कोरोना त्रासदी के सिखाए हुए 5 सबक हमेशा रहेंगे याद
पूरी दुनिया कोरोना के कहर से त्राहिमाम् कर रही है. लेकिन इस महान संकट ने हमें कई सबक भी सिखाए हैं. जो कि भविष्य में हमारे लिए नजीर साबित होंगे.
नई दिल्ली: एक अति सूक्ष्म विषाणु(कोरोना वायरस) ने मानव सभ्यता को कई बड़े सबक सिखाए हैं. हालांकि समय समय पर प्रकृति और वैज्ञानिक हमें चेतावनी जारी कर रहे थे. लेकिन हम उसे अनसुना कर रहे थे. लेकिन कोरोना वायरस(CoronaVirus) ने हमें मजबूर किया कि हम उन चेतावनियों पर ध्यान दें. जानिए क्या हैं वे 5 अहम सबक-
1. स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च सबसे जरुरी है
कोरोना वायरस से पैदा हुए संकट ने हमें ये अच्छी तरह समझा दिया कि डॉक्टर और स्वास्थ्य सुविधाओं की अहमियत क्या है.
आज डॉक्टरों या स्वास्थ्यकर्मियों के ही भरोसे पूरी मानव सभ्यता जिंदगी की उम्मीद बांधे हुए है. आज अगर वो नहीं होते तो हम हाथ पर हाथ धरे अपनी मौत का इंतजार कर रहे होते. चाहे हमारा बैंक बैंलेन्स कितना भी ज्यादा क्यों नहीं हो या हम कितनी भी नामचीन हस्ती क्यों ना हों.
आम लोगों को समझ में आ गया है कि एक खिलाड़ी या अभिनेता से ज्यादा जरुरी एक डॉक्टर है. वही असली जिंदगी के हीरो हैं.
यही नहीं दुनिया भर की सरकारों और नीति नियंताओं को भी ये सबक हासिल हो गया है कि उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं पर ज्यादा से ज्यादा पैसे खर्च करना पड़ेगा.
आम तौर पर दुनिया के देश स्वास्थ्य सेवाओं(Health Budget) पर खर्च करने में कंजूसी करते हैं. यही वजह है कि अमेरिका अपनी जीडीपी का 18 फीसदी, ब्राजील लगभग 8.3 प्रतिशत, रूस 7.1 प्रतिशत, दक्षिण अफ्रीका लगभग 8.8 प्रतिशत, चीन 6 प्रतिशत, मलयेशिया 4.2 फीसदी, थाइलैंड 4.1 फीसदी, फिलीपींस 4.7 फीसदी, इंडोनेशिया 2.8, नाइजीरिया में 3.7 श्रीलंका 3.5 और पाकिस्तान 2.6 फीसदी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करता है.
वहीं भारत अपनी जीडीपी का मात्र 1.15 फीसदी हेल्थ पर खर्च करता है.
लेकिन अब दुनिया को सबक मिल गया है. कोरोना वायरस से उत्पन्न संकट के बाद दुनिया के हर देश को अपने यहां स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाना ही होगा.
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2. परमाणु बम और मिसाइल आपकी सुरक्षा की गारंटी नहीं हैं
कोरोना वायरस का आकार पेन के एक बिंदु से भी 2000(दो हजार) गुना ज्यादा छोटा है. लेकिन ये बड़ी बड़ी इंटर कांटिनेन्टल बैलेस्टिक मिसाइलों(ICBM) और भारी भरकम परमाणु हथियारों(Nuclear Weapons) से ज्यादा खतरनाक है.
कोरोना त्रासदी से पहले कई दशकों से पूरी दुनिया में मिसाइलों और परमाणु हथियारों के जखीरे इकट्ठा करने की होड़ चल रही थी.
इसी होड़ का नतीजा है कि पूरी दुनिया में 14465(चौदह हजार चार सौ पैंसठ) परमाणु हथियार इकट्टा हो गए हैं. इसमें से 3750(तीन हजार सात सौ पचास) परमाणु हथियार लगातार एक्टिव मोड में हैं. यानी उन्हें कुछ ही पलों में फायर किया जा सकता है.
