लखनऊः नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में उत्तर प्रदेश में हुए हिंसक प्रदर्शनों में पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया का नाम सामने आया है. लखनऊ और मेरठ में ऐक्ट के विरोध में हुई हिंसा में पीएफआई से जुड़े लोगों का नाम सामने आया है. खुद प्रशासन ने इस बात की पुष्टि की है. सूबे में अब तक पीएफआई से जुड़े 25 लोगों को अरेस्ट किया जा चुका है. इसके बाद से ही इस संगठन पर यूपी सरकार प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है. इसके अलावा कर्नाटक सरकार भी बैन लगा सकती है. आइए जानते हैं क्या है यह संगठन और क्यों है इस पर विवाद...
इस्लामिक कट्टरता को बढ़ाने के भी लगते रहे हैं आरोप
पीएफआई खुद को एक गैर सरकारी संगठन बताता है. इस संगठन पर कई गैर-कानून गतिविधियों में पहले भी शामिल रहने का आरोप है. गृह मंत्रालय ने 2017 में कहा था कि इस संगठन के लोगों के संबंध जिहादी आतंकियों से हैं, साथ ही इस पर इस्लामिक कट्टरवाद को बढ़ावा देने का आरोप है. पीएफआई ने खुद पर लगे इन सभी आरोपों को बेबुनियाद बताया था, लेकिन अकसर इस संगठन को लेकर विवाद होता रहा है.
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धर्मांतरण से जुड़े मामलों में भी आता रहा है नाम
पीएफआई ने अपनी वेबसाइट पर खुद को गरीबों, पिछड़ों के लिए काम करने वाला संगठन और फासीवाद के खिलाफ बताया है. पीएफआई की एक राजनीतिक विंग भी है, जिसका नाम एसडीपीआई यानी सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया है. कर्नाटक सरकार इस राजनीतिक संगठन पर भी प्रतिबंध लगाने पर विचार कर रही है. यही नहीं कई रिपोर्ट्स में धर्मांतरण से जुड़े मामलों में भी पीएफआई का नाम लिया जाता रहा है.
6 आतंकी घटनाओं में शामिल रहने का था आरोप
गृह मंत्रालय के सूत्रों ने 2017 में पीएफआई के खिलाफ पर्याप्त सबूत होने की बात कही थी. इसमें एनआईए की वह जांच रिपोर्ट भी है, जिसमें इस संगठन पर 6 आतंकी घटनाओं में शामिल रहने का आरोप लगाया है. इसके अलावा राज्यों की पुलिस की रिपोर्ट भी एनआईए के पास है, जिसमें इस संगठन पर धार्मिक कट्टरवाद को बढ़ावा देने, आतंकी गतिविधियों में शामिल रहने और जबरन धर्मांतरण का आरोप भी लगा है.