थोड़ा बदलो JNU, कब तक देश आपकी आतंक समर्थित आवाज को बर्दाश्त करेगा

सीधी सी बात है. अगर बार-बार आपके तौर-तरीके के को गलत कहा जा रहा है तो एक बार ठहरकर इस बारे में जरूर सोचना चाहिए. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) को इसी छोटे से सिद्धांत की जरूरत है. उसे जरूरत है कि वह खुद का विश्लेषण करे और सोचे कि अगर उसके मुद्दे सही हैं, उसकी बात सही है तो आखिर गलती कहां हो रही है? ऐसा कौन सा रवैया है, जिसके कारण एक शिक्षण संस्थान बीते चार सालों में अपनी उपलब्धियों नहीं बल्कि अपने लोकतंत्रविरोधी हरकतों के कारण जाना जा रहा है.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Jan 28, 2020, 02:34 PM IST
    • इमाम के समर्थन में सैकड़ों छात्रों ने हाथों में पोस्टर-बैनर लेकर मार्च निकाला
    • JNU में शरजील तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं के लगे नारे
थोड़ा बदलो JNU, कब तक देश आपकी आतंक समर्थित आवाज को बर्दाश्त करेगा

नई दिल्लीः यह तो साफ है कि भारत का आम आदमी आतंकी, उन्मादी और स्वार्थपरता वाली ताकतों को शह देना तो कभी मंजूर नहीं करेगा. JNU में अभी का माहौल आम आदमी की इसी सोच का विरोधी है. 

एक सवाल, आखिर क्यों JNU से आतंक समर्थित आवाज उठती हैं
किसी शिक्षण संस्थान को बौद्धिक क्षमता का धनी माना जाता है. लोकतंत्र भी अपने बौद्धिक और जागरूक छात्रों की आवाज से ही पलता है. लेकिन ऐसे कई वाकये सामने आए हैं जब JNU से इसी सिद्धांत का गला घोंटा गया है. भारत तेरे टुकड़े होंगे, हर घर से अफजल निकलेगा जैसी आवाज जब एक विश्वविद्यालय की दीवारों के पीछे से आने लगे तो इसे किस तरह बर्दाश्त किया जाएगा.

ऐसा एक नहीं कई बार हुआ है. पुराने मामलों को छोड़ दें या भूल जाएं तो नागरिकता कानून का विरोध और खुद JNU का फीस वृद्धि मामला इस बात का गवाह बना है, कि मौजूदा दौर में शिक्षा का यह गढ़ हिंसात्मक ताकतों को पालित-पोषित स्थल है. उन्हें ताकत दे रहा है. देश विरोधी ताकतें इसे सींच रही हैं. 

शरजील इमाम की बात देखिए, असम को अलग कर देंगे
नागरिकता कानून के विरोध में मजमा लगा था. लोग विरोध कर रहे हैं. इस विरोध के बीच शरजील इमाम का वीडियो सामने आता है. शरजील की पहचान इस वक्त JNU छात्र के तौर पर है. वह कहते हुए सुने जाते हैं. असम को काट कर भारत से अलग कर दो. चिकन नेक वाले इलाके का देश से संपर्क तोड़ दो. ऐसा करो कि आर्मी न आने पाए. रास्ते रोक लो, जाम कर दो. क्या यह सारी बातें देश विरोधी नहीं है.

एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय के छात्र के तौर पर ऐसी बातें किस तरह कही-सुनी जा सकती हैं. विरोध को माना जा सकता है, लेकिन इस तरह का विरोध? इसे समाज कैसे स्वीकार सकता है?

शरजील का भी समर्थन करने उतर आए
शरजील पर देशद्रोह का केस दर्ज है, और JNU  को इस बात पर भी दर्द है. एक बार फिर यहां की छात्र शक्ति कही जाने वाली भीड़ जुटी और शरजील का समर्थन करने लगी. दरअसल, सोमवार (27 जनवरी) को जेएनयू में एक मार्च निकाला गया. यह मार्च गंगा ढाबा से शुरू होकर साबरमती ढाबे और फिर चंद्रभागा तक गया. मार्च के दौरान प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी की और कहा, 'शरजील इमाम जिंदाबाद. शरजील तुम संघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं. इस मार्च का जो वीडियो सामने आया है उसमें सड़कों पर उतरे छात्रों ने शरजील को पीड़ित बताकर सरकार को घेर रहे हैं. 

एक बार फिर अफजल को बेगुनाह बताने की कोशिश
इमाम के समर्थन में सैकड़ों छात्रों ने हाथों में पोस्टर-बैनर लेकर मार्च निकाला. इस मार्च में एनआरसी, सीएए और भारत सरकार के खिलाफ नारेबाजी की गई. इमाम के समर्थन में निकाले गए मार्च में एक विवादित वीडियो भी वायरल है, जिसमें जेएनयू की काउंसलर आफरीन फातिमा दिख रही हैं. बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने यह वीडियो सोशल मीडिया पर शेयर किया था. मार्च खत्म होने के बाद आफरीन फातिमा समेत कई छात्रों ने शरजील इमाम के समर्थन में अपनी-अपनी बातें रखीं. एक वीडियो में कहा जा रहा है, अफजल के साथ गलत हुआ. इसे कैसे मान लिया जाए?

आप आवाज उठाइए JNU, लेकिन अपना रवैया बदलकर. हर बार केवल विक्टिम कार्ड खेलना, सिर्फ एक पक्ष की बात करना, बहुसंख्यकों को बिल्कुल अलग-थलग कर देना एक लोकतांत्रिक देश का लोकतांत्रिक नागरिक कभी स्वीकार नहीं करेगा. JNU को बचाना और उसकी छवि को साफ रखना उसके छात्रों के ही हाथ में है. यह काम आपको ही करना है.

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