नई दिल्ली: राजस्थान हाईकोर्ट में पैरोल के लिए कैदी के परिवार ने अनोखी मांग की थी कि उसको संतान पैदा करने के लिए 15 दिनों की पैरोल दी जाए. अब ये मामला देश की सर्वोच्च अदालत में पहुंच गया है.
सुप्रीम कोर्ट करेगा राजस्थान सरकार की याचिका पर सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट सोमवार को राजस्थान सरकार की उस याचिका पर विचार करने के लिए राजी हो गया, जिसमें उच्च न्यायालय के उस आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें आजीवन कारावास के दोषी को संतान पैदा करने के उद्देश्य से अपनी पत्नी के साथ संभोग करने के लिए 15 दिनों की पैरोल दी गई थी.
राज्य सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमना की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष दलील दी कि राजस्थान उच्च न्यायालय के इस आदेश ने दिक्कते पैदा कर दी हैं. वकील ने कहा, "अब कई दोषी सामने आ रहे हैं और पैरोल के लिए आवेदन कर रहे हैं."
अगले हफ्ते होगी मामले पर सुनवाई
संक्षिप्त दलीलें सुनने के बाद, शीर्ष अदालत अगले सप्ताह याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हो गई. हाईकोर्ट ने आजीवन कारावास के दोषी नंद लाल की पत्नी के जरिए दायर अर्जी को मंजूर कर लिया था. उसने तर्क दिया कि उसकी पत्नी को संतान के अधिकार से वंचित किया गया है, जबकि उसने कोई अपराध नहीं किया है और वह किसी सजा के अधीन नहीं है.
उच्च न्यायालय ने इस साल 5 अप्रैल को पारित एक आदेश में कहा था कि इस तथ्य को देखते हुए कि कैदी की पत्नी निर्दोष है और वैवाहिक जीवन से जुड़ी उसकी यौन और भावनात्मक जरूरतें प्रभावित हो रही हैं. इसलिए कैदी को उसकी पत्नी के साथ सहवास की अवधि दी जानी चाहिए थी.
हाईकोर्ट ने दिया था कैदी के पक्ष में फैसला
उच्च न्यायालय ने कहा कि इस प्रकार किसी भी कोण से देखने पर, यह सुरक्षित रूप से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि एक कैदी को संतान प्राप्त करने का अधिकार या इच्छा प्रत्येक मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों के अधीन उपलब्ध है. उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि ऐसे मामले में जहां एक निर्दोष पत्नी मां बनना चाहती है, स्टेट की जिम्मेदारी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि एक विवाहित महिला के लिए नारीत्व को पूरा करने के लिए बच्चे को जन्म देना आवश्यक है.
अदालत ने कहा, "मां बनने पर उसका नारीत्व बढ़ जाता है, उसकी छवि गौरवान्वित होती है और परिवार के साथ-साथ वो समाज में भी अधिक सम्मानजनक हो जाती है. उसे ऐसी स्थिति में रहने से वंचित नहीं किया जाना चाहिए, जिसमें उसे अपने पति के बिना और फिर बिना किसी गलती के अपने पति से कोई संतान न होने के कारण पीड़ित होना पड़े. इसमें कहा गया है कि हिंदू दर्शन भी पितृ-ऋण केमहत्व की वकालत करता है.
नंद लाल को राहत देते हुए उच्च न्यायालय ने कहा, "हमारा विचार है कि हालांकि राजस्थान कैदी रिहाई पर पैरोल नियम, 2021 में कैदी को उसकी पत्नी के संतान पैदा करने के आधार पर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, फिर भी धार्मिक दर्शन, सांस्कृतिक, सामाजिक और मानवीय पहलुओं पर विचार करते हुए, भारत के संविधान द्वारा गारंटीकृत मौलिक अधिकार के साथ और इसमें निहित असाधारण शक्ति का प्रयोग करते हुए, यह न्यायालय तत्काल रिट याचिका को अनुमति देने के लिए उचित समझता है."
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