नई दिल्ली: "मजहबी दुकानदार" मौलवी मोहम्मद साद, यही नाम है उस मक्कार प्राणी का जिसने पहले तो देश को कोरोना के मुंह में झोंकने की साजिश रची और जब उसका ना'पाक' मंसूबा सामने आ गया तो वो फरार हो गया. जी हां, तबलीगी जमात के संदिग्धों की तलाश जारी है और तलाश तबलीगी जमात के मुखिया मोहम्मद साद की भी शिद्दत से हो रही है.
मौलवी मोहम्मद साद की "गुनाह कुंडली"
मौलाना की मक्कार ने पूरे देश को खतरे में डाल दिया है. मोहम्मद साद की ये करतूत पूरे देश को हमेशा याद रहेगी. इस मौलवी की सबसे खास बात ये है कि ये गिरगिट से भी तेज रंग बदलता है. इसकी असलियत का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि इस मौलाना ने अपने गुनाह के चलते होने वाले हश्र को भापते हुए अपने सुर ही बदल लिए. इसने अपने भड़काऊ भाईजान वाले कैरेक्टर को बदलने की कोशिश शुरू कर दी.
आपको इस मौलाना साद से जुड़ी एक-एक असलियत बताते हैं. बारी-बारी से इस गुनहगार मक्कार मौलाना का पूरा चलता-चिट्ठा इस रिपोर्ट के जरिए आपको बता रहे हैं.
सुर्खियों में कैसे आया 'मक्कार' मौलवी मोहम्मद साद?
देश के गुनहगार और लापरवाह मजहबी ठेकेदार मौलवी मोहम्मद साद की असलियत जब सामने आई तो उसके एक-एक राज पर से पर्दा उठने का सिलसिला शुरू हो गया है. देश की राजधानी दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाके को अपना अड्डा बनाने वाला ये मौलवी तबलीगी जमात का मुखिया है. इसके सुर्खियों में आने की वजह वो कार्यक्रम है जिसके बाद पूरे देश के अलग-अलग हिस्सों से कोरोना संक्रमण के मामले सामने आने लगे.
जिस वक्त पूरा देश कोरोना को हराने के लिए घर में रहकर लॉकडाउन का पालन करके युद्ध लड़ रहा है, उसी वक्त इस मक्कार मौलाना ने मजहबी कार्यक्रम आयोजित करके कोरोना वायरस को न्यौता दिया. हजारों की संख्या में लोगों को इकट्ठा किया और विशाल मजहबी 'नुमाइश' सभा का आयोजन किया.
मक्कार मौलाना के खिलाफ दर्ज हो गई है FIR
इस मक्कारी के लिए दिल्ली पुलिस ने मोहम्मद साद के खिलाफ FIR दर्ज कर ली है. पुलिस के अनुसार इस मौलाना ने निज़ामुद्दीन इलाके में मजहबी सभा का आयोजन करके सरकार के आदेशों का उल्लंघन किया. मौलाना ने खुद पर गाज गिरता देख फरारी को अपना हथियार बनाया, जिसके बाद उसने चोरी चुपके इस जानकारी को वायरल कराया कि वो आइसोलेशन में है.
लेकिन यहां गौर करने वाली बात ये है कि ये वही मौलाना मो. साद है जो मुस्लिमों को ये संदेश दे रहा था कि कोरोना इस्लाम के लोगों का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है. ये वही मौलाना है जिसने कहा था कि भीड़ में इकट्ठा होना जरूरी है. इसने कहा था कि "ये मौक़ा अल्लाह ताला से माफी मांगने का है, ये मौक़ा इसका नहीं है कि आदमी महज़ डॉक्टरों की बातों में आकर नमाज़ करना छोड़ दे, मुलाकातें छोड़ दे, मिलना जुलना छोड़ दे. क्या 70 हज़ार फरिश्ते हमारे साथ हैं? बीमारी आ गई, जब अल्लाह ताला ने मेरे लिए बीमारी मुकद्दर कर दी तो मैं किसी डॉक्टर, किसी दवा को साथ रखकर कैसे बच सकूंगा? बस अल्लाह ताला को याद करते रहो."
लेकिन मौलाना ने इन सारी बातों को खुद पर लागू नहीं किया और वो खुद आइसोलेशन में पहुंच गया. आपको इस मौलाना से जुड़ी एक-एक सच्चाई से रूबरू करवाते हैं.
