मौलिक अधिकारों की पालना के लिए बने कानून, सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को भेजा नोटिस

देश के प्रत्येक नागरिक को अपने अधिकारों के साथ साथ अपने कर्तव्यों की भी जानाकारी होनी चाहिए.

Written by - Zee Hindustan Web Team | Last Updated : Feb 21, 2022, 01:27 PM IST
  • सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र-राज्य सरकारों को जारी किया नोटिस
  • हाई पॉवर कमेटी के गठन की भी मांग की गई याचिका में
मौलिक अधिकारों की पालना के लिए बने कानून, सुप्रीम कोर्ट ने सरकारों को भेजा नोटिस

नई दिल्ली: देश के प्रत्येक नागरिक को अपने अधिकारों के साथ साथ अपने कर्तव्यों की भी जानाकारी होनी चाहिए. लेकिन पिछले कुछ समय से फ्रीडम आफ स्पीच की आड़ में विरोध का एक नया ट्रेंड चला है.ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 51A के तहत मौलिक कर्तव्यों को सख्ती से लागू करने के लिए क्या देश में कानून बनाने की जरूरत हैं. सुप्रीम कोर्ट ने दुर्गादत्त की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए केन्द्र सरकार के साथ सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा हैं.

हाई पॉवर कमेटी की मांग 
दायर कि गयी जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट के एक रिटायर जज की अध्यक्षता में एक हाई पॉवर कमेटी के गठन की भी मांग कि गयी है.जो इस तरह के कानून को लेकर देश में बने कानूनी ढांचे की समीक्षा कर सके. और संविधान के अनुच्छेद 51ए का पालन सुनिश्चित करने के लिए व्यापक कानून बनाने पर विचार कर सके. 

प्राचीन भारत से कर्तव्य हमारे जीवन का अहम हिस्सा
याचिका में भगवद गीता के उपदेश के साथ ही राष्ट्रपति महात्मा गांधी के बयानों का भी जिक्र किया गया हैं. याचिका में कहा गया कि प्राचीन काल से ही हमारे देश में ककर्तव्यों को निभाने की परंपरा रही हैं. हमेशा ही अपने देश और अपने माता पिता के प्रति कर्तव्यों पर जोर दिया गया हैं.यहां तक कि भगवद गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जून का मार्गदर्शन करते हुए जीवन के सभी क्षेत्रों में कर्तव्यों का महत्व बताते हुए उन्हे शिक्षा देते हैं. 

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लेकिन हमारे देश में कुछ समय से फ्रीडम आफ स्पीच के नाम पर किये जा रहे विरोध में सड़को और रेलमार्गो को रोका जा रहा हैं. सरकारी संपंतियों को नुकसान पहुंचाया जा रहा हैं.भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में प्रदर्शनकारियों द्वारा विरोध की नई गलत प्रवृत्ति के कारण उत्पन्न हुई है. लेकिन देश के प्रति अपने कर्तव्यों को नही निभाया जा रहा. 

भगवद गीता से लेकर महात्मा गाधीं के बयानों को बताया आधार
याचिकाकर्ता ने कर्तव्यों के लिए कानून बनाने के पक्ष में महात्मा गांधी के बयानों का जिक्र करते हुए कहा कि अधिकारों के असली स्रोत हमारे कर्तव्य होते हैं. याचिका में जापान, चीन और सिंगापुर के संविधान का वर्णन किया गया हैं. याचिका में कोविड के दौरान मीडीया में सांप्रदायिक खबरों के प्रसारण को भी आधार बनाया गया हैं. 

जस्टिस संजय किशन कॉल और जस्टिस एम एम सुन्द्रेश की बैंच ने याचिका पर सुनवाई के बाद केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा हैं. 

संविधान में अनुच्छेद 51ए को 42वें संशोधन के माध्यम से शामिल किया गया था जिसे राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार द्वारा अधिनियमित किया गये थे. 42वें संशोधन ने संविधान में बहुत से बदलाव लाए थे और इसे 'मिनी-संविधान' कहा जाने लगा. 42वें संशोधन द्वारा पेश किए गए कई बदलावों को बाद में सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त या रद्द कर दिया था. संविधान में अनुच्छेद 51ए अभी भी बना हुआ है.

भारतीय संविधान अनुच्छेद 51A के तहत मूल कर्तव्य, जिसके अनुसार देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य होगा कि वह--
- संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे;
-स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्र्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे;
- भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे;
-देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे;
-भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है;
-हमारी सामासिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे;
-प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे;
-वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे;
-सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे;
-व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले;
-यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे.

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