नई दिल्ली: मोटर दुर्घटना दावे के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दुर्घटना बीमा के तहत मिली मुआवजा राशि को बढ़ाकर 94 लाख से 141 लाख कर दिया है. इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि याचिकाकर्ता के लिए ये मुआवजा एक सांत्वना की तरह है.
बेंगलुरु के बेंसन जॉर्ज के साथ हुई दुर्घटना के बाद दुर्घटना दावा अधिकरण ने 94 लाख 37 हजार 300 रूपये के मुआवजे का अवार्ड जारी किया था. ट्रिब्यूनल ने मामला दायर करने से लेकर मुआवजे के भुगतान तक 9 प्रतिशत की ब्याज दर तय की थी. लेकिन ट्रिब्यूनल के अवार्ड को कम बताते हुए जॉर्ज की ओर से इसे कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी. दूसरी तरफ इंश्योरेंस कंपनी ने भी कर्नाटक हाईकोर्ट में ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ अपील दायर की.
हाईकोर्ट ने मुआवजा बढ़ाया लेकिन ब्याज कम किया
कर्नाटक हाईकोर्ट ने दोनों की ओर से पेश अपीलों पर सुनवाई करते हुए ट्रिब्यूनल के अवार्ड को 94,37,300 रुपये से बढाकर 1 करोड़ 24 लाख 94 हजार 333 रूपये कर दिया. लेकिन इसके साथ ही मुआवजे के भुगतान की 9 प्रतिशत की ब्याज दर को कम करते हुए 6 प्रतिशत कर दिया.
8 साल से कोमा में
बेंसन जॉर्ज की ओर से कर्नाटक हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील में कहा गया कि याचिकाकर्ता के साथ 1 जनवरी 2013 को दुर्घटना घटित हुई. दुर्घटना में उसके पूरे शरीर के साथ साथ ब्रेन में गंभीर चोटें आयी. इसके चलते 1 जनवरी से 3 मई तक कुल 125 दिन अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा. उसे 3 बड़ी ब्रेन सर्जरी का भी सामना करना पड़ा और उसके बाद भी वो कई समय तक कोमा में हैं. जॉर्ज के सिर और गर्दन के साथ ही कई हिस्सों में फ्रेक्चर भी पाया गया. जिसके चलते उसका पूरा शरीर बिना सहारे के हिलडुल नहीं सकता है.अपीलकर्ता जॉर्ज दुर्घटना के समय 29 वर्ष के थे. 1 जनवरी 2013 की दुर्घटना के बाद से ही कोमा में करीब 8 साल हो चुके हैं. जॉज की देखभाल में पूरा परिवार जुटा रहता हैं. चिकित्सको के अनुसार जॉर्ज अब कभी पहले की तरह जीवन नहीं जी सकते हैं.
जीवनभर रहना होगा बिस्तर पर
अपील में कहा गया कि दुर्घटना में अपीलकर्ता को 100 प्रतिशत अपंगता हुई है जिसके चलते उसे जीवनभर बिस्तर पर ही रहना होगा. और ये एक तरह से पूर्ण दयनीय जीवन होगा जो उसे अपने परिजनों के सहारे जीना होगा. वह जीवन में कभी भी आनंद नहीं उठा पायेगा. ऐसे में हाईकोर्ट द्वारा जीवन की खुशियों और आनंद के लिए पारित किया गया 1 लाख का अवार्ड बेहद गलत है. इसके साथ ही मुआवजे पर देय ब्याज राशि 9 प्रतिशत से कम कर 6 करने में भी गलती की गयी है. वही इंश्योरेंस कंपनी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में कहा गया कि हाईकोर्ट ने अपने फैसले में केस के तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर फैसला दिया है.और ब्याज प्रतिशत कम करने के मामले में भी कोई गलती नहीं की गयी है.
मुआवजा बढ़ाकर किया 1 करोड़ 41 लाख
दोनो पक्षों की बहस सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिब्यूनल की ओर से जारी किये गये 94,37,300 रुपये के अवार्ड को बढ़ाकर 1,41,9433 रुपये कर दिया है. इसके साथ ही इस मुआवाजे पर देय ब्याज को 6 प्रतिशत ही रखा. सुप्रीम कोर्ट ने कंपनी को आदेश दिये है कि वो अपीलकर्ता को 4 सप्ताह में इस राशि का भुगतान करे. समय पर भुगतान नहीं करने पर 7.5 प्रतिशत ब्याज देय होगा.
