लॉकडाउन में 167 साल की हुई भारतीय रेल आज आपसे क्या अपील कर रही है

16 अप्रैल 1853 को  कंपनी शासन ने भारत में पहली यात्री रेल की शुरुआत की. दूरियों को चंद समय में नापने के लिए लगाई गई यह पहली मशीनी दौड़ थी. दिन बीते, साल बदले. आजाद भारत में 1951 को यही रेल परिवहन राष्ट्रीय कृत होकर भारतीय रेल परिवहन बन गया. आज लॉकडाउन के दौर में अपना जन्मदिन मना रही भारतीय रेल कुछ गुजारिश कर रही है, उसकी भी सुन लीजिए. 

Written by - Vikas Porwal | Last Updated : Apr 16, 2020, 04:30 PM IST
    • 16 अप्रैल 1853 को पहली बार आधिकारिक तौर चलाई गई भारतीय यात्री रेल
    • 167 साल की हुई भारतीय रेल आज लॉकडाउन के कारण बंद है
लॉकडाउन में 167 साल की हुई भारतीय रेल आज आपसे क्या अपील कर रही है

नई दिल्लीः मैं भारतीय रेल हूं. लोहे की दो पटरियों पर शुरू हुआ मेरा जीवन डेढ़ शताब्दी देखते-देखते आज जिस मुकाम पर पहुंचा है वहां से मेरा अतीत प्रगति की धरोहर जैसा दिखता है. मेरी इस याद में तमाम स्वाद शामिल हैं. कभी गर्म चाय की चुस्की जो एक घूंट में सफर को ताजा बना दे, तो कभी किसी की अम्मा के दिए पूड़ी में लिपटे अचार की खुश्बू, जो एक बार खुले तो पूरी बोगी को महका दे  पहली बार शहर जा रहे किसी गंवई को भरोसा दिलाता रहे कि देख गांव तेरे साथ है.

मैं न जाने कितनी तरुणियों की आंखों में किसी के आने का इंतजार बनकj रही हूं, तो न जाने कितनों ने ही उस थोड़ी देर के लिए मुझे बैरी ही मान लिया, जिनके पिया मेरे साथ शहर जा रहे थे. मैं रेल हूं, ऐसी ही कहानी है मेरी.

 

ऐसे शुरू हुआ मेरा सफर
16 अप्रैल 1853 को पहली बार आधिकारिक तौर पर मुझे चलाया गया. जगह थी तब का बंबई, जो अब मुंबई है. यहां से चलकर मैं ठाणे तक पहुंची थी. ये सफर मेरा 21 मील का था. यूं ही नहीं मुंबई को सपनों की नगरी और माया नगरी कहते हैं. लोहे की पटरियों पर लोहे का इतना भारी-भरकम कलपुर्जा चलना, चलना नहीं बल्कि दौड़ना किसी सपने से कम नहीं था.

पूरे रास्ते मेरे आस-पास दूर-दूर तक लोग जमे हुए थे. वैसे ये पहली बार नहीं था. 22 दिसंबर 1851 को मुझे चलाकर चेक किया गया था. खैर, वैसे अंग्रेजों ने भारतीयों पर बहुत जुल्म ढाए थे. अपने मतलब के लिए ही सही लेकिन उन्होंने ही भारत में मेरी प्रणाली की शुरुआत 1844 से की थी. तब गवर्नर थे, जनरल लार्ड हार्डिंग.

मेरे पूर्वज हैं साहिब, सिंध, सुल्तान और डेक्कन क्वीन
 33.6 कि.मी. लम्बे रेलमार्ग पर जब 1853 को मुझे चलाया गया तो मुझे ताकत दी तीन लोकोमोटिव इंजनो साहिब, सिंध और सुल्तान ने. ये तीनों मेरे पूर्वज हैं. फिर दक्षिण भारत में मेरे शुरुआत 1 जुलाई, 1856 को मद्रास रेलवे कम्पनी से हुई. 1951 को मेरे लिए सबसे खुशी का दिन था.

उस दिन मेरा राष्ट्रीय करण किया गया और मुझे भारतीय रेल का संवैधानिक दर्जा मिला. मेरा बजट बना और मेरी विकास की रूपरेखा तैयार होने लगी. इसके पहले इतनी खुशी मुझे तब हुई थी, जब 1929 में पहली बार मुझे बिजली से चलाया गया. कल्याण से पुणे के बीच मैं इतनी तेज दौड़ी कि मुझे दक्षिण की रानी यानी डेक्कन क्वीन कहा गया.

आज मना रही हूं अपना जन्मदिन
आज फिर 16 अप्रैल है और आपकी प्यारी भारतीय रेल आज के दिन 167 साल की हो रही है. आज मेरा 63,465 किमी लम्बा रेलमार्ग है, जिस पर मैं सतत दौड़ती हूं. मेरी नई पीढ़ी तो अब पहले से अधिक तेज दौड़ने लगी है. सच उन्हें देखकर लगता है, बच्चे हमसे कितने आगे निकल गए और पीछे मुड़कर देखती हूं तो ऐसा लगता है कि मानों कल ही की बात हो.

मैं किसी पहाड़, किसी खेत, किसी मैदान के बीचों-बीच से गुजर रही हूं. कभी जंगल की सांय-सांय को चीर रही हूं तो कभी नदियों की कल-कल के ऊपर घर-घर करती गुजर रही हूं. सच कितना हसीन था सब कुछ.

...लेकिन आज मैं बंद हूं, घर में हूं
मैंने जबसे चलना शुरू किया, तबसे चलती ही जा रही हूं. कभी नहीं रुकी. आंधी-तूफान आए मेरी राह नहीं रोक पाए. समुद्र ने कहर बरपाया मैं फिर भी नहीं रुकी (याद है 2004 की सुनामी), तमाम जलजले आए, देश मे नफरत की आग लगी, मेरे कई साथी, बहनों को राख होना पड़ा, मुझे दुख हुआ, लेकिन मैं रुकी फिर भी नहीं.

आज मैं दुखी हूं, क्योंकि मुझे भी रुकना पड़ा है. किसी दुश्मन देश ने आंखें नहीं दिखाई हैं, लेकिन मेरे पहिए जाम हैं. एक अदृश्य ताकत ने पैर बांध दिए हैं मेरे. क्या करूं समझ नहीं आता. फिर भी मेरी बहन मालगाड़ी बाहर निकल रही है, वह आपके काम आ रही है, मुझे चिंता है उसकी, लेकिन उसकी हिम्मत की दाद देती हूं.

मैं भी तैयारी कर रही हूं. मेरे कोच आइसोलेशन के लिए बनाए जा रहे हैं. फिलहाल तो इंतजार है कि सब जल्दी अच्छा हो. तब तक मैं रुकी हुई हूं, आप भी रुके रहिए.. प्लीज.. आपकी भारतीय रेल.

 

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