'दोहरे चरित्र' का सबसे बड़ा उदाहरण है मौलाना साद
मौलाना साद के करीबियों का कहना है कि वो और उसकी जमात टीवी, फिल्म, वीडियो और इंटरनेट जैसे माध्यमों के खिलाफ है. लेकिन हैरानी की बात तो ये है कि जो मौलाना इंटरनेट का विरोधी है वो अपना ऑडियो मैसेज जारी करता है और जमात में वायरल भी करवाता है. ये बिल्कुल उसी प्रकार है कि उसने पहले तो जमात को डॉक्टरों की सलाह नहीं मानने का पाठ पढ़ाया और खुद पर जब आफत आई तो पहुंच गया आइसोलेशन में... वाह रे, इनके "दोगले विचार"...
कहा तो ये भी जाता है कि मौलाना के रिश्तेदारों के घर में भी टीवी नहीं है और ना ही मौलाना और उसके करीबी तस्वीरें खिचवाते हैं. लेकिन इंटरनेट पर मौलाना की तस्वीरें काफी हैं. इससे समझिए कि झूठ और सच में फर्क क्या है?
निज़ामुद्दीन का "लोकल बॉय" है मौलाना मोहम्मद साद
इस मक्कार मौलाना साद को निज़ामुद्दीन का लोकल बॉय भी कहा जाता है. जानकारी के अनुसार मौलवी का जन्म 55 साल पहले निज़ामुद्दीन बस्ती के उसी घर में हुआ था, जहां वो फरार होने के पहले तक रहता था. खास बात ये है कि इस मौलाना मो साद का घर तबलीगी जमात के मुख्यालय यानी मरकज़ से बिलकुल सटा हुआ है.
विरासत में मिल गई तबलीगी जमात की कमान
मौलाना मोहम्मद साद को इस्लाम का बड़ा जानकार नहीं माना जाता है लेकिन इसके बावजूद वो तबलीगी जमात का मुखिया है. सच तो ये है कि साद को इस जमात की कमान विरासत में मिल गई. दरअसल, मो. साद इस तबलीगी जमात की साल 1926 में स्थापना करने वाले मौलाना मोहम्मद इलियास कांधलवी का पड़पोता है. इसी लिए कहा जाता है कि उसे तबलीगी जमात की लीडरशिप पकी-पकाई खिचड़ी की तरह नसीब हो गई.
कहा जाता है कि इस मक्कार मौलाना मो. साद के परदादा मो. इलियास और दादा मो. यूसुफ इस्लाम के बेहतर जानकार थे. मोहम्मद साद ने अपनी पढ़ाई मरकज़ स्थित मदरसे काशिफ़ुल उलूम में पूरी की. मदरसे में पढ़ाई करने के बावजूद उसकी जानकारी इस्लाम के जानकार मौलाना इब्राहिम देओल और मौलाना अहमद लाट के कद से कहीं नीचा था.
जब दो हिस्सों में बंट गई तबलीगी जमात
यही वजह है कि जब इसे तबलीगी जमात का मुखिया बनाया गया उसके तीन ही साल के भीतर पूरे जमात में फूट पड़ गई और ये दो हिस्सों में विभाजित हो गया. इसका परिणाम ये हुआ कि इस जमात के ज्यादातर लोग टूट के बाद मौलाना इब्राहिम देओल और मौलाना अहमद लाट के गुट के साथ चले गए.
जानकारी के अनुसार भारत में जब जमात में फूट हुई तो इसका असर विदेशों की शाखाओं में भी पड़ा. इसका सबसे बड़ा असर बांग्लादेश और पाकिस्तान में देखा जाता है. जहां मौलाना मोहम्मद साद का बेहद कम असर देखने को मिलता है. जबकि यूरोप और अमेरिका में साद को मानने वालों की संख्या ठीक-ठाक है.
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चाहें जो भी हो, मक्कार मौलाना मोहम्मद साद कितना भी छिपे, कहीं भी फरारी काटे, लेकिन वो ज्यादा दिन कानून की चंगुल से भाग नहीं सकता है. उसके किए जुर्म की सजा उसे जरूर मिलेगी. उनके एक-एक गुनाहों का हिसाब होगा.
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