नई दिल्ली: पार्टी के वरिष्ठ नेता एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना में बगावत के बाद से महाराष्ट्र में राजनीति में सियासी उठा-पटक जारी है. पार्टी में विद्रोह ने शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ महाराष्ट्र विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार का भाग्य खतरे में पड़ गया है.
शिवसेना के इतने विधायक शिंदे के साथ
एकनाथ शिंदे ने दावा किया है कि शिवसेना के करीब 40 विधायक उनके खेमे में शामिल हो गए हैं. कथित तौर पर, शिंदे और उनके विद्रोही खेमे, (जो वर्तमान में गुवाहाटी में डेरा डाले हुए हैं) में कई निर्दलीय विधायक भी हैं.
महाराष्ट्र में राजनीतिक संकट उच्चतम न्यायालय तक पहुंच गया है, क्योंकि शिंदे ने खुद और 15 अन्य बागी विधायकों को अयोग्य ठहराने के कदम के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दायर की है.
बागी विधायकों को मिली 11 जुलाई तक राहत
देश की शीर्ष अदालत ने विधायकों को उनके खिलाफ अयोग्यता नोटिस पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए दी गई समय सीमा को 11 जुलाई तक बढ़ा दी है. शिवसेना के 55 विधायक राज्य में एमवीए सरकार के प्रमुख हैं. 53 विधायकों वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और 44 विधायकों वाली कांग्रेस पार्टी एमवीए सरकार में गठबंधन सहयोगी हैं. महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सदस्यों की ताकत है.
चूंकि शिवसेना में बगावत से एमवीए सरकार का भाग्य खतरे में पड़ गया है, सी-वोटर-इंडियाट्रैकर ने इस मुद्दे पर लोगों के विचार जानने के लिए आईएएनएस की ओर से एक देशव्यापी सर्वे किया. सर्वे का उद्देश्य यह समझना था कि पार्टी के राजनीतिक लड़ाई में ठाकरे और शिंदे के बीच कौन विजेता के रूप में उभरेगा.
इस लड़ाई पर महाराष्ट्र के लोगों की क्या है राय?
दिलचस्प बात यह है कि सर्वे के दौरान, जबकि उत्तरदाताओं की राय इस मुद्दे पर विभाजित थी, उनमें से एक बड़ा अनुपात- 53 प्रतिशत ने दावा किया कि इस राजनीतिक लड़ाई में शिंदे विजेता होंगे, वहीं 47 प्रतिशत ने ठाकरे के पक्ष में जवाब दिया.
सर्वे के दौरान, जबकि एनडीए के अधिकांश मतदाताओं- 66 प्रतिशत का मानना था कि शिवसेना के नेतृत्व का दावा करने के लिए शिंदे इस लड़ाई में विजयी होंगे. वहीं विपक्षी मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा- 57 प्रतिशत ने कहा कि पार्टी की बागडोर ठाकरे के हाथ में ही रहेगी.
सर्वे के दौरान, विभिन्न सामाजिक समूहों ने इस मुद्दे पर अलग-अलग राय साझा की. सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, उच्च जाति हिंदुओं (यूसीएच) के बहुमत- 60 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के बड़े अनुपात- 59 प्रतिशत ने कहा कि शिंदे शिवसेना के अध्यक्ष के रूप में ठाकरे की जगह लेंगे.
इस मुद्दे पर अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के विचार विभाजित थे.
सर्वे में शिवसेना और ठाकरे को कितनी राहत?
सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, जहां 52 फीसदी एसटी उत्तरदाताओं का मानना है कि ठाकरे शिवसेना के निर्विवाद नेता के रूप में बने रहेंगे, वहीं 48 फीसदी एसटी मतदाताओं ने शिंदे के पक्ष में बात की.
वहीं, जहां 52 फीसदी एससी उत्तरदाताओं का मानना है कि शिवसेना पर राजनीतिक वर्चस्व की इस लड़ाई में शिंदे विजेता होंगे, वहीं 48 फीसदी अनुसूचित जाति के मतदाताओं ने इस भावना को साझा नहीं किया और मानते हैं कि ठाकरे की आखिरी हंसी होगी. विशेष रूप से, मुस्लिम उत्तरदाताओं के एक विशाल बहुमत - 72 प्रतिशत ने दावा किया कि मौजूदा मुख्यमंत्री इस राजनीतिक लड़ाई में विजेता बनकर उभरेंगे.
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