Farmers Protest: वामपंथी ढपली के फेर में राकेश टिकैत!

2013 में रामलीला मैदान में भी वामपंथी ढपलीबाज खूब क्रांति के तराने सुनाते थे और अब राकेश टिकैत के गाजीपुर अड्डे पर भी ढपली गैंग किसानों को राग सुना रहा है जिस पर राकेश टिकैत झूम रहे हैं.  

Last Updated : Feb 22, 2021, 04:02 PM IST
  • आंदोलन के लिए टिकैत के नए प्रपंच
  • टिकैत के अड्डे पर वामपंथी ढपली
Farmers Protest: वामपंथी ढपली के फेर में राकेश टिकैत!

नई दिल्ली: बापू के चरखे पर सूत कातकर कोई गांधी नहीं बन जाता लेकिन सियासी आंदोलन में अब राकेश टिकैत ने गांधी के चरखे को भी उतार दिया है. आखिर कौन है जो राकेश टिकैत की इस छवि को गढ़ना चाहता है और उसका मकसद क्या है.

लेकिन एक बात साफ तौर पर कही जा सकती है कि गांधी का सम्मान और गांधी को याद करना तो कतई नहीं क्योंकि अगर राकेश टिकैत को गांधी जी के कर्म जरा भी याद होते तो लाल किला कांड उनकी दंगा ब्रिगेड ने नहीं किया होता और जब देश को शर्मसार करने वाली दंगा ब्रिगेड को दबोचने पुलिस पहुंचने लगी तो टिकैत के दंगा गैंग ने पुलिस वालों को ही बंधक बनाने की साजिश रची.

टिकैत के करीब गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने किसानों को भड़काते हुए कहा कि जब पुलिस वाले गिरफ्तारी के लिए गांव में घुसे तो उन्हें बंधक बना लें. लेकिन टिकैत के गाजीपुर वाले अड्डे में जिस तरह से चरखा चला और ढपली गैंग की एंट्री हुई उससे 2013 का अन्ना आंदोलन की यादें ताजा हो गईं.

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रामलीला मैदान में 8 साल पहले भी गांधी दर्शन की खूब डींगे मारी जाती थीं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब टिकैत भी उसी आंदोलनजीवी गैंग के इशारे पर फिर 2013 को दोहराना चाहते हैं.

ढपली गैंग के सहारे किसान हित साधेंगे टिकैत?

2013 में रामलीला मैदान में भी वामपंथी ढपलीबाज खूब क्रांति के तराने सुनाते थे और अब राकेश टिकैत के गाजीपुर अड्डे पर भी ढपली गैंग किसानों को राग सुना रहा है जिस पर टिकैत झूम रहे हैं. हालांकि इसकी पटकथा दिल्ली के गाजीपुर बॉर्डर पर उसी दिन लिख दी गई थी जिस दिन टिकैत ने घड़ियाली आंसू बहाए थे और मनीष सिसोदिया उनके आंसू पोंछने पानी के टैंकर लेकर पहुंचे थे.

अन्ना आंदोलन के बाद केजरीवाल ने जमकर चुनावी फसल काटी थी और अब फिर पश्चिमी यूपी में केजरीवाल अपना जनाधार बढ़ाने के लिए टिकैत को मोहरा बना रहे हैं. रविवार को दिल्ली विधानसभा में अरविंद केजरीवाल ने पश्चिमी यूपी के खाप नेताओं से मुलाकात की.

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इस दौरान खाप नेताओं ने केजरीवाल के गुणगान गाए तो उधर गाजीपुर अड्डे पर राकेश टिकैत ने भी बड़े दंभ से कहा कि अगर यूपी सरकार ने बिजली-पानी नहीं दिया तो दिल्ली की केजरीवाल सरकार से ले लेंगे.

सियासी दलदल में फंसा किसान आंदोलन

अब आम आदमी पार्टी का निशाना यूपी के 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव हैं लिहाजा 28 फरवरी को मेरठ में केजरीवाल ने विशाल किसान महापंचायत बुलाई है. जहां भारी तादाद में किसानों का मेला लगने की बातें कही जा रही हैं. इस काम के लिए आम आदमी पार्टी ने संजय सिंह को जिम्मेदारी सौंपी है जो गाजियाबाद और हापुड़ के इलाकों से किसानों की भीड़ इकट्ठा करने में जुटे हैं.

उधर मौका परस्त नेताओं ने राकेश टिकैत के बड़े भाई नरेश टिकैत को अवध के इलाकों में आंदोलन को फैलाने की जिम्मेदारी सौंप दी है जो बाराबंकी में 24 फरवरी को और बस्ती में 25 फरवरी महापंचायत करेंगे. इतना ही नहीं देशविरोधी गैंग का प्लान बहुत लंबा है. आंदोलन का ट्रैक्टर दिल्ली से वाया पूर्वांचल बंगाल तक तक ले जाने का है.

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सियासत में सत्ता का संकट झेल रहे तमाम किसान नेता टिकैत के ट्रैक्टर की सवारी करने को आतुर हैं. इनमें कांग्रेस की प्रियंका गांधी से लेकर बंगाल की सीएम ममता बनर्जी तक हैं. इससे एक बात बिल्कुल साफ है कि टिकैत के अड्डे पर लंगर से लेकर डीजल तक का इंतजाम भी सियासी पार्टियों की फंडिंग से हो रहा है.

हर किसी को सिर्फ वोट की चिंता

प्रियंका गांधी बीते 11 दिनों में पश्चिमी यूपी में तीन रैलियां कर चुकी हैं. 10 फरवरी को प्रियंका गांधी ने सहारनपुर से इसकी शुरुआत की थी फिर 15 फरवरी को बिजनौर और 20 फरवरी को मुजफ्फरनगर में महापंचायत की. अब 23 फरवरी को मथुरा में कांग्रेस ने महापंचायत बुलाई है.

राष्ट्रीय लोकदल के नेता जयंत चौधरी भी गाजीपुर जाकर टिकैत के ट्रैक्टर में डीजल और लंगर में योगदान कर चुके हैं. चौधरी चरण सिंह के जमाने से किसानों की खाटी राजनीति करने वाली अजित सिंह की पार्टी फिलहाल हासिये पर है और अब पश्चिमी यूपी के जाटलैंड की हर विधानसभा में किसान महापंचायत बुला रही है ताकि मौके पर चौका मारकर सियासी आखेट किया जा सके.

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जाटलैंड में किसानों के गुस्से को बीजेपी ने भांप लिया है और डैमेज कंट्रोल की जिम्मेदारी केंद्र में राज्य मंत्री संजीव बालियान को सौंपी गई है जो उनके गुस्से को ठंडा करने की कोशिश कर रहे हैं. मगर अफसोस की बात ये है कि किसान हितों के नाम पर शुरू हुए आंदोलन में सियासी दांवपेंच के बीच किसान हित हासिये पर ढकेल दिए गए हैं और किसानों के मुद्दों पर बात होने के बजाय सियासी नफा नुकसान को नेता देख रहे हैं.

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