'आजादी-आजादी' जेएनयू को चाहिए छात्र रूपी वामपंथी गुंडों से आजादी !

जेएनयू छात्र अब हॉस्टल फीस में बढ़ोत्तरी के आंदोलन को लेकर काफी उग्र रवैया अपनाने लगे हैं. छात्रों ने मीडियाकर्मियों से बदसलूकी करनी भी शुरू कर दी है. ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या अपने हक की लड़ाई की आड़ में मीडिया के सवाल पूछने और समाजिक दायित्व से उन्हें रोका जा सकता है ?  

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Nov 17, 2019, 08:13 AM IST
    • संविधान के अनुच्छेदों को भूल गए हैं जेएनयू छात्र
    • डीन से किया अभद्र व्यवहार
    • नहीं करने दे रहे मीडिया को अपना काम
'आजादी-आजादी' जेएनयू को चाहिए छात्र रूपी वामपंथी गुंडों से आजादी !

नई दिल्ली: पिछले कुछ दिनों से ज्वाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी खूब चर्चा में है. विश्वविद्यालय में नए हॉस्टल मैनुअल में फीस में वृद्धि को लेकर छात्र प्रदर्शन पर हैं. कई दफा छात्रों का प्रदर्शन काफी उग्र रूप लेता चला गया. विश्वविद्यालय प्रशासन और यूजीसी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे जेएनयू के छात्रों ने इस दौरान कभी प्रोफेसर्स से तो कभी डीन वंदना मिश्रा से बुरी तरह से पेश आए. छात्रों के वेश में वामपंथी गुंडे इतने उग्र हो गए हैं कि उन्होंने मीडियाकर्मियों से भी बद्तमीजी करनी शुरू कर दी है. पिछले कुछ दिनों से फीस हाइक के मामले में कुछ वाकिये ऐसे हुए जब लगा कि यह कोई आंदोलनकारी छात्र नहीं गुस्साई हुई भीड़ हो. 

संविधान के अनुच्छेदों को भूल गए हैं जेएनयू छात्र

दरअसल, जेएनयू के छात्रों ने सरकार के साथ-साथ मीडिया की भी आलोचना करनी शुरू कर दी. छात्रों ने मीडिया कर्मियों को घेर कर मीडिया गो बैक के नारे लगाने शुरू कर दिए. अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई देने वाले जेएनयू के उन छात्रों को यहां किसी तरह के अधिकारों का हनन नजर नहीं आया. अनुच्छेद 19.1(a) के तहत भारत में प्रेस को सवाल पूछने और स्वतंत्र तरीके से काम करने की आजादी की बात की गई है. लेकिन जेएनयू छात्रों के द्वारा मीडियाकर्मियों को उनके कामों से रोका जाना उनकी दोहरी मानसिकता को दर्शाता है. मीडिया गो बैक के नारे लगाने वाले जेएनयू के छात्र यह भूल गए थे कि जिस संविधान को मानने का दावा वे करते हैं, उसी के तहत मीडिया को अपने काम से रोकना भी एक तरह से मौलिक अधिकारों का हनन ही है. 

डीन से किया था अभद्र व्यवहार

विश्वविद्यालय प्रशासन ने जो नया हॉस्टल मैनु्अल जारी किया था उनमें हॉस्टलों में रहने का महीना बढ़ाया गया है और कुछ कोड लगाए गए हैं, जिसका छात्र विरोध कर रहे हैं. छात्रों का कहना है कि यह नियम एक प्रतिबंध है छात्रों पर, जो जेएनयू के ढाबा कल्चर की परंपरा को खत्म कर देगा. 

राष्ट्र गौरव विवेकानंद की मूर्ति तोड़ी

कथित छात्रों ने इस बात इतना बखेड़ा कर दिया कि जेएनयू में विवेकानंद की मूर्ति के पास भद्दी टिप्पणियां लिख दी गई. यह वहीं मूर्ति है जिसका अभी शिलान्यास तक नहीं हुआ है. इसके अलावा छात्रों ने कई दफा उत्पाती तेवर भी दिखाए जब विश्वविद्यालय डीन वंदना मिश्रा पर हमले किए गए और उनके साथ अभद्र व्यवहार किया गया. ऐसे में अपने हक की लड़ाई की बात करने वाले छात्रों पर यह सवाल निश्चित तौर पर उठाया जा सकता है कि आखिर यह छात्र हक की आड़ में इतनी बदतमीजी पर कैसे उतर आए हैं ?

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नहीं करने दे रहे मीडिया को अपना काम

कहा जाता है कि मीडिया ही वह अंग है जिसके जरिए आप अपनी किसी भी बात को लाइमलाइट में ला कर उसके पक्ष में जनमत निर्माण कर सकते हैं. मीडिया को लेकर एक बहुत प्रचलित सिद्धांत भी है जिसे डिपेंडेंसी सिद्धांत कहा जाता है. इस सिद्धांत में कहा यह जाता है कि समाज मीडिया पर निर्भर है या इसे यूं समझें कि मीडिया के ऊपर समाज के प्रति एक जिम्मेदारी है. मीडिया समाज का वह आईना है जो दो धाराओं को जोड़ने का काम करती है. बिना मीडिया के जेएनयू के छात्रों की आवाज देश के अलग-अलग हिस्सों में कैसे पहुंच सकेगी, इसकी चिंता भी उन्हें नहीं. इससे पहले एक महिला पत्रकार के ऊपर कुछ छात्रों द्वारा घेर कर टिप्पणियां भी की गई. 

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