नई दिल्ली: मुश्किल से 10 दिनों पहले की बात है. पाकिस्तान (Pakistan) की राजधानी इस्लामाबाद की सड़कों पर तबाही मची हुई थी. फ्रांस (France) में बने एक कार्टून जैसे सतही मुद्दे पर एक सनकी मौलाना ने पूरे देश को हिला दिया था. इसके चंद दिनों बाद हमारे देश की राजधानी दिल्ली में उसी तरह आग लगाने के लिए भीड़ इकट्ठा हो गई. ये संयोग है या प्रयोग...
किसान आंदोलन के पीछे अंतरराष्ट्रीय साजिश का संदेह बेवजह नहीं है. जिस तरह इसमें पीएफआई (PFI), खालिस्तानी (Khalistani), नक्सलवाद (Naxalism) समर्थक संगठनों की सक्रियता दिखाई दे रही है. वह किसी बड़ी साजिश की तरफ इशारा कर रही है. कांग्रेस जैसे मोदी विरोधी दलों ने देशहित को किनारे रखकर इस आग में पेट्रोल डालने की पूरी तैयारी कर ली है. ये हैं कुछ सबूत-
1. किसान आंदोलन में शामिल लोगों का देश विरोधी रवैया
इस कथित किसान आंदोलन में शामिल लोगों का जो रवैया है, वह चौंकाने वाला है. उनके तेवरों में देश विरोध साफ तौर पर दिखाई दे रहा है.
"कनाडा की धरती पर जाकर ठोक सकते हैं, दिल्ली क्या चीज़ है...इंदिरा ठोक दी..मोदी....#किसान_आंदोलन_दिल्ली https://t.co/4scXD27Xdo
— Ashok Shrivastav (@AshokShrivasta6) November 27, 2020
ये कथित किसान सैकड़ों लोगों की मौत के जिम्मेदार आतंकवादी भिंडरावाले के फोटो के साथ प्रदर्शन कर रहे हैं.
Farmer protests or Khalistani protest? Says: Indira thok Di, Modi ko bhi...
They want to create another Shaheen Bagh Watch & decide for yourself! शाहीन बाग #मोदी_संग_किसानpic.twitter.com/h1TXFS87U0
— Nilesh Vishwanath Parvate (@nilesh_parvate) November 28, 2020
इन तस्वीरों को जरा गौर से देखिए. ये साफ तौर पर देश के खिलाफ साजिश है. जब देश ही नहीं होगा तो कहां बचेंगे खेत और कहां होगी किसानी?
2. किसान आंदोलन में मजहबी कट्टरपंथी चेहरे
मोदी सरकार की राष्ट्रवादी नीतियों की सफलता देखकर देश का जिहादी वामपंथी गैंग बुरी तरह बौखलाया हुआ है. उसे देश तोड़ने के लिए बहाने की तलाश है. उनका विरोध राष्ट्रवाद से है. यही कारण है कि जहां भी आग लगाने का मौका उन्हें दिखता है. वह उसमें घुसने की कोशिश करते हैं.
"यूनाइटेड अगेंस्ट हेट" नाम का यह मजहबी कट्टरपंथियों का जिहादी संगठन किसानों की मदद के नाम पर सामने आया है. दरअसल इन्हे किसानों से हमदर्दी नहीं है, बल्कि ये शाहीन बाग और दिल्ली दंगे की अपनी मुहिम के फ्लॉप होने के बाद से ही बौखलाए हुए हैं
मजहबी कट्टरपंथियों ने CAA विरोध के नाम पर फरवरी के महीने में दिल्ली में दंगा भड़काने की नाकाम साजिश रची थी. लेकिन उनके मंसूबों को समझते हुए सरकार ने उसे बुरी तरह कुचल दिया था. जिसके बाद जिहादी सीधे तौर पर सामने आने से डर रहे हैं. वो देश को अस्थिर करने के लिए तरह तरह के बहाने तलाश कर रहे हैं.
पहले हाथरस के जातीय आंदोलन में घुसपैठ की कोशिश की गई. इसके बाद अब किसान आंदोलन में घुसपैठ करके देश जलाने की साजिश रची जा रही है.
3. CAA विरोध और किसान आंदोलन की समानताएं
- कथित किसान आंदोलन और CAA विरोधी दंगे दोनो का आधार झूठ और फरेब था. जहां CAA का विरोध ये कहकर किया गया कि इससे भारतीय मुसलमानों की नागरिकता खत्म कर दी जाएगी. वहीं किसान आंदोलन के लिए ये बहाना बनाया गया है कि इससे न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और अनाज मंडी की व्यवस्था खत्म कर दी जाएगी.
