टी में अपना उत्तराधिकारी तय कर लें और अभी से उसे मजबूत करना शुरू कर दें तो मुमकिन है कि JDU को एक नया चेहरा मिल सकेगा. नीतीश की विरासत को आगे ले जाने के लिए एक चेहरे की जरूरत है. नीतीश ने भी जॉर्ज फर्नांडिस के रहते हुए सत्ता अपने हाथ में ले ली थी.
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