नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी का मतलब किसी राजनीतिक दल से नहीं है, बल्कि इसे एक परिवार की जागीर कहा जाए.. तो शायद ज्यादा बेहतर होगा. क्योंकि इस वक्त कांग्रेस का सबसे बड़ा लक्ष्य एक परिवार का कल्याण करना है. कांग्रेस सिर्फ और सिर्फ गांधी एवं वाड्रा परिवार के हितों की पार्टी बनकर रह गई है. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को आज 135 साल पूरे हो गए हैं, 28 दिसंबर 1885 को कांग्रेस पार्टी बनी थी. आपको कांग्रेस के उस इतिहास से रूबरू करवाते हैं, जिससे आप ये समझ जाएंगे कि इस पार्टी पर गांधी परिवार का कब्जा कैसे हुआ.
क्या कहता है कांग्रेस का इतिहास?
आज से ठीक 135 साल पहले कुछ खास मकसद के लिए कांग्रेस पार्टी की स्थापना की गई थी, लेकिन आज ये पार्टी सिर्फ और सिर्फ गांधी परिवार की कब्जे वाली पार्टी बनकर रह गई है. पार्टी की कमान लंबे वक्त से सिर्फ गांधी परिवार के सदस्यों के पास ही है. लेकिन ये कांग्रेस पार्टी एक अंग्रेज अधिकारी द्वारा बनाई गई थी.
कांग्रेस पार्टी की स्थापना स्कॉटलैंड निवासी ऐलन ओक्टोवियन ह्यूम (A.O. Hume) ने की थी. जानकारी के अनुसार ह्यूम ने थियोसोफिकल सोसायटी के सिर्फ 72 राजनीतिक कार्यकर्ताओं की मदद से कांग्रेस (Congress) की स्थापना की थी, जिसमें सामाजिक कार्यकर्ता (Social Worker), पत्रकार (Journalists) और वकीलों (Advocates) का समूह भी शामिल था.
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कांग्रेस का पहला 4 दिवसीय अधिवेशन
जानकारी के अनुसार, कांग्रेस का पहला 4 दिवसीय अधिवेशन 28 दिसंबर 1885 को बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में हुआ था, उस वक्त इस अधिवेशन के अध्यक्ष तब के बैरिस्टर व्योमेश चंद्र बनर्जी थे. लेकिन क्या आपको इस बात की जानकारी है कि आखिर कांग्रेस पार्टी के गठन के पीछे का असली मकसद क्या था?
कांग्रेस के गठन का असली सच जानिए
कांग्रेस का गठन करने वाले नेताओं ने इस बात को भाप लिया था कि शुरुआत में ही ब्रिटिश सरकार से दुश्मनी मोल लेना उचित नहीं होगा. ऐसे में कई दिग्गजों ने उस वक्त ये रणनीति बनाई कि यदि कांग्रेस जैसे सरकार विरोधी संगठन का फाउंडर अवकाश प्राप्त ब्रिटिश अधिकारी हो तो कांग्रेस के प्रति कोई ब्रिटिश सरकार को संदेह नहीं होगा. दिग्गजों ने इसके पीछे की एक और मजबूत कड़ी को खंगाला और ये समझा कि एओ ह्यूम की मदद से कांग्रेस की स्थापना हुई तो इस पर सरकारी की गुंजाइश भी कम होगी.
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आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी धीरे-धीरे सिर्फ और सिर्फ गांधी परिवार की धरोहर बनकर रह गई. अध्यक्ष पद पर आसीन रह चुके नेताओं के नाम इस प्रकार हैं. पार्टी पर सबसे लंबे समय तक सोनिया गांधी ने राज किया है.
