अयोध्या: सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर दिया है. लेकिन कट्टरपंथी लोग अभी भी इसके रास्ते में रोड़ा अटकाने से बाज नहीं आ रहे हैं. इसी सिलसिले में अयोध्या के मुस्लिम समुदाय ने राम मंदिर ट्रस्ट को एक पत्र लिखकर दावा किया कि मंदिर परिसर के आस पास मुसलमानों की कब्रें थीं. मोहम्मद आजम नाम के इस शख्स ने सवाल उठाया था कि क्या हिंदू समुदाय कब्रों के उपर मंदिर बनाएगा.
संतों ने इस साजिश पर जताया गुस्सा
राम मंदिर के आस पास मुस्लिम कब्रिस्तान की बात पर संत समुदाय नाराज हो गया है. राम मंदिर के ट्रस्टियों ने भी मुस्लिम समुदाय की इस चिट्ठी को शरारतपूर्ण और विवाद भड़काने वाला करार दिया है.
रामलला के मुख्य पुजारी आचार्य सतेंद्र दास ने इस पत्र पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि अयोध्या ने बहुत आक्रमण झेला है. मुगलों ने जबरन मंदिर तोड़कर मस्जिदों का निर्माण किया, यहां कहीं कब्र नहीं देखी गई. 67 एकड़ भूमि पर कोई कब्र नहीं है, वहां ऋषियों की समाधियां जरूर थी, कब्र के नाम पर अड़ंगेबाजी की कोशिश की जा रही है. जहां शंख की ध्वनि गूंजती हो और पूजा की जा रही हो, वहां का श्मशान व कब्रिस्तान सब शुद्ध हो जाता है.'
अंधविश्वास फैलाने का षड्यंत्र
उधर राम मंदिर के ट्रस्टी डॉ. अनिल मिश्र ने कहा कि अफवाह फैलाने वालों से सबको सावधान रहने की जरूरत है. मुस्लिमों द्वारा पत्र भेजे जाने पर अयोध्या के संत समाज में नाराजगी है. संत समाज का कहना है कि अयोध्या का कण-कण पवित्र है. मुसलमान अंधविश्वास पैदा करने का षड़यंत्र कर रहे हैं.
विहिप ने बताया सुप्रीम कोर्ट की अवमानना
इस विवाद पर विश्व हिदू परिषद् के प्रांतीय प्रवक्ता शरद शर्मा ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने ये मान लिया है कि पूर्ण भूमि रामलला की है, जब इसको स्वीकार कर लिया है और फैसला भी दे दिया है. तब कब्रिस्तान की बात करना भ्रम की स्थिति पैदा करना है साथ ही साथ मुस्लिम समाज सुप्रीम कोर्ट की अवमानना कर रहा है. कभी मलबे की मांग, कभी कब्रिस्तान की बात कहकर मुस्लिम समाज हिंदुओं की भावनाओं को भड़काने का प्रयास कर रहा है. यह सिर्फ दिव्य-भव्य राममंदिर निर्माण की राह में रोड़ा अटकाने का प्रयास है.
मुस्लिम समुदाय का ये था दावा
राम जन्मभूमि परिसर में कब्र होने संबंधी चिट्ठी भेजने वाले मोहम्मद आजम ने दावा किया है कि राममंदिर और बाबरी मस्जिद का पुराना मामला था. इस पर फैसला आया और सभी ने इसको मान लिया. 1993 में सुरक्षा की दृष्टि से जमीनों का अधिग्रहण हुआ था यह बात सदन में भी कही गई थी कि फैसला आने के बाद जिनकी जमीनें हैं उनको वापस कर दी जाएंगी. फैसला आ चुका है और अब उस जमीन पर मंदिर बनना है. हम नहीं चाहते हैं कि सनातन धर्म के हिंदू भाई श्रीरामचंद्र जी का मंदिर ऐसे स्थान पर बनाएं जिस पर कोई विवाद हो. हमने पत्र लिखकर यह मांग की है कि नजूल विभाग में जितने भी कब्रिस्तान दर्ज हैं, उन सभी को रिलीज कर दिया जाए.
उधर बाबरी मामले के पक्षकार हाजी महबूब ने भी कहा है कि मंदिर की 67 एकड़ जमीन में से 4-5 एकड़ पर कब्रगाह है. 1949 से 1992 तक उस जगह का दूसरे तरह से इस्तेमाल हो रहा था. ट्रस्टी विचार करें कि क्या मंदिर का निर्माण कब्रगाह पर हो सकता है. आज की तारीख में भले ही वहां कब्रें न दिखाई दे, लेकिन वहां कब्रगाह है.
लेकिन राम मंदिर निर्माण से जुड़े संतों और ट्रस्टियों का कहना है कि कोई भी श्मशान हो या कब्रिस्तान, अगर उसपर मंदिर निर्माण हुआ तो सब पवित्र हो जाएगा.
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