नई दिल्ली. मध्य प्रदेश में बीजेपी विधायक मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाए जाने को बीजेपी के मास्टर स्ट्रोक के रूप में देखा जा रहा है. माना जा रहा है कि इस एक कदम से बीजेपी ने राज्य में न सिर्फ ओबीसी जातियों को साधने की कोशिश की है बल्कि पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार में भी 'परंपरागत यादव लीडरशिप' को चुनौती देने की कोशिश की है. उत्तर प्रदेश में एक तरफ समाजवादी पार्टी तो दूसरी तरफ बिहार में राष्ट्रीय जनता के आधारभूत वोटर के रूप में यादव मतदाताओं को देखा जाता है. माना जा रहा है कि इस एक कदम से न सिर्फ मध्य प्रदेश बल्कि यूपी और बिहार की राजनीति में भी असर पैदा करने की कोशिश की है.
महज कुछ महीने में लोकसभा चुनाव
मोहन यादव अभी मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए गए हैं और महज कुछ महीने के भीतर लोकसभा चुनाव भी होने वाले हैं. ऐसी स्थिति में संभव है कि बीजेपी उन्हें ऐसी जगहों पर पर चुनाव प्रचार के लिए भेजे जहां पर यादव बहुल इलाके हैं. राज्यों के मुख्यमंत्रियों की अन्य राज्यों में चुनाव प्रचार करने की परिपाटी सभी पार्टियों में रही है. ऐसे में मोहन यादव का इस्तेमाल भी चुनाव प्रचार के लिए किया जा सकता है.
उत्तर प्रदेश में एक पूरा इलाका कहा जाता है यादव लैंड
मध्य प्रदेश से सटे उत्तर प्रदेश में एक पूरे इलाके को यादव लैंड कहकर पुकारा जाता है. उत्तर प्रदेश के इटावा, औरैया, फिरोजाबाद, मैनपुरी, एटा, कन्नौज, कासगंज और फर्रुखाबाद जैसे जिलों को यादव लैंड के उपनाम से भी पुकारा जाता है. इन इलाकों में समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव परिवार की मजबूत पकड़ मानी जाती है. इस इलाके में यादव वोट बैंक को परंपरागत रूप से समाजवादी पार्टी को वोटर माना जाता है.
मोहन यादव की मौजूदगी फर्क पड़ा तो...
अब जबकि मोहन यादव को बीजेपी ने देश के एक बड़े राज्य की जिम्मेदारी सौंपी है तो ऐसी स्थिति में वह यूपी के यादव मतदाताओं को अपनी तरफ लुभाने की पूरी कोशिश करेगी. मोहन यादव तेज तर्रार और युवा नेता हैं. अगर उनके प्रचार और पैठ की वजह से अगर यादव लैंड में बीजेपी कुछ प्रतिशत यादव मतदाताओं को लुभाने में कामयाब रहती है तो यह बेहद बड़ा राजनीतिक दांव साबित हो सकता है.
बिहार में हो सकता है फायदा
ठीक इसी तरह बिहार में भी एक बड़ा इलाका यादव लैंड के रूप में जाना जाता है. इस क्षेत्र में भी बीजेपी मोहन यादव का इस्तेमाल स्टार प्रचारक के रूप में मजबूती से करना चाहेगी जिससे अधिक से अधिक सीटें हासिल की जा सकें. बिहार में यादव बिरादरी परंपरागत रूप से राष्ट्रीय जनता दल का वोटर मानी जाती है. लालू यादव के बिहार में राजनीतिक पदार्पण के बाद से ही यादव समाज ने उन्हें (लालू यादव) को लगातार समर्थन दिया है. लंबे वक्त तक लालू ने बिहार में एमवाई यानी मुस्लिम यादव समीकरण के जरिए शासन किया था.
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