नई दिल्ली: Kalyan Singh Health Update: उत्तर प्रदेश के पूर्व सीएम और राजस्थान के राज्यपाल रह चुके कल्याण सिंह अस्पताल में हैं. गुरुवार-शुक्रवार को वह अचानक चर्चा में आ गए जबकि उनके निधन की अफवाहें उड़ने लगीं. इसे लेकर लखनऊ स्थित अस्पताल ने तो इस अफवाहों का खंडन किया ही है, साथ ही राजनीतिक गलियारे से भी कई शख्सियतों ने इसका खंडन करते हुए कल्याण सिंह के स्वास्थ हो जाने की कामना की है.
पीएम मोदी ने किया ट्वीट
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली और कहा कि पूरे भारत में लोग उनके शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी ने एक ट्वीट में कहा,
I was deeply touched to know that during his conversation with @JPNadda Ji, Kalyan Singh Ji remembered me. I also have many memories of my interactions with Kalyan Singh Ji. Several of those memories came back to life. Talking to him has always been a learning experience.
— Narendra Modi (@narendramodi) July 9, 2021
भारत भर में अनगिनत लोग कल्याण सिंह जी के शीघ्र स्वस्थ होने की प्रार्थना कर रहे हैं. कल जेपी नड्डा जी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी और अन्य लोग उनसे मिलने अस्पताल गए थे. मैंने अभी उनके पोते से बात की है और उनके स्वास्थ्य के बारे में जानकारी ली.
1962 की हार से शुरू हुआ राजनीतिक करियर
कल्याण सिंह, इस नाम का जिक्र होता है तो राजनीति का पूरा युग घूमकर एक बार फिर अलीगढ़ पहुंच जाता है. यहां है अतिरौली विधान सभा सीट और यह दौर है 1967 का. यह साल कल्याण सिंह के लिए पहला साल था जब उन्होंने चुनावी जीत का स्वाद चखा था और सूबे की राजनीति में उभर कर आए थे. इससे पांच साल पहले की बात करें तब कैलेंडर में साल था 1962. इसी साल इसी अलीगढ़ की अतरौली सीट पर 30 साल के कल्याण सिंह जब जनसंघ की ओर से लड़े तो उनके हिस्से हार आई थी.
मंडल और कमंडल की पॉलिटिक्स का सिंबल बन के निकले कल्याण सिंह
1980 में भाजपा के जन्म के ठीक दस साल बाद देशभर की राजनीति का माहौल बदलने लगा. ये वही साल था जब 1989-90 में मंडल-कमंडल वाली सियासत शुरू हुई और भाजपा को अपने सियासी बालपन में ही रोड़े अटकने का अहसास हुआ. इस अहसास और संकट के मोचक बनकर निकले कल्याण सिंह. जब आधिकारिक तौर पर पिछड़े वर्ग की जातियों को कैटिगरी में बांटा जाने लगा और पिछड़ा वर्ग की ताकत सियासत में पहचान बनाने लगा तो भाजपा ने कल्याण दांव चला.
दरअसल, भाजपा शुरू से बनिया और ब्राह्मण पार्टी वाली पहचान रखती थी. इस छवि को बदलने के लिए भाजपा ने पिछड़ों का चेहरा कल्याण सिंह को बनाया और तब गुड गवर्नेंस के जरिए मंडल वाली सियासत पर कमंडल का पानी फेर दिया.
भाजपा के लिए हुए कल्याणकारी साबित
1962 से 1967 के बीच इस पांच साल कल्याण सिंह ने खुद को तपाया, जलाया और गलाया. नतीजा, जब वह 1967 में जीते तो ऐसे जीते कि 1980 तक लगातार विधायक रहे. 1980 वाले साल को भाजपा का पैदायशी साल माना जाता है और कोई माने न माने राजनीतिक पंडित मानते हैं कि भाजपा को सूबे की राजनीति से लेकर राष्ट्र की राजनीति तक ले जाने में जो मुकम्मल पायदान आते हैं उनमें कई पायदान कल्याण सिंह के ही बिछाए हुए हैं. भाजपा के लिए कल्याण सिंह अपना नाम सार्थक कर जाते हैं और असली कल्याणकारी साबित होते हैं.
जब वाजपेयी की कर दी आलोचना
यूपी की राजनीति के जानकार बताते हैं एक समय था जब कल्याण सिंह की पार्टी में तूती बोलती थी. मगर साल 1999 में जब उन्होंने पार्टी के सबसे बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी की सार्वजनिक आलोचना की तो, उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. इसके बाद कल्याण सिंह ने अपनी अलग राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई और साल 2002 में विधानसभा चुनाव में भी शामिल हुए. 2003 में वह समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन सरकार में शामिल हो गए थे. उनके बेटे राजवीर सिंह और सहायक कुसुम राय को सरकार में महत्वपूर्ण विभाग भी मिले. लेकिन, कल्याण की मुलायम से ये दोस्ती अधिक दिनों तक नहीं चली.
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दो बार की बीजेपी में वापसी
साल 2004 के चुनावों से ठीक पहले कल्याण सिंह वापिस भारतीय जनता पार्टी के साथ आ गए. बीजेपी ने 2007 का विधानसभा चुनाव कल्याण सिंह की अगुआई में लड़ा, मगर सीटें बढ़ने के बजाय घट गईं. इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान कल्याण सिंह फिर से समाजवादी पार्टी के साथ हो लिए.
इस दौरान उन्होंने कई बार भारतीय जनता पार्टी और उनके नेताओं को भला-बुरा भी कहा. फिर 2012 में बीजेपी में वापस आ गए. 2014 में उन्हें राजस्थान का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया. अब एक बार फिर वह भाजपा की सक्रिय राजनीति में लौट रहे हैं.
कल्याण का राजनीतिक करियर
-अलीगढ़ की अतरौली विधानसभा सीट से 9 बार विधायक रहे, दो बार सीएम बने.
-बुलंदशहर की डिबाई विधानसभा सीट से दो बार विधायक बने, लेकिन बाद में सीट छोड़ दी.
-बुलंदशहर से बीजेपी से अलग होकर एसपी से समर्थन से 2004 में सांसद बने.
-एटा जिले से 2009 में सांसद चुने गए.
-2014 में राज्यपाल बने.
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