इन परमाणु हथियारों की बदौलत पूरी दुनिया 21 बार नष्ट हो सकती है.
इसमें से रुस के पास 6850, अमेरिका के पास 6450, फ्रांस के पास 300, चीन के पास 280, ब्रिटेन के पास 215, पाकिस्तान के पास 150, भारत के पास 140, इजरायल के पास 80 और उत्तर कोरिया के पास 20 परमाणु हथियार हैं.
वहीं मिसाइलों की गिनती भी लाखों में हैं, जो दुनिया में कहीं भी वार कर सकती हैं. लेकिन यह सभी विशाल हथियार उस अति सूक्ष्म कोरोना वायरस के सामने फेल हो चुके हैं. अगर कोरोना ने पूरी दुनिया की मानव आबादी को खत्म कर दिया तो यह सभी विनाशक हथियार कबाड़ बन जाएंगे.
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3. पर्यावरण सुधारने के लिए अरबों खरबों की फंडिंग बेकार
पूरी दुनिया में कार्बन उत्सर्जन को रोकने और पर्यावरण को बचाने के नाम पर हजारो करोड़ के फंड का आदान प्रदान होता है. दुनिया विकसित और विकासशील दो खेमों में बंटी हुई है. दोनों एक दूसरे पर दुनिया में प्रदूषण फैलाने का आरोप लगाते रहते हैं.
पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से 1992 में बकायदा संयुक्त राष्ट्र के एक अंग यूनाइटेड नेशन फ्रेमवर्क कन्वेन्शन ऑन क्लाइमेट चेंज(UNFCCC)की स्थापना की गई.
कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए दिसंबर 1997 में 'क्योटो प्रोटोकॉल' तैयार किया गया. दुनिया के 192 देशों ने इसपर सहमति दी. लेकिन नतीजा शून्य रहा. धरती पर प्रदूषण बढ़ता ही गया.
पर्यावरण बचाने के नाम पर खरबों रुपए खर्च कर दिए गए. लेकिन इसका कोई नतीजा नहीं दिखाई दिया. लेकिन एक नन्हे से कोरोना वायरस ने सबक सिखा दिया. नदियां साफ होने लगीं, धरती की ओजोन लेयर सही हो गई, हवा की गुणवत्ता सही हो गई, जंगली जानवर बेखौफ घूमने लगे, भूमिगत जल स्रोत स्वच्छ हो गए. इस तरह के कई बदलाव देखे गए.
द सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर के एक शोध के मुताबिक फरवरी के महीने में सिर्फ चीन में 20 करोड़ टन कार्बन उत्सर्जन कम हो गया. तो सोचिए पूरी दुनिया में कार्बन उत्सर्जन में कितनी कमी आई होगी.
भारत जालंधर शहर में तो हवा में प्रदूषण कम होने से सुदूर पहाड़ दिखाई देने लगे. ऐसा पिछले 30 सालों में कभी नहीं हुआ था.
कोरोना वायरस ने साबित कर दिया है कि अगर मनुष्य अपनी गतिविधियों पर लगाम कसे और कथित विकास के नाम पर प्रकृति को नष्ट करना बंद कर दे तो प्रकृति खुद अपने आप को संवार लेगी. इसके लिए इंसान को किसी तरह का संघर्ष करने की जरुरत नहीं है.
कोरोना संकट ने साबित कर दिया कि इस दुनिया में प्रकृति ही सर्वोपरि है. मनुष्य सिर्फ विनाशक की भूमिका में है. उसे अपनी जीवनशैली में बदलाव लाकर उसे प्रकृति परक बनाने की सख्त जरुरत है.
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4. किसी भी देश का नेतृत्व उसका भविष्य तय करता है
कोरोना संकट में पूरी दुनिया तबाही की कगार पर खड़ी है. लेकिन भारत, जर्मनी जैसे कुछ देश ऐसे हैं जो बेहद विकट परिस्थितियों में भी खुद को बचा ले गए.
जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल ने तुरंत समझ लिया कि कोरोना बीमारी नहीं बल्कि महामारी है. उनके आदेश पर कोरोना प्रभावित लोगों की ट्रैकिंग शुरू कर दी गई. जर्मनी में कोरोना संक्रमण की मृत्यु दर को रोक पाने के पीछे ट्रैकिंग का बड़ा योगदान रहा है.
