श्रीनगरः जम्मू-कश्मीर में परिसीमन आयोग की तरफ से विधानसभा सीटों के पुनर्निर्धारण को लेकर लाए गए प्रस्ताव का घाटी के राजनीतिक दल विरोध कर रहे हैं. आयोग ने जम्मू संभाग में छह और कश्मीर संभाग में एक विधानसभा सीट बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है.
परिसीमन के बाद जम्मू-कश्मीर में हो जाएंगी 90 सीटें
पूर्ववर्ती विधानसभा में जम्मू संभाग में 37 और कश्मीर संभाग में 46 सीटें थीं, जबकि लद्दाख क्षेत्र में 4 सीटें थीं. जैसा कि रिटायर्ड जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की अध्यक्षता में परिसीमन आयोग ने प्रस्तावित किया है, उसके मुताबिक नई जम्मू-कश्मीर विधानसभा में 90 सीटें होंगी. इनमें कश्मीर संभाग के लिए 47 और जम्मू संभाग के लिए 43 सीटें होंगी.
आयोग ने जम्मू-कश्मीर के पाकिस्तान के कब्जे वाले हिस्सों के लिए 24 विधानसभा सीटों को आरक्षित रखने का प्रस्ताव दिया है. वहीं, अनुसूचित जाति के लिए सात और अनुसूचित जनजाति के लिए नौ सीटें आरक्षित करने का भी प्रस्ताव है.
भाजपा बोली जम्मू का अन्याय हुआ दूर
इस पर भाजपा ने कहा कि परिसीमन आयोग ने जम्मू संभाग के साथ लंबे समय से चले आ रहे अन्याय को दूर किया है. जबकि घाटी केंद्रित राजनीतिक दलों जैसे नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC), पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP), पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (PC), अपनी पार्टी और यहां तक कि CPI-M ने भी परिसीमन आयोग की सिफारिशों को 'अस्वीकार्य' बताया है.
नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि परिसीमन आयोग ने भाजपा के राजनीतिक हितों के अनुरूप अपनी सिफारिशें की हैं.
पीपुल्स कॉन्फ्रेंस ने भी की आलोचना
दिलचस्प बात यह है कि सज्जाद गनी लोन की अध्यक्षता वाली पीपुल्स कॉन्फ्रेंस और सैयद अल्ताफ बुखारी की अध्यक्षता वाली अपनी पार्टी ने भी परिसीमन आयोग की सिफारिशों की आलोचना की है. पीसी और अपनी पार्टी के प्रतिद्वंद्वी इन दोनों पार्टियों को भाजपा का प्रतिनिधि बताते रहे हैं.
जैसा कि जमीन पर दिखाई दे रहा है, अब तक किसी भी राजनीतिक दल के 90 सीट में 46 की जादुई आंकड़ा हासिल करने की संभावना नहीं है. नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी की किस्मत एक-दूसरे पर भारी पड़ी है, उनमें से एक के लाभ का मतलब दूसरे का सीधा नुकसान है.
गुलाम नबी आजाद के कदम पर नजरें
जम्मू संभाग के मुस्लिम बहुल इलाकों को देखते हुए नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद के अगले राजनीतिक कदम का इंतजार करना होगा. अगर आजाद कांग्रेस से अलग हो जाते हैं, तो वह आने वाले दिनों में जम्मू-कश्मीर में 'किंग मेकर' बन जाएंगे.
आजाद को जम्मू संभाग के लोगों के बीच आम जनता का समर्थन और सद्भावना हासिल है, लेकिन किश्तवाड़, डोडा, रामबन और जम्मू संभाग के राजौरी और पुंछ जिलों के मतदाताओं के बीच उन्हें महत्वपूर्ण राजनीतिक समर्थन प्राप्त है.
यदि वह एक अलग राजनीतिक दल बनाने और मैदान में उतरने का फैसला करते हैं तो नेशनल कांग्रेस और पीडीपी को जम्मू संभाग में सीटें मिलने की संभावना धूमिल हो जाती है.
भाजपा की कोशिश है कि जम्मू क्षेत्र से एक मुख्यमंत्री हो, ताकि घाटी से मुख्यमंत्री होने की लंबे समय से चली आ रही प्रथा को तोड़ा जा सके.
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