नई दिल्ली: पिछले साल लॉकडाउन के दौरान प्रवासी कामगारों के पलायन की दर्दनाक तस्वीरें याद होंगी आपको. तब कोरोना ने प्रवासी मजदूरों की रोजी रोटी पर कहर बरपाया था, अब आंदोलनजीवी कहर बरपा रहे हैं, वो भी पिछले 3 महीने से लगातार.
टिकरी बॉर्डर पर बैठे आंदोलनजीवियों की वजह से बेरोजगार हुए प्रवासी कामगार टिकरी बॉर्डर से सटे दिल्ली और हरियाणा के गांवों और बस्तियों में रहते हैं. जो कामगार किराए के मकानों में थे, उनमें से ज्यादातर जा चुके हैं और जिन कामगारों ने खुद की छत तैयार कर ली है वो रोजगार छिनने की वजह से भुखमरी के कगार पर पहुंच गए हैं.
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10 हजार से ज्यादा पर आया संकट!
रोजगार की तलाश में बिहार से हरियाणा आए कामगारों ने दिल्ली के टिकरी-बहादुरगढ़ बॉर्डर के पास एक मिनी बिहार बसा दिया है जिसका नाम है बिहार कॉलोनी. पिछले 3 महीनों से टिकरी बॉर्डर पर चल रही आंदोलनजीवियों की नौटंकी से बिहार कॉलोनी में हाहाकार मचा हुआ है.
यहां रहने वाली करीब 5 हजार की आबादी में कमोबेश हर परिवार का एक सदस्य बहादुरगढ़ में चलने वाली फैक्ट्रियों में नौकरी करता है और महिलाएं दिहाड़ी मजदूरी करती हैं. दरअसल, बहादुरगढ़ में 3 महीने से सभी फैक्ट्रियां बंद है लिहाजा, प्रवासी कामगारों की नौकरी छूट गई है और आवाजाही बंद होने से महिलाओं को भी दिहाड़ी मजदूरी का काम नहीं मिल रहा.
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टिकरी बॉर्डर बंद होने की वजह से ज्यादातर गाड़ियां बिहार कॉलोनी होते हुए आ जा रही हैं. इस तरफ इतना ज्यादा ट्रैफिक डायवर्ट होने से प्रदूषण का भी खतरा बढ़ गया है. इस ट्रैफिक की वजह से बिहार कॉलोनी की महिलाएं अपने बच्चों को लेकर हमेशा चिंचित रहती हैं.
छोटू राम कॉलोनी का हाल बुरा
आंदोलनजीवियों की वजह से सिर्फ बिहार कॉलोनी के प्रवासी कामगारों की रोजी रोटी नहीं छिनी बल्कि यहां से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित छोटू राम कॉलोनी का भी यही हाल है. बिहार कॉलोनी और छोटू रामनगर की कुल आबादी मिला दें तो करीब 9 हजार लोग आंदोलनजीवियों का कहर झेल रहे हैं.
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अगर जल्द ही टिकरी बॉर्डर पर आंदोलनजीवियों के तंबू उखाड़े नहीं गए तो पूरे इलाके में प्रवासी कामगारों के परिवार पर भूखमरी का संकट खड़ा हो जाएगा, बच्चों की पढ़ाई और बुजुर्गों की दवाई तो दूर की बात है.
प्रवासी कामगारों ने किया आंदोलजीवियों का विरोध
90 दिनों से आंदोलनजीवी टिकरी बॉर्डर जाम कर सरकार को झुकाने की साजिश में जुटे हैं जिसका खामियाजा गरीब प्रवासी कामगार भुगत रहे हैं. अब इनके भीतर भी गुस्सा भड़क उठा है और ये भी आंदोलनजीवियों का बोरिया बिस्तर बांधने की आवाज बुलंद कर रहे हैं. टिकरी बॉर्डर पर पहुंचकर बेरोजगार प्रवासी कामगारों ने 'किसानों को सड़क से हटाओ' के नारे लगाए.
लॉकडाउन के दौर से भी ज्यादा बुरा हाल
याद लीजिए लॉकडाउन का वो दौर, जब कोरोना का सबसे ज्यादा कहर इन गरीबों पर बरसा था. कहां दिल्ली और कहां बिहार, लेकिन कोरोना की ऐसी मार पड़ी कि गरीबों ने दिल्ली से बिहार की दूरी कदमों से नाप दी.
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तब कोरोना की वजह से फैक्ट्रियां बंद हुई थी और रोजगार छिना था, अब आंदोलनजीवियों की वजह से फैक्ट्रियां बंद हुई हैं और 10 हजार से ज्यादा प्रवासी कामगारों की रोजी रोटी छिनी है.
अब तो कोरोना और आंदोलनजीवियों में फर्क करना मुश्किल हो गया है क्योंकि अब तो कोरोना से भी ज्यादा कातिल हो गए हैं ये आंदोलनजीवी. मोदी सरकार ने कोरोना का इलाज तो ढूंढ लिया, आंदोलनजीवियों का इलाज ढूंढना अभी बाकी है.
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शुक्र है कि ट्रेनें चल रही हैं. इसलिए प्रवासी मजदूरों के पलायन का पता नहीं चल रहा है. लॉकडाउन लग जाता तो दिल्ली से बिहार तक पलायन करने वाले मजदूरों की कतार लग जाती.