PM मोदी के `आत्मनिर्भर भारत` में गांधी जी के `हिंद स्वराज्य` की झलक
गांधीवाद पर एकाधिकार का दावा करने वाली कांग्रेस (Congress party) ने बापू के विचारों को खुद ही दफन कर दिया था. लेकिन अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime minister narendra modi) ने महात्मा गांधी के मूल विचार `हिंद स्वराज्य` को पुनर्जीवित करने का फैसला किया है. इसकी झलक दिखाई देती है पीएम मोदी (PM Modi) द्वारा बताए गए आत्मनिर्भर भारत (Atmanirbhar Bharat) के दर्शन में.
नई दिल्ली: सीमा पर चीन से लगातार तनाव (Indo China stand off) के बाद भारत ने चीनी कंपनियों (Chinese compnies) को प्रतिबंधित कर दिया, जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) ने भारत को विनिर्माण में आत्मनिर्भर बनाने का एलान किया. इसके तहत कई कदम उठाए गए.
वोकल फॉर लोकल
पीएम ने जो सबसे महत्वपूर्ण बात कही वह था- वोकल फॉर लोकल (Vocal for local) का नारा यानी कि स्थानीय वस्तुओं स्थानीय उत्पादों को इतना जोर शोर से प्रचारित किया जाए कि उसकी गूंज पूरी दुनिया में सुनाई दे.
दिलचस्प तो यह है कि आज से लगभग 100 साल पहले गांधी जी ने भी ऐसा ही सपना देखा था. महात्मा गांधी भारतीय गांवों और उनकी पंचायती व्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने के पक्ष में थे. गांधी जी ने एक छोटी सी पुस्तक लिखी हिंद स्वराज्य. यह किताब गांधी जी ने ट्रेन में बैठे बैठे हाथ से लिख दी थी. लेकिन यह छोटी सी पुस्तिका आधुनिक भारत के विकास का दस्तावेज है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने महात्मा गांधी के हिंद स्वराज्य के विचार को ही आधार बनाकर काम करना शुरू किया है. आज आत्मनिर्भर भारत की गूंज है स्थानीय वस्तुओं को स्थानीय उत्पादकों को उनकी चीजों की सही कीमत दिलाने की मुहिम शुरू हो चुकी है.
चीन ने भी ऐसे ही की थी तरक्की
चीन से प्रतियोगिता में ही सही, भारत ने सही समय पर बिल्कुल सही कदम उठाया है. चीन ने 80 के दशक में डेंग जियाओ फिंग के नेतृत्व में कुछ ऐसा ही किया था. जिसके बाद चीन ने जो तरक्की की उसे पूरी दुनिया देख रही है.
अगर कांग्रेस पार्टी महात्मा गांधी के विचारों को स्वीकार करती तो देश में बड़े बड़े उद्योगों की जगह छोटे छोटे कुटीर उद्योगों का जाल बिछा होता. तकनीक और उत्पादकता गांव और तहसील के स्तर तक पहुंच चुकी होती. लेकिन देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने छोटे उद्योगों की बजाय बड़ी औद्योगिक इकाइयों पर जोर दिया.
जिसके तहत बड़ी बड़ी कॉटन और इस्पात की फैक्ट्रियां लगाई गईं. नेहरु इन्हें 'आधुनिक भारत का मंदिर' कहते थे. लेकिन दूरदर्शी सोच न होने की वजह से इसमें से ज्यादातर बंद हो चुके हैं.
लेकिन शुरुआत में इन बड़ी फैक्ट्रियों में काम करने के लिए गांवो से मजदूर आए. इससे गांवों से आबादी का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ. शहरों पर आबादी का बोझ बहुत ज्यादा हो गया. गंदी झुग्गियों की परंपरा शुरु हुई.
वर्तमान कोरोना काल में जो मजदूरों का संकट हमने देखा कि कैसे मजदूरों के झुंड महानगरों से पैदल अपने गांव जाने को मजबूर हुए. वह शहरीकरण के दुष्प्रभाव का ही एक दर्दनाक दृश्य था.
गांवो का विकास भूल गई कांग्रेस
गांधीजी ने ऐसी ही विसंगतियों को दूर करने के लिए ग्रामीण इकाइयों के विकास का सुझाव दिया था. लेकिन गांधीवाद की माला जपने वाली कांग्रेस की सरकारों ने कभी भी गांधी के मूल विचारों को पर ध्यान नहीं दिया.
लेकिन समय ऐसा आ चुका है कि हमें गांधी की मूल व्यवस्था पर लौटना ही पड़ेगा. ग्रामीण भारत की आत्मनिर्भरता पूरे भारत की विकास की तकदीर बदलने वाली है.
आत्मनिर्भर भारत अभियान का असर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो आत्मनिर्भर भारत का बिगुल फूंका है उसके नतीजे कुछ इस तरह दिखाई देने लगे हैं-