भविष्य की खुशी के लिए ये सिर्फ सांत्वना
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सिरदर्द, गहरी पीड़ा और खुशियों की हानि के लिये दी जाने वाली राशि के लिए स्ट्रेट जैकेट फॉर्मूला नहीं हो सकता है. जिस दर्द, पीड़ा और आघात से व्यक्ति को सामना करना पड़ता है उसके बदले में मुआवजे के रूप में दिया गया पैसा बराबरी नहीं कर सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने अवार्ड बढ़ाते हुए कहा कि इसके बावजूद ये मुआवजा याचिकाकर्ता को मिले दुख, दर्द, सदमे, भविष्य की सुख सुविधाओं की हानि और जीवन की खुशी सहित विभिन्न मदों के लिए एक सांत्वना होगी.
और इधर सुप्रीम कोर्ट ने 56 लाख से घटाकर किया 10 लाख मुआवजा
सुप्रीम कोर्ट ने मोटर दुर्घटना दावे से जुड़े दूसरे मामले में हाईकोर्ट द्वारा बढ़ाये गये मुआवजे को 56 लाख से घटाकर 10 लाख कर दिया है. एमएसीटी ट्रिब्यूनल ने शरीर के निचले हिस्सें में 75 प्रतिशत की अपंगता के आधार पर 6 लाख 21 हजार का मुआवजा जारी किया था. जिसे राजस्थान हाईकोर्ट ने बढ़ाकर 56 लाख 44 हजार 378 रूपये किया था.
ट्रिब्यूनल ने दिया था 6.21 लाख का मुआवजा
राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी की ओर अपील दायर कर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी. एडवोकेट आदित्य जैन और नेहा ज्ञामलानी ने अदालत को बताया कि मामले में सतीशचन्द्र शर्मा राजस्थान में सीआईडी विभाग में कार्यरत थे. दुर्घटना के बाद भी वे सरकारी सेवा में निरंतर अपनी ड्यूटी देते रहे और सेवानिवृत के सभी लाभ लिये हैं.लेकिन दुर्घटना की वजह से उन्हे अपनी मेडिकल लीव समाप्त करनी पड़ी, जिसके लिए ट्रिब्यूनल ने पहले ही अवार्ड में शामिल कर लिया है.
मासिक आय जारी रही
आदित्य जैन ने तर्क दिया कि राजस्थान हाईकोर्ट ने अजय कुमार के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून को गलत तरीके से लागू किया है. साथ ही एक भौतिक तथ्य की अनदेखी की है कि इस मामले में कोई स्थायी विकलांगता या आय की हानि नहीं हुई थी. इसके बावजूद कि प्रतिवादी ने अपनी सेवानिवृत्ति तक मासिक वेतन व क्रमोन्नति से कमाई जारी रखी.
नही मिले पहले कि तरह भत्ते
वही प्रतिवादी सतीशचन्द्र की ओर से इस अपील का विरोध करते हुए अदालत को बताया गया कि दुर्घटना की वजह से उसे सीआईडी से वायरलैस विभाग में तबादला किया गया हैं. जिससे उसे सीआईडी विभाग में मिलने वाले इंटेलीजेंस भत्ता, स्पेशल भत्ते और अन्य स्पेशल वेतन से महरूम होना पड़ा है. दुर्घटना के बाद उसे एक आपरेशन का भी सामना करना पड़ा है जिसके जरिए उसके स्पाईन को फिक्स किया गया हैं. लेकिन सतीशचन्द्र की ओर से अदालत में स्वीकार किया गया कि वह घूम फिर सकता है और अपनी ड्यूटी कर रहा था. लेकिन कई बार उसे सहायता की जरूरत पड़ती है.
जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बैंच ने नेट सैलरी का कई गुना मुआवजा जारी करने के राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले को गलत बताते हुए रद्द कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने विकलांगता के बावजूद सरकारी सेवा में कार्य करने, अपनी पूर्ण सैलरी प्राप्त करने के आधार पर बीमा राशि को भी कम कर दिया. राजस्थान हाईकोर्ट की ओर से मुआवजे की राशि को 6.21 लाख से बढ़ाकर 56.44 लाख किया गया था, सुप्रीम कोर्ट ने अब इस मुआवजे को 56.44 लाख से घटाकर फिर से 10 लाख रूपये कर दिया हैं. सुप्रीम कोर्ट ने बीमा कंपनी को 6 प्रतिशत ब्याज के साथ 6 सप्ताह में ये मुआवजा राशि सतीशचन्द्र शर्मा को अदा करने का आदेश दिया है.
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