यही वजह है कि जर्मनी में कोरोना-मृत्यु दर महज 1.4 प्रतिशत है. जबकि उसके पड़ोसी देश इटली में कोरोना-मृत्यु दर 12 प्रतिशत, स्पेन, फ्रांस और ब्रिटेन में 10 प्रतिशत, चीन में 4 प्रतिशत और अमेरिका में 2.5 प्रतिशत देखी गई.
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने तो कोरोना संकट के दौरान ऐसे सटीक फैसले किए कि इसके लिए उनका नाम इतिहास में दर्ज किया जाएगा. उन्होंने कोरोना त्रासदी शुरु होते ही बिना किसी दबाव में आए तुरंत फैसला लेते हुए पूरे देश में लॉकडाउन घोषित कर दिया. जबकि उद्योग जगत के दबाव में अमेरिका, ब्रिटेन, चीन जैसे बड़े देशों ने लॉकडाउन का फैसला लेने में देर की.
यहां तक कि पाकिस्तान जैसे दिवालिया देश ने भी अपने चंद उद्योगपतियों के दबाव में लॉकडाउन का फैसला नहीं किया. वहीं पीएम मोदी ने राजनैतिक और औद्योगिक दबावों को दरकिनार करके पहले जनता कर्फ्यू और फिर लॉकडाउन का फैसला ले लिया. इसमें निस्संदेह देश की जनता ने भी अपने प्रधानमंत्री का पूरा साथ दिया.
वरना भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में अगर कोरोना वायरस फैल जाता तो क्या हालत होती इसे सोचकर ही रूह कांप जाती है. उदाहरण के तौर पर इटली, स्पेन और अमेरिका जैसे देशों की हालत सामने है.
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5. कट्टरपंथियों का स्थायी इलाज जरुरी
कोरोना वायरस का एक और अहम सबक है कि मजहबी कट्टरपंथी और दकियानूसी सोच के लोग दुनिया के लिए बड़ा खतरा हैं. भारत जैसे देश में तबलीगी जमात के लोग अपनी 1400 साल की पुरातनपंथी शिक्षा पर आंख मूंदकर भरोसा करने के कारण जीते जागते कोरोना बम में तब्दील हो गए और पूरे देश को खतरे में डाल दिया.
स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक हमारे देश में कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों में तबलीगी जमात से संबंध रखने वाले करीब 30 फीसदी मरीज हैं. यही नहीं ये लोग अपनी कट्टरपंथी मजहबी जमातों के चक्कर में आकर समझदार लोगों को भी कोरोना वायरस का शिकार बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं.
कट्टरपंथियों ने अपनी मूर्खता को प्रमाणित करते हुए कई तरह के वीडियो भी बना रखे हैं. जिसमें इस तरह के लोग नमाज पढ़कर कोरोना के इलाज का दावा कर रहे हैं.
ठीक इसी तरह इजरायल में भी अल्ट्रा-ऑर्थोडॉक्स समुदाय के धार्मिक कट्टरपंथियों की वजह से वहां का बनेई ब्राक इलाका कोरोना का केंद्र बन गया.
कोरोना वायरस ने ये सबक दिया है कि किसी भी देश के लिए इस तरह के मजहबी कट्टरपंथी खतरनाक साबित हो सकते हैं. इनकी जहरीली सोच का स्थायी इलाज जरुरी है. अन्यथा किसी तरह की संकट की घड़ी में ऐसे लोग देश और समाज ही नहीं पूरे विश्व को खतरे में डाल सकते हैं.
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इसका निदान ये है कि यह लोग जिस दकियानूसी मजहबी शिक्षाओं के आधार पर इस तरह की मूर्खता करते हैं उसे जड़ से मिटा देने की जरुरत है. इस पर पूरी दुनिया को बेहद गौर से विचार करना होगा.
कोरोना वायरस के प्रकरण ने सिर्फ यही नहीं. बल्कि इस तरह के और भी कई सबक दिए हैं. जिनपर चिंतन किया जाना बेहद जरुरी है. इसके बारे में ज़ी हिंदुस्तान की विशेष सीरिज जारी रहेगी.
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