- CAA विरोधी आंदोलन में सहानुभूति जुटाने के लिए महिलाओं और बच्चों को आगे किया गया था. किसान आंदोलन में मासूम और बुजुर्ग किसानों को लाठी खाने के लिए आगे कर दिया गया है.
- CAA विरोधी आंदोलन के दौरान भी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को बंधक बनाने की कोशिश की गई थी. वहीं किसान आंदोलन के नाम पर भी देश की राजधानी को ठप करने की साजिश रची जा रही है.
- CAA विरोधी आंदोलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Modi) को जान से मारने की धमकियां खुलेआम दी जा रही थीं. यहां भी प्रधानमंत्री का नाम लेकर उनकी हत्या की बात कही जा रही है.
- CAA विरोधी आंदोलन के पीछे पीएफआई जैसे जिहादी संगठनों की सहभागिता थी. वहीं किसान आंदोलन के दौरान भी खालिस्तानी आतंकवादियों के पोस्टर लहराए जा रहे हैं.
4. भारत को अस्थिर करने के लिए विदेशी फंडिंग के सबूत
यूपी के हाथरस में दंगा भड़काने की साजिश की जांच करते हुए प्रवर्तन निदेशालय (ED) को पता चला कि इसके लिए मॉरिशस के जरिए पीएफआई को 50 करोड़ रुपये की फंडिंग हासिल हुई थी. इसके अलावा भी अलग अलग स्रोतों से इस जिहादी संगठन को 100 करोड़ से ज्यादा की फंडिंग की गई.
हाथरस में तो मामला भड़काए जाने से पहले ही प्रशासन ने उसे संभाल लिया. इस मामले में चार लोगों को गिरफ्तार भी किया गया. वो मामला तो फ्लॉप हो गया. लेकिन मजहबी कट्टरपंथियों फंड उपलब्ध कराने वाले विदेशी आकाओं को भी जवाब देना था.
तो क्या उस फंड का इस्तेमाल किसान आंदोलन के बहाने देश को दंगों की आग में झोंकने के लिए किया जा रहा है?
विदेशी फंड के जरिए दंगा भड़काने की साजिश की पूरी खबर आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं.
5. आग से खेल रहा भारत का विपक्ष
सबसे दर्दनाक तो ये है कि सत्ता पाने की लालसा में भारत की आत्मा को ही नष्ट कर रहा है. जिस कृषि कानून के विरोध में यह यह कथित किसान आंदोलन चल रहा है. कांग्रेस और तमाम दूसरे दल इसी तरह के कानूनों की वकालत करते आए हैं. लेकिन किसान अपनी नासमझी की वजह से आंदोलन पर उतर आए हैं तो मोदी सरकार को सबक सिखाने के लिए बहती गंगा में हाथ धोने की कोशिश कर रहा है.
- साल 2006 में पंजाब की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम (Agrisulture Produce Market amedment act) के जरिए राज्य में निजी कंपनियों को खरीददारी की अनुमति दी थी. कानून में निजी यार्ड तैयार करने की भी अनुमति मिली थी. किसानों को भी छूट दी गई कि वह कहीं भी अपने उत्पाद बेच सकता है. यह काफी हद तक वर्तमान कृषि कानून के जैसा ही मसौदा था.
- कांग्रेस ने साल 2019 के आम चुनाव के दौरान अपने चुनावी घोषणापत्र में मोदी सरकार के कृषि कानून जैसा ही कानून बनाने का वादा किया था. लेकिन आज वह इसका विरोध कर रही है.
- वर्तमान कृषि कानून के विरोध में एनडीए से बाहर जाने वाले अकाली दल के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने राज्य में कांट्रेक्ट फार्मिंग की अनुमति देने का कानून बनाया था. लेकिन आज केन्द्र सरकार ने जब वैसा प्रावधान किया तो वह विरोध करने लगे और हरसिमरत कौर ने इस्तीफा दे दिया.
विरोधी दलों का ऐसा रवैया समझ से परे हैं. वह मोदी सरकार के विरोध के नाम पर देश हित की धज्जियां उड़ा रहे हैं. उनके दलालों ने किसानों के बीच घुसपैंठ करके उन्हें इतना भड़काया है कि किसान कुछ भी सोच नहीं पा रहे हैं. यहां तक कि कृषि मंत्री ने जब उन्हें 5 दिनों बात बातचीत का निमंत्रण दिया तो वह इसमें भी साजिश देख रहे हैं.
लेकिन वक्त गवाह है कि झूठ की खेती लंबे समय तक नहीं चलती. जल्दी ही देश विरोध की इस साजिश का भी पर्दाफाश हो जाएगा.
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