घर मिलने की ख़ुशी क्या होती है, मैं समझता हूँ, कहा मोदी ने

दिल्ली में अवैध कॉलोनियों को वैध कराने के अपने फैसले पर हुए काम को लेकर प्रसन्नता की अभिव्यक्ति थे, प्रधानमंत्री मोदी के ये शब्द..  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Dec 22, 2019, 03:17 PM IST
    • ''घर मिलने की ख़ुशी मैं समझता हूँ'' - मोदी
    • ''दिल्ली के लोगों को इस अधिकार से दूर रखा गया था''
    • ''अवैध कालोनियों के लिए सिर्फ चुनावी वायदे किये गये''
    • ''सम्पूर्ण अधिकार से लोगों में जोश''
घर मिलने की ख़ुशी क्या होती है, मैं समझता हूँ, कहा मोदी ने

नई दिल्ली.  लाखों सरों को छत नसीब हुई और हज़ारों लोगों को घर मिले. बात है ये दिल्ली की अवैध कॉलोनियों की और इसका श्रेय निस्संदेह बीजेपी की केंद्र सरकार को जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में आयोजित रामलीला मैदान से अपने सम्बोधन के दौरान अपनी प्रसन्नता को अपने शब्दों में व्यक्त किया.

दिल्ली के लोगों को इस अधिकार से दूर रखा गया था 

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि ये दिल्ली के उन लाखों लोगों का अधिकार था जो इन अवैध कॉलोनियों में रह रहे थे. केंद्र सरकार उनके डर को समझती थी और इसीलिए उसने इन कॉलोनियों को वैध घोषित करके  इन लोगों के अपने आशियाने के छिन जाने के डर को हमेशा के लिए दूर कर दिया. 

अवैध कालोनियों के लिए सिर्फ चुनावी वायदे किये गये

प्रधानमंत्री ने कहा कि अब तक बस इन अवैध कॉलोनियों को चुनावी वायदों के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था. पर किसी पार्टी की वास्तविक इच्छा इस पर काम करने की नहीं थी. लेकिन केंद्र की सरकार के लिए यह महत्वपूर्ण था कि लोगों को उनका अधिकार प्राप्त हो.

''सम्पूर्ण अधिकार से लोगों में जोश''   

पीएम मोदी ने कहा कि अपने घर की ख़ुशी क्या होती है, वे समझते हैं. लाखों लोगों को देश की राजधानी दिल्ली में घर मिल जाए इससे अच्छा क्या हो सकता है. केंद्र सरकार ने इन कालोनियों को वैध कर इस दिशा में जो काम किया. उसकी ख़ुशी लोगों के जोश में साफ़ झलक रही है. 

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'सबसे पॉश इलाके में अवैध तरीके से दो हज़ार बंगले बना रखे थे'

प्रधानमंत्री ने कहा कि एक तरफ तो लाखों लोग अपने घर के सपने से भी दूर थे और वहीं दूसरी तरफ राजधानी दिल्ली के सबसे पॉश इलाके में इन लोगों ने अवैध तरीके से दो हज़ार बंगले बना रखे थे. उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार और सुस्ताचार के प्रतिनिधि थे दिल्ली के पुराने सत्ताधीश जिन्हें जनता की आकांक्षाओं से कुछ भी लेना-देना नहीं था.  

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