जब गठबंधन सरकार बनाने के लिए साथ आए धुर-विरोधी बीजेपी और वाम दल, पीएम आवास में एक साथ डिनर करते थे वाजपेयी और ज्योति बसु

देश एक बार फिर गठबंधन की सरकार देखने जा रहा है. हालांकि पहले भी भारत में गठबंधन की कई सरकारें बनी हैं, लेकिन पिछले एक दशक में देश ने बहुमत की सरकार देखी थी. खासकर नए युवाओं के लिए यह एक नए तरह का अनुभव होगा जहां वे मिली-जुली सरकार को देश चलाते हुए देखेंगे. इस देश ने कई तरह की गठबंधन की सरकारें देखी हैं. एक सरकार तो ऐसी भी बनी जिसे बनाने के लिए राजनीतिक और वैचारिक रूप से धुर-विरोधी बीजेपी और वाम मोर्चा एक साथ आए थे.

Written by - Lalit Mohan Belwal | Last Updated : Jun 6, 2024, 02:35 PM IST
  • वीपी सिंह ने रखी थी नींव
  • 1989 में बनी ये सरकार
जब गठबंधन सरकार बनाने के लिए साथ आए धुर-विरोधी बीजेपी और वाम दल, पीएम आवास में एक साथ डिनर करते थे वाजपेयी और ज्योति बसु

नई दिल्लीः देश एक बार फिर गठबंधन की सरकार देखने जा रहा है. हालांकि पहले भी भारत में गठबंधन की कई सरकारें बनी हैं, लेकिन पिछले एक दशक में देश ने बहुमत की सरकार देखी थी. खासकर नए युवाओं के लिए यह एक नए तरह का अनुभव होगा जहां वे मिली-जुली सरकार को देश चलाते हुए देखेंगे. इस देश ने कई तरह की गठबंधन की सरकारें देखी हैं. एक सरकार तो ऐसी भी बनी जिसे बनाने के लिए राजनीतिक और वैचारिक रूप से धुर-विरोधी बीजेपी और वाम मोर्चा एक साथ आए थे.

वीपी सिंह ने रखी थी नींव

दरअसल 1984 में देश में रिकॉर्ड 414 सीटों के साथ कांग्रेस ने सरकार बनाई थी. इसके मुखिया राजीव गांधी थे. इंडिया टुडे मैगजीन की रिपोर्ट के मुताबिक, इस सरकार के वित्त मंत्री वीपी सिंह ही राजीव गांधी के लिए सबसे बड़े सिरदर्द थे. वे भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के तहत कई राजनीतिक घरानों पर छापे पड़वा रहे थे जिनमें कई राजीव गांधी के खास दोस्त भी थे. इसके बाद बोफोर्स सौदा मामले को लेकर वीपी सिंह ने इस्तीफा दे दिया और 1987 में राजनीतिक मंच 'जन मोर्चा' की स्थापना की. फिर 1988 में जनता दल का गठन किया जिसमें जन मोर्चा, लोक दल और जनता पार्टी के कई अन्य धड़े भी शामिल हुए.

1989 में बनी ये सरकार

फिर 1989 में चुनाव हुए तो कांग्रेस को सबसे ज्यादा 197 सीटें मिलीं लेकिन जनता दल को 143, बीजेपी को 85, सीपीएम को 33 और सीपीआई को 12 सीटों मिली थीं. हालांकि कांग्रेस के सबसे बड़ी पार्टी होने के चलते सरकार बनाने का न्योता राजीव गांधी को मिला लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया. इसके बाद जनता दल की अगुवाई में राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार बनी जिसमें बीजेपी और सीपीएम के नेतृत्व में वाम मोर्चा ने बाहर से समर्थन दिया था. दोनों ही दल सरकार का हिस्सा नहीं बने लेकिन सरकार बनाने के लिए राष्ट्रीय मोर्चे में जनता दल के साथ आ गए थे. इस सरकार के मुखिया वीपी सिंह थे.

बीजेपी ने वापस लिया समर्थन

बताया जाता है कि तब हर मंगलवार को बीजेपी के अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, सीपीएम के हरिकिशन सिंह सुरजीत, ज्योति बसु और सीपीआई के इंद्रजीत गुप्ता पीएम आवास पर मिलते थे. रात्रि भोज करते थे और सरकार के कामकाज पर बातचीत करते थे. हालांकि अक्टूबर 1990 में बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा को बिहार में लालू प्रसाद यादव ने रोक दिया था और आडवाणी को गिरफ्तार कर दिया था. इसके बाद बीजेपी ने समर्थन वापस ले लिया और 7 नवंबर 1990 को राष्ट्रीय मोर्चे की सरकार संसद में विश्वास प्रस्ताव पास नहीं कर सकी. ऐसे में वीपी सिंह को पीएम पद से इस्तीफा देना पड़ा. इस तरह एक सरकार जिसे बनाने के लिए बीजेपी और वामदल साथ आए थे वो गिर गई.

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