लखनऊ. उत्तर प्रदेश से सटे मध्यप्रदेश में बीजेपी द्वारा यादव चेहरे को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले ने समाजवादी पार्टी (सपा) की चिंता बढ़ा दी है. पार्टी को अपने मूल वोट बैंक यादव पर सेंधमारी होने का खतरा नजर आ रहा है. मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी ने जो यादव कार्ड खेला है, उसका सीधा असर यूपी में पड़ने का अनुमान लगाया जा रहा है. आगामी आम चुनाव में सपा के लिए आगे की डगर चुनौती भरी हो सकती है.
सपा के साथ रहा है यादव समाज
पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि राम नरेश यादव से लेकर मुलायम सिंह और अखिलेश यादव तक तीन यादव 5 बार यूपी के मुख्यमंत्री बन चुके हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि यादव वोट बैंक बीजेपी के लिए कितना महत्वपूर्ण है. डेटा के मुताबिक राज्य में यादव समुदाय की आबादी लगभग 9-10 फीसदी है. कई दर्जन जिले ऐसे हैं, जिनमें यादव आबादी लगभग 20% है. यादव वोट बैंक पर समाजवादी पार्टी की सबसे मजबूत पकड़ मुलायम के जमाने से चली आ रही है.
क्या कहते हैं सपा नेता
सपा के एक नेता का कहना है कि यादव वोट बैंक पर पार्टी का विश्वास स्थापना के वक्त से ही चला आ रहा है. मुलायम सिंह यादव ने अपने क्षेत्र के लोगों के लिए बहुत कुछ किया है. इसलिए इस वोट बैंक पर किसी और दल के नेता को कोई पद देने से ज्यादा कुछ फर्क तो नहीं पड़ेगा. हालांकि अलर्ट रहने की जरूरत है.
उनका कहना है कि बुंदेलखंड के बेल्ट में इस वोट बैंक का झुकाव जरूर दूसरी ओर हो सकता है. इसे साधने के लिए तैयारी करनी पड़ेगी. पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व को इसकी चिंता भी है.
क्या कहते हैं पॉलिटिकल एक्सपर्ट
पॉलिटिकल एक्सपर्ट प्रसून पांडेय के मुताबिक यूपी के इटावा, एटा, फर्रुखाबाद, मैनपुरी, फिरोजबाद, कन्नौज, बदायूं, आजमगढ़, फैजाबाद, बलिया, संतकबीर नगर, जौनपुर और कुशीनगर जिले को यादव बहुल माना जाता है. करीब 50 विधानसभा सीटें हैं, जहां यादव वोटबैंक काफी महत्वपूर्ण हैं. 2017 के बाद से ही बीजेपी यादव वोटों को साधने में जुटी है. अब मध्य प्रदेश में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना कर बीजेपी ने जो बिसात बिछाई है, उसमें अब सपा को पीडीए में मूलवोट बैंक यादव को संभालने के लिए भी खासी मशक्कत करनी होगी.
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