आचार्य कृपलानी (1947-1948)
पट्टाभि सीतारमैया (1948-1950)
पुरषोत्तम दास टंडन (1950-1951)
जवाहरलाल नेहरू (1951-1955)
यू. एन. धेबर (1955-1959)
इंदिरा गांधी (1959-1960 और 1978-84)
नीलम संजीव रेड्डी (1960-1964)
के. कामराज (1964-1968)
एस. निजलिंगप्पा (1968-1969)
पी. मेहुल (1969-1970)
जगजीवन राम (1970-1972)
शंकर दयाल शर्मा (1972-1974)
देवकांत बरआ (1975-1977)
राजीव गांधी (1985-1991)
कमलापति त्रिपाठी (1991-1992)
पी. वी. नरसिंह राव (1992-1996)
सीताराम केसरी (1996-1998)
सोनिया गांधी (1998-2017)
राहुल गांधी (2017-2019)
सोनिया गांधी (2018 से अंतरिम अध्यक्ष)
परिवार की धुरी पर चल रही कांग्रेस पार्टी की हालत बदतर हो चुकी है, बड़े-बड़े नेताओं ने बगावती सुर अख्तियार कर लिया है. कांग्रेस की अंदरूनी कलह बार-बार सामने आई है और बवाल के बाद नेताओं के रूठने और मनाने का सिलसिला चलता रहता है, क्योंकि गांधी परिवार की जागीर बन चुकी कांग्रेस में हर दिन घरेलू घमासान छिड़ा रहता है.
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कांग्रेस के अतीत को भी ज़रा समझिए
कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी महात्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू, मदन मोहन मालवीय, सुभाष चंद्र बोस जैसे क्रांतिकारियों से लेकर अब 60 लोग पार्टी के अध्यक्ष पद की कमान संभाल चुके हैं.
वर्तमान में कांग्रेस पार्टी बिल्कुल बेसहारा है, मैडम सोनिया गांधी को कांग्रेस की अतंरिम अध्यक्ष के तौर जिम्मेदारी तो मिली हुई है, लेकिन सोनियां गांधी की तबीयत खराब होने के चलते नेतृत्व को लेकर कांग्रेस में गृह युद्ध भी लगातार छिड़ रहा है. अध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी के 60वें अध्यक्ष चुने गए थे, लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी को मिली करारी हार के बाद राहुल ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.
मैडम सोनिया की धरोहर है कांग्रेस!
आपको जानकर हैरानी होगी कि आजादी के बाद पार्टी के 19 अन्य अध्यक्षों में से 14 गांधी या नेहरू परिवार से नहीं थे. यानी 5 अध्यक्ष गांधी परिवार के ही थे. और सबसे ज्यादा अजीब बात तो ये है कि आजादी के बाद पार्टी अध्यक्ष पद पर सबसे लंबे वक्त तक सोनिया गांधी बनी रहीं, इन्होंने बतौर अध्यक्ष 19 वर्षों तक कांग्रेस की बागडोर अपने हाथों में रखी. इतना ही नहीं मैडम सोनिया इस वक्त भी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष हैं. उनकी सास इंदिरा गांधी अलग-अलग कार्यकाल में सात वर्ष तक पार्टी अध्यक्ष रही हैं. जानकारी के अनुसान सोनिया गांधी ने साल 1997 में कांग्रेस की सदस्यता ली थी और अगले ही साल यानि 1998 में उन्हें पार्टी की कमान मिल गई थी.
एक और खास बात ये है कि मनमोहन सिंह और लाल बहादुर शास्त्री.. यही दो कांग्रेस के ऐसे नेता रहे हैं, जो प्रधानमंत्री तो बने लेकिन पार्टी अध्यक्ष नहीं रहे हैं. देश की सत्ता पर सबसे लंबे समय तक काबिज रहने वाली कांग्रेस पार्टी का इतिहास कुछ ऐसा ही रहा है.
कांग्रेस पार्टी का नाम आम-ओ-खास सभी ने सुना ही है। ये वो पार्टी है जिसकी स्थापना 134 साल पहले एक राजनीति के तहत ही की गई थी। मगर बदलते समय के साथ ये पार्टी एक खास परिवार के नाम से ही पहचानी जाने लगी। आज कांग्रेस पार्टी का मतलब गांधी परिवार है। कांग्रेस में इनकी मर्जी के बिना कुछ भी नहीं हो सकता।
सियासत और मतलब का आपस में बड़ा ही गहरा संबंध है, इसके लाखों उदाहरण मौजूद हैं. इस बीच कांग्रेस पार्टी में मची राजनीतिक कलह इस बात का एक बड़ा सबूत है कि ये पॉलिटिक्स मतलबियों का सबसे बड़ा ठिकाना है. सालों से कांग्रेस पार्टी सिर्फ और सिर्फ एक परिवार की कठपुतली बनकर रह गई है. जिसे आज खुद गांधी परिवार के सदस्यों ने सिद्ध कर दिया है.
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