नई दिल्ली: दिल्ली की घेराबंदी के लिये लाखों की तादाद में लोग जुट चुके हैं लेकिन सबके चेहरों से मास्क नदारद है.आंदोलन में न दो गज की दूरी का ख्याल है. ना ही कोरोना को ध्यान में रखकर सेनेटाइजेशन हो रहा है. भीड़ में साफ-सफाई का ख्याल कितना होगा, ये समझना मुश्किल नहीं है. तभी तो सुप्रीम कोर्ट को किसान आंदोलन में 'मरकज' वाला खतरा नजर आ रहा है, जिसकी जिद ने देश में कोरोना को कहां से कहां तक फैला दिया था?


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आंदोलन अपनी जगह ठीक है, लेकिन सवाल ये है कि इसके नाम पर भोले-भाले अन्नदाताओं के साथ-साथ दिल्ली वालों की जिंदगी से खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है? किसान आंदोलन (Farmer Protest) में घुसपैठ कर चुके अराजक तत्व कोरोना के डर को नजर अंदाज करने के लिए किसान भाइयों को किस तरह उकसा रहे हैं, ये आंदोलन से जुड़े वीडियोज खंगालने पर आपको भी साफ साफ दिख जाएगा.


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आंदोलन के लिये जोश, कोरोना से लड़ने का नहीं होश?


26 नवंबर से दिल्ली के बॉर्डर (Delhi Broder) की घेराबंदी करने वाले चेहरे अब 26 जनवरी को दिल्ली में राजपथ पर ट्रैक्टर जुलूस निकालने की चेतावनी दे रहे हैं. उनसे सीधा सवाल ये है कि सरकार को चुनौती देने के जोश में कोरोना से लड़ने का होश क्यों नदारद है? बड़ी मुश्किल से काबू में आए कोरोना को जानबूझकर फिर न्यौता देने की क्यों तैयारी है? तब्लीगी जमात की तर्ज पर कोरोना से आंख मूंदने का जानलेवा गुनाह अन्नदाता आंदोलन में क्यों हो रहा है? ये आंदोलन को कोरोना का 'मरकज' बनाने की नासमझी है या फिर सोचा-समझा प्लान?



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आखिर किसके इशारे पर दिल्ली को कोरोना की नई राजधानी बनाने की बेताबी दिखाई जा रही है?


इन सारे सवालों पर सोचना बेहद जरूरी है. क्योंकि किसान आंदोलन में जुटे लोग कोरोना को नकारते दिख रहे हैं. कोरोना से बचाव की गाइडलाइंस को भुलाते दिख रहे हैं. वो तो प्रधानमंत्री मोदी की उस सलाह को भी खारिज करते दिख रहे हैं कि 'जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं'.


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सवाल ये है कि किसान आंदोलन में कोरोना के खिलाफ जानबूझकर लापरवाही बरतने का माहौल क्यों बनाया गया? अन्नदाता आंदोलन को हाईजैक करने वाले चेहरों ने अपनी हनक में सरकार की अपील के साथ सुप्रीम कोर्ट की कोरोना गाइडलाइंस को भी क्यों ताक पर रख दिया? अपने चेहरे से मास्क हटाकर दूसरों को भी ऐसा करने के लिये उकसाना क्या गुनाह नहीं है? और इस गुनाह को जाने-अनजाने आंदोलन में अब हर कोई हवा देता दिख रहा है.


सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस को ताक पर क्यों रखा?


आंदोलन में डटे सत्तर साल के बुजुर्ग किसान ठाकुर जगपाल सिंह ने ज़ी मीडिया से जो कुछ कहा...वो उन्हीं के शब्दों में सुन लीजिए. कोरोना के खतरे का सवाल हुआ तो वो ताल ठोकने के अंदाज में कहते दिखे- 'ये बात सही है. कोरोना का खतरा बना हुआ है. लेकिन मैं गारंटी देता हूं, कहीं लिखित में ले लो.किसी को भी कोरोना हो जाए, ठाकुर जगपाल सिंह को कोरोना नहीं होगा.'


सिंघु बॉर्डर पर मीडियाकर्मियों के सवाल के जवाब में प्रदर्शनकारी ये समझाइश देते दिखते हैं कि 'आप भी मास्क उतार फेंको. कोरोना की फर्जी हवा बनाई गई है. मैं गारंटी लेता हूं.आपको कुछ नहीं होगा.' वैसे ये सोच एक दिन में नहीं बनी है. इसके पीछे वो तमाम ताकतें पहले दिन से लगी हुई थीं, जो किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर सरकार को निशाने पर लेना चाहती हैं.


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दिल्ली में रहते कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने एक दिन भी अन्नदाता आंदोलन का रुख नहीं किया. ट्विटर पर ही अन्नदाताओं के लिये जिहाद करते रहे. और अब वो इटली में नानी के घर मौज में हैं, तब भी किसानों को उकसाने से नहीं चूक रहे हैं.


3 जनवरी का इटली से किया गया उनका ट्वीट देखिये.राहुल ने लिखा कि 'न बारिश, न ठंड , न लाठी, ना ही पानी की बौछार, कोई भी हमारे किसानों को आंदोलन से नहीं डरा सकता.'


ये ट्वीट बता रहा है कि उन्हें अन्नदाताओं की कितनी फिक्र है. इसी ट्वीट में राहुल अगर किसानों को कोरोना से आगाह रहने की सलाह दे देते. राहुल ऐसे घुसपैठियों को दो टूक सुना देते, जो ये कह कर आंदोलनकारी किसानों को बरगला रहे हैं कि 'कोरोना तो कहीं है ही नहीं.ये तो सरकार की साजिश है?'


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दिल्ली को 'कोरोना कैपिटल बनाने' की नासमझी या साजिश?


विपक्ष हर पल अपनी सियासी रोटियां सेंकने का मौका ढूंढता है, ये सही है, लेकिन इस चक्कर में अन्नदाताओं को कोरोना की भेंट चढ़ाने का गुनाह क्यों किया जा रहा है?


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हम क्यों भूल जाते हैं कि कोरोना से दुनिया में अबतक लगभग उन्नीस लाख मौतें हो चुकी हैं. हिन्दुस्तान में डेढ़ लाख से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं. इसी दिल्ली में कोरोना साढ़े दस हजार से ज्यादा मौतें  बांट चुका है, जहां पिछले 43 दिनों से अन्नदाता आंदोलन को हवा दी जा रही है.


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