नई दिल्ली: गुजरात हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में उन माता-पिता को लताड़ लगाई है, जो तीन साल से कम उम्र के बच्चों को स्कूल में डलवा देते हैं. हाई कोर्ट ने इसे गैर-कानूनी करार दिया है. हाई कोर्ट ने कहा कि जो माता-पिता अपने बच्चे को तीन साल से पहले ही प्रीस्कूल में जाने को मजबूर करते हैं, वे गैर-कानूनी काम कर रहे हैं.
माता-पिता ने दायर की थी याचिका
बच्चों के माता-पिता ने स्कूलों में जल्द दाखिला कराने की याचिका हाई कोर्ट में दर्ज कराई थी. माता-पिता की मांग थी कि यदि बच्चे 1 जून, 2023 तक 6 साल का नहीं हुए हैं, तब भी उन्हें कक्षा 1 में दाखिला मिलना चाहिए. बता दें कि नई शिक्षा नीति के दिशानिर्देश के तहत बच्चों के स्कूल में दाखिले की न्यूनतम उम्र 6 वर्ष होनी चाहिए. संशोधित हुए शिक्षा का अधिकार (RTE) कानून में भी न्यूनतम उम्र 6 साल ही रखी गई थी.
याचिका खारिज हुई
दरअसल, बच्चा प्रीस्कूल में तीन साल बिता चुका था, लेकिन पहली क्लास में होने के लिए न्यूनतम उम्र 6 साल है. लिहाजा, माता-पिता ने इस मामले में कोर्ट की दखल चाही. उन्होंने कोर्ट में याचिका दर्ज की, जिसकी सुनवाई के दौरान ही कोर्ट की तल्ख टिप्पणी सामने आई. फिर याचिका खारिज कर दी गई.
कोर्ट ने कही ये बात
मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की पीठ ने कहा कि बच्चों को तीन साल का होने से पहले ही प्रीस्कूल जाने के लिए मजबूर करना याचिकाकर्ता माता-पिता की ओर से किया गया अवैध कार्य है. इस तर्क से अदालत को फर्क नहीं पड़ता कि बच्चे ने तीन साल प्रीस्कूल में बिता लिए हैं. कानूनन तीन साल पूरे होने से पहले किसी बच्चे के प्रीस्कूल में जाने पर रोक है.
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