लखनऊ. उत्तर प्रदेश ऐसा राज्य है जो लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा प्रतिनिधि यानी सांसद चुनकर संसद भेजता है. सीटों की संख्या ज्यादा होने के कारण यूपी की राजनीतिक अहमियत भी बढ़ जाती है. साल 2024 के लोकसभा चुनाव में धर्म और राजनीति का मिला जुला-असर लोगों के सिर चढ़कर बोल सकता है. यूपी में साल की शुरुआत में ही अयोध्या में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन कार्यक्रम होगा. माना जा रहा है कि बीजेपी का सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा राम मंदिर हो सकता है. यह मुद्दे पर विपक्ष को जवाबी हमला करने का मौका नहीं देगा.
चुनावी मुद्दों को प्रभावित कर सकता है राम मंदिर मुद्दा
एक समाचार एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक जैसे-जैसे चुनावी सरगर्मियां तेज होंगी, मंदिर और लोकसभा चुनाव इस हद तक आपस में जुड़ जाएंगे कि एक-दूसरे को प्रभावित करेंगे. साथ ही काशी-ज्ञानवापी और मथुरा-कृष्ण जन्मभूमि मुद्दे भी अदालतों में पहुंच गए हैं और 2024 में होने वाली घटनाएं इन दो तीर्थस्थलों के इर्द-गिर्द घूम सकती है.
बीजेपी को हो सकता है फायदा!
रिपोर्ट के मुताबिक सत्तारूढ़ बीजेपी को आम चुनावों में बड़ा फायदा हो सकता है. अगर बीजेपी का अभियान योजना के अनुसार चलता रहा तो विपक्ष का 'जातीय सर्वे कार्ड' पर भारी पड़ सकता है जिसका सीधा फायदा बीजेपी को हो सकता है.
योगी आदित्यनाथ की छवि होगी मजबूत!
बीते डेढ़ साल से, योगी आदित्यनाथ अपना अधिकांश समय 'नई अयोध्या' के विकास की योजना बनाने में बिता रहे हैं. लगभग हर हफ्ते वह अयोध्या का दौरा कर रहे हैं कि सभी परियोजनाएं निर्धारित समय के भीतर पूरी हो जाएं और गुणवत्ता मानकों के अनुरूप हों. राम मंदिर का उद्घाटन और आम चुनाव के बाद योगी का रुतबा बढ़ने से बीजेपी के भीतर भी सत्ता समीकरण बदलने की उम्मीद है.
कितनी मजबूती से लड़ेगा विपक्ष?
रिपोर्ट के मुताबिक विपक्ष तरह बंटा हुआ है और इंडिया गठबंधन के घटकों के बीच मतभेद अभी तक दूर नहीं हुए हैं. समाजवादी पार्टी के लिए भी यह बेहद अहम चुनाव है. 2017 में जबसे अखिलेश ने पार्टी की कमान संभाली है, तब से सपा यूपी की राजनीति में अग्रणी बनकर उभरने में विफल रही है.अगर अखिलेश और उनकी पार्टी आम चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने में विफल रहती है, तो उन्हें सपा में विद्रोह का सामना करना पड़ सकता है.
राजनीतिक एक्सपर्ट्स के मुताबिक अगर स्थिति नहीं बदली तो मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग कांग्रेस की ओर जा सकता है. जिसे राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है. वहीं मायावती की अगुवाई वाली बीएसपी अपने रुख को लेकर लगातार असमंजस की स्थिति में बनी हुई है.
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