'एक राष्ट्र एक चुनाव' विधेयक लोकसभा में पेश, विपक्ष बोला- यह सिर्फ एक आदमी को खुश करने के लिए लाया गया

One Nation One Election bill: लोकसभा में भारी नारेबाजी के बीच विपक्षी सांसदों ने 'एक राष्ट्र एक चुनाव' विधेयक को अपनाने से मना कर दिया और इसे 'संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन' बताया.

Written by - Nitin Arora | Last Updated : Dec 17, 2024, 01:33 PM IST
  • लोकसभा में 'एक राष्ट्र एक चुनाव' विधेयक पेश
  • अर्जुन राम मेघवाल ने संसद के निचले सदन में पेश किया बिल
'एक राष्ट्र एक चुनाव' विधेयक लोकसभा में पेश, विपक्ष बोला- यह सिर्फ एक आदमी को खुश करने के लिए लाया गया

Lok Sabha News: नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने मंगलवार को देश में 'एक राष्ट्र एक चुनाव' के क्रियान्वयन के लिए लोकसभा में संविधान संशोधन विधेयक पेश किया.

विपक्षी सांसदों की भारी नारेबाजी के बीच केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद के निचले सदन में संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया.

इस विधेयक पर INDIA bloc के सांसदों ने तीखा हमला बोला. उन्होंने बिल को अपनाने से मना करते हुए इसे 'संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन' करार दिया. अब बिल को संसद की संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को भेजने की तैयारी है.

 

बिल हुए पेश, क्या है इनके मायने?
संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक, 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून (संशोधन) विधेयक, 2024 को दोनों सदनों की संयुक्त समिति को भेजा जा सकता है. बता दें कि पेश हुए विधेयकों का मुख्य उद्देश्य यह है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकें.

तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) के सांसदों ने विधेयक का समर्थन किया. वहीं, विधेयक पेश किये जाने के बाद कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने तीखे हमले किये.

विधेयक पर बोलते हुए वरिष्ठ कांग्रेस नेता और चंडीगढ़ के सांसद मनीष तिवारी ने 'एक राष्ट्र एक चुनाव' के प्रस्ताव को खारिज करते हुए इसे संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन बताया.

तिवारी ने कहा, 'मैं संविधान 129वें संशोधन विधेयक 2024 और केंद्र शासित प्रदेश कानून संशोधन विधेयक 2024 की शुरूआत का विरोध करने के लिए खड़ा हूं. संविधान की सातवीं अनुसूची से परे मूल संरचना सिद्धांत है और मूल संरचना सिद्धांत बताता है कि भारतीय संविधान की कुछ विशेषताएं हैं जो इस सदन की संशोधन शक्ति से भी परे हैं. आवश्यक विशेषताओं में से एक संघवाद और हमारे लोकतंत्र की संरचना है.'

तिवारी ने कहा, 'इसलिए, विधि एवं न्याय मंत्री द्वारा प्रस्तुत विधेयक संविधान के मूल ढांचे पर पूरी तरह से हमला करते हैं और इस सदन की विधायी क्षमता से परे हैं, इसलिए उनका विरोध किया जाना चाहिए तथा उन विधेयकों को पेश होने से रोका जाना चाहिए.'

तानाशाही
समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने एक साथ चुनाव कराने के बिल का विरोध करते हुए इसे भाजपा द्वारा देश में 'तानाशाही' लाने का प्रयास बताया. ANI के अनुसार, सपा सांसद ने कहा, 'मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि दो दिन पहले संविधान बचाने की गौरवशाली परंपरा में कोई कसर नहीं छोड़ी गई. दो दिन के भीतर संविधान संशोधन विधेयक लाकर संविधान की मूल भावना और मूल ढांचे को खत्म कर दिया गया. मैं मनीष तिवारी से सहमत हूं और अपनी पार्टी और अपने नेता अखिलेश यादव की ओर से मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि उस समय हमारे संविधान निर्माताओं से ज्यादा विद्वान कोई नहीं था, यहां तक ​​कि इस सदन में भी उनसे ज्यादा विद्वान कोई नहीं है, मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है...'

तृणमूल कांग्रेस (TMC) के सांसद कल्याण बनर्जी ने भी विधेयकों की आलोचना करते हुए आरोप लगाया कि ये चुनाव सुधार के लिए नहीं हैं, बल्कि ये सिर्फ 'एक सज्जन की इच्छा और सपने को पूरा करने के लिए हैं.'

एएनआई ने बनर्जी के हवाले से कहा, 'यह प्रस्तावित विधेयक संविधान के मूल ढांचे पर ही प्रहार करता है और अगर कोई विधेयक वास्तव में संविधान के मूल ढांचे पर प्रहार करता है तो वह संविधान के अधिकार क्षेत्र से बाहर है... हमें याद रखना चाहिए कि राज्य सरकार और राज्य विधानसभा केंद्र सरकार या संसद के अधीन नहीं हैं…'

एक राष्ट्र, एक चुनाव विधेयक
13 दिसंबर की रात को प्रसारित संविधान (एक सौ उनतीसवां संशोधन) विधेयक, 2024 की एक प्रति के अनुसार, यदि लोकसभा या कोई राज्य विधानसभा अपने पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पहले भंग हो जाती है, तो उस विधानमंडल के लिए केवल अपने पांच साल के शेष कार्यकाल को पूरा करने के लिए मध्यावधि चुनाव आयोजित किए जाएंगे.

विधेयक में अनुच्छेद 82(ए) (लोकसभा और सभी विधान सभाओं के लिए एक साथ चुनाव) जोड़ने और अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि), 172 और 327 (विधानसभाओं के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति) में संशोधन करने का सुझाव दिया गया है.

इसमें कहा गया है कि संशोधन के प्रावधान एक 'नियत तिथि' पर लागू होंगे, जिसे राष्ट्रपति आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक में अधिसूचित करेंगे.

विधेयक के अनुसार, 'नियत तिथि' 2029 में अगले लोकसभा चुनाव के बाद होगी, जबकि एक साथ चुनाव 2034 से शुरू हो सकते हैं.

इसमें निर्दिष्ट किया गया है कि लोक सभा (लोकसभा) का कार्यकाल नियत तिथि से पांच वर्ष होगा और नियत तिथि के बाद निर्वाचित सभी विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ समाप्त होगा.

चुनावों को एक साथ कराने का प्रस्ताव भारतीय जनता पार्टी के 2024 के चुनावी घोषणापत्र का हिस्सा था और इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसका समर्थन करते हैं है, लेकिन कई राजनीतिक दलों और कार्यकर्ताओं ने इसका कड़ा विरोध किया है, जिनका आरोप है कि इससे लोकतांत्रिक जवाबदेही को ठेस पहुंचेगी.

पिछले सप्ताह कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने मांग की थी कि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा जाए.

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