नई दिल्ली. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए इस बार का पंचायत चुनाव बेहद अहम दिख रहा है. दरअसल 25 जून को सीएम ममता ने कूच बिहार जिले से पंचायत चुनाव प्रचार को रफ्तार दी. साल 2011 में ममता के सत्ता में आने के बाद यह पहली बार है जब वो पंचायत स्तर के चुनाव में प्रचार कर रही हैं.
इससे पहले साल 2008 में उन्होंने पंचायत चुनाव में प्रचार किया था. उस समय भी उन्होंने इन चुनावों पर बहुत ज्यादा मेहनत नहीं की थी लेकिन इस बार की तस्वीर अलग है. लेकिन ऐसा क्यों है?
राजनीतिक ताकत दिखाने का आखिरी मौका
दरअसल, अगले साल के लोकसभा चुनाव से पहले ममता बनर्जी के लिए राज्य में अपनी ताकत दिखाने का यह आखिरी अवसर है. पंचायत चुनाव में पार्टी प्रचंड जीत राज्य की राजनीति में ममता बनर्जी की ताकत की बानगी पेश करेगी.
यही कारण है कि ममता चाहती हैं कि शिमला में विपक्ष की अगली बैठक 10 जुलाई की बजाए 12 जुलाई को रखी जाए.
नतीजों के बाद विपक्षी बैठक में लेना चाहती हैं हिस्सा!
दरअसल, पंचायत चुनाव के नतीजे 11 जुलाई को आएंगे. ऐसे में अगर 12 जुलाई को बैठक होगी तो ममता के पास राज्य चुनावों में प्रचंड जीत का 'ताज' मौजूद होगा. सीट शेयरिंग फॉर्मूले पर बात करते हुए वह राज्य की राजनीति में अपनी शक्ति के बारे में बिना कुछ कहे काफी कुछ बता सकेंगी.
ज्यादा से ज्यादा सीटों पर दावेदारी सुनिश्चित करने की तैयारी
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल राज्य की 42 में से 40 सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ना चाहती है. पंचायत चुनाव में पार्टी की प्रचंड जीत ज्यादा से ज्यादा सीटों पर उसकी दावेदारी मजबूत करेगी और इस पर कोई सवाल भी नहीं खड़ा कर सकेगा.
सांसदों-विधायकों को दी गई अहम जिम्मेदारी
एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक तृणमूल कांग्रेस चीफ ममता बनर्जी ने पार्टी के सभी दिग्गजो से कहा है कि वो अगले दस दिन पूरी तरीके से पंचायत चुनाव में समर्पित करें. सांसदों विधायकों से भी कहा गया है वो अपने इलाके में पंचायत चुनाव प्रचार पर गंभीरता से ध्यान दें. ममता बनर्जी के नजदीकी नेता और राज्य में शहरी विकास मंत्री फरहाद हाकिम को चुनावों के मद्देनजर अहम जिम्मेदारी सौंपी